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यूनाइटेड किंगडम (UK) कोरोना वायरस डिजीज की वैक्सीन को मंजूरी देने वाला पहला देश बन गया है.बीबीसी की रिपोर्ट के मुताबिक यूके ने फाइजर-बायोएनटेक की कोरोना वैक्सीन को अगले हफ्ते से इस्तेमाल की इजाजत दे दी है.
अफसोस कि भारत को इससे कोई खास फायदा नहीं होने वाला है.
फिट ने पहले इस सिलसिले में वायरोलॉजिस्ट डॉ शाहिद जमील से बात की थी, जो अशोका यूनिवर्सिटी में त्रिवेदी स्कूल ऑफ बायोसाइंसेज के डायरेक्टर भी हैं.
इस वैक्सीन को अल्ट्रा-कोल्ड तापमान में स्टोर करना है. बहुत ठंडे कंटेनर में -70 डिग्री या इससे भी कम तापमान पर. वैक्सीन का वितरण और कोल्ड चेन बहुत बड़ी चुनौती है.
यूके को यह तय करना होगा कि उनकी प्राथमिकता के मुताबिक पहले किसे वैक्सीन दी जाए. इस लिस्ट में सबसे पहले हेल्थकेयर वर्कर्स, 80 से ज्यादा की उम्र वाले लोग और दूसरे स्वास्थ्य व सामाजिक कार्यकर्ता शामिल हैं. वैक्सीन की और डोज उपलब्ध होने के बाद 50 से अधिक उम्र वाले लोग, पहले से किसी बीमारी से जूझ रहे युवा लोगों के वैक्सीनेशन की व्यवस्था होगी.
Credit Suisse के रिसर्च के मुताबिक भारत के लिए ऑक्सफोर्ड/एस्ट्राजेनेका की वैक्सीन, 'कोविशील्ड', भारत बायोटेक और इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR) की 'कोवैक्सीन', नोवावैक्स, जाइडस कैडिला, जॉनसन एंड जॉनसन की वैक्सीन खास हैं.
डॉ जमील के मुताबिक फाइजर की वैक्सीन का डेवलपमेंट इस लिहाज से अच्छा है कि इससे mRNA वैक्सीन का कॉन्सेप्ट साबित हुआ है.
डॉ शाहिद जमील बताते हैं कि दोनों बहुत अलग हैं. COVAXIN पूरा वायरस है. इस तरह की इनएक्टिवेटेड पैथोजन वाली वैक्सीन की प्रक्रिया ये है कि आप बहुत से वायरस ग्रो करते हैं, उसे प्यूरिफाय करते हैं और फिर केमिकल से वायरस को इनएक्टिव कर देते हैं और पूरा इनएक्टिवेटेड वायरस इन्जेक्ट किया जाता है, जबकि mRNA वैक्सीन और यहां तक कि ऑक्सफोर्ड-एस्ट्राजेनेका वैक्सीन वायरस के एक कंपोनेंट पर आधारित हैं, जो कि स्पाइक प्रोटीन है. कोवैक्सीन में वायरस के सभी प्रोटीन हैं. इसलिए दोनों बहुत अलग वैक्सीन हैं.
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Published: 02 Dec 2020,04:02 PM IST