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पॉर्न भारत के विडंबनापूर्ण पक्ष को सामने लाती है. एक तरफ, रूढ़िवादी भारत जो सेक्स के बारे में बात करना पसंद नहीं करता, इसकी सामाजिक रूप से निंदा करता है. दूसरी ओर, भारत वैश्विक स्तर पर सबसे बड़ी पॉर्न साइट का तीसरा सबसे बड़ा उपभोक्ता है. हालांकि, ‘मॉर्डन’ इंडिया पॉर्नोग्राफिक मटैरियल के उपभोग को सामान्य बनाने की कोशिश करता है.
लेकिन अमेरिका जैसे देश भले ही वे इसे ‘मुक्त कलात्मक अभिव्यक्ति’ के तहत रेगुलेट कर सकते हैं, लेकिन कुछ लोग देश में पॉर्न को सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट घोषित करना चाहते हैं. एक रिपब्लिकन प्रतिनिधि की तरफ से इस आशय का प्रस्ताव पेश करने के बाद एरिजोना राज्य इस पर विचार कर रहा है.
हालांकि ऐसा पहली बार नहीं हो रहा है. साल 2016 में पॉर्नोग्राफी को सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट घोषित करने वाला उटाह अमेरिका का पहला राज्य था. इसके बाद 11 दूसरे राज्यों ने भी ऐसा किया.
पॉर्न का दिमाग पर नशे की लत की तरह प्रभाव पड़ता है. इससे महिलाओं को वस्तु के रूप में देखने की प्रवृत्ति बढ़ती है. हिंसक व्यवहार का चित्रण, नाबालिगों तक आसानी से पहुंच यौन हिंसा के लिए उकसाती है. सेक्स के अवास्तविक चित्रण के अलावा कई ऐसे मुद्दे हैं जो पॉर्न के साथ चल रहे हैं. ये कमजोर दिमाग वालों को ऐसा सोचने पर मजबूर कर देते हैं जैसे कि ये सब सामान्य चीजें हैं.
हां, स्टडीज में यह पाया गया है कि पॉर्नोग्राफी दिमाग को नशे की तरह ही सेक्स की लत भी लगा देती है. कुछ मामलों में रेपिस्ट और हत्यारों के पास से हिंसक प्रकृति की पॉर्नोग्राफिक सामग्री बरामद की गई है. या ऐसे लोगों ने भयावह आपराधिक कृत्य से पहले इस तरह की सामग्री को देखने की बात स्वीकार की है. यह पॉर्न को यौन हिंसा से जोड़ता है. कुछ लोगों के लिए फैंटेसी केवल सेक्सुअल रियल्टी बन जाती है.
क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट डॉ रजत मित्रा, जिन्होंने पॉर्न से जुड़े अपराधों पर यौन अपराधियों के साथ बड़े पैमाने पर काम किया है, वो कहते हैं, ‘उपरोक्त बातों के बावजूद यह लोगों के एक छोटे प्रतिशत पर लागू होता है. ऐसे बहुत से लोग हैं जो पॉर्नोग्राफिक सामग्री देखते हैं, जो अपमानजनक और समस्याग्रस्त नहीं है. वे अपराध नहीं करते हैं या वे एडिक्ट नहीं हैं. यह संकेत देता है कि पॉर्न पूरी तरह से ऐसा कुछ नहीं है, लेकिन कुछ लोगों के दिमाग पर इसका असर पड़ता है.
एक संकट बड़े पैमाने पर तत्काल खतरे का एक बिंदु है. जबकि इस प्रस्ताव के विरोधियों का मानना है कि पॉर्न में गंभीर चिंताएं और 'सार्वजनिक स्वास्थ्य निहितार्थ' हैं, वे कहते हैं कि इसे संकट कहना अतिश्योक्ति है और ये बुनियादी समस्या को हल करने का तरीका नहीं है.
डॉ मित्रा कहते हैं, ‘जब आप किसी चीज को संकट का नाम देते हैं, तो यह आतंक पैदा करता है. किसी भी संकट की घोषणा करने से पहले आप ये देखें कि यह किस दिशा में जा रहा है. इसे नियंत्रित करने या रोकने के लिए एक तंत्र विकसित करें. आप इन स्टेप्स को नहीं छोड़ सकते हैं. यह शब्दावली लोगों में चिंता पैदा करती है.’
फोर्टिस हॉस्पिटल में मेंटल हेल्थ और बिहेवियरल साइंस विभाग के डायरेक्टर डॉ समीर पारिख का तर्क है कि अगर ऐसा है भी, तो बहस क्यों?
वह कहते हैं, ‘शराबबंदी हर किसी को प्रभावित नहीं करती है, लेकिन आप हर बोतल पर ये उल्लेख करते हैं कि शराब पीना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है. आप लोगों को शिक्षित करते हैं और वे इसके बारे में चुनाव करते हैं. पॉर्नोग्राफी के नुकसान के बारे में जागरुकता पैदा करना कुछ ऐसा है, जिस पर दुनिया को विचार करना चाहिए.’
सार्वजनिक स्वास्थ्य संगठनों का क्या कहना है? रोग नियंत्रण और रोकथाम केंद्रों ने सीएनएन को बताया, ‘सार्वजनिक स्वास्थ्य के मुद्दे के रूप में पॉर्नोग्राफी पर एक स्थापित स्थिति नहीं है. पॉर्नोग्राफी यौन हिंसा और एचआईवी संचरण जैसे दूसरे सार्वजनिक स्वास्थ्य मुद्दों से जुड़ी हो सकती है.’ लेकिन अपने आप में एक संकट के रूप में? वास्तव में नहीं.
डॉ मित्रा बताते हैं, ‘पॉर्न समाज में उन बदलावों और संस्कृतियों को दर्शाता है, जहां आप नैतिक आधार नहीं ले सकते हैं और कहते हैं कि ये गलत है क्योंकि यह बहुत सापेक्ष है.‘
इसलिए, पॉर्नोग्राफी को लेकर लोगों की राय बहुत बंटी हुई है. समस्या सभी पॉर्नोग्राफिक मटैरियल में नहीं है. पॉर्नोग्राफी का सही प्रयोग नहीं करना और लत के अलावा, कई इसे एक हेल्दी सेक्सुअल आउटलेट के रूप में उपयोग करते हैं, जिसका महिलाएं और पुरुष दोनों आनंद लेते हैं.
दूसरी तरफ, डॉ मित्रा का मानना है कि हिंसक, अब्यूजिव या चाइल्ड पॉर्नोग्राफी देखने वालों लोगों में चितांजनक पैटर्न देखने को मिल रहा है. निश्चित रूप से यह नहीं फैलना चाहिए. अगर ऐसा होता है, तो जाहिर रूप से समाज संकट में है.
डॉ मित्रा का कहना है कि पॉर्न और यौन हिंसा के बीच कोई स्पष्ट अनुभव सिद्ध संबंध नहीं पाया गया है. जो कुछ पाया गया है वह कुछ रेपिस्ट या हत्यारों द्वारा हिंसक प्रकृति के पॉर्नोग्राफिक मटैरियल देखना है. इसलिए, यह बहुत बार कहा जाता है कि पॉर्न के कारण इन लोगों ने उन अपराधों को अंजाम दिया.
आमतौर पर, कई कारक जो एक साथ चलते हैं, एक ऐसा व्यक्ति बनाते हैं जो भटका हुआ या अपमानजनक होता है, यह कभी भी एक कारक नहीं होता है.
पॉर्नोग्राफी को लेकर कई चिंताएं हैं, जो अमेरिका जैसे एक अत्यंत हिंसक समाज का नेतृत्व कर रही हैं. जो इस तरह के एक संकल्प पर विचार कर रहा है. यौन हिंसा अपराधों में हिंसक प्रकृति की कल्पनाओं को तेजी से देखा जाता है. इसलिए, वे इस पर अंकुश लगाने के तरीकों की तलाश कर सकते हैं.
लेकिन क्या एक घोषणा पर्याप्त समाधान है? विशेषज्ञों को लगता है कि नहीं. उदाहरण के लिए, उटाह के रिजॉल्यूशन में कोई दंड देने वाली शक्तियां नहीं हैं. यह दिशानिर्देश नहीं देता है; यह विशेष रूप से स्टेट में पॉर्नोग्राफी पर प्रतिबंध नहीं लगाता है.
इस बीच, प्रतिबंध ने कभी भी कुछ भी हल नहीं किया है. डॉ पारिख और डॉ मित्रा दोनों इस बात पर सहमत हैं कि, सबसे पहले, आप इसे लागू नहीं कर सकते. यह वापस अपना रास्ता खोज लेगा, यह इंटरनेट से पहले मौजूद था. साथ ही, इसे देखने वालों की एक बड़ी संख्या नेगेटिव रूप से रिएक्ट नहीं करती है.
भारत की तरह, हम उस चीज पर प्रतिबंध लगाने के लिए भागते हैं, जो हम पसंद नहीं करते हैं, लेकिन यह आबादी पर पॉर्नोग्राफी के हानिकारक प्रभावों को नहीं रोकता है. दूसरी ओर, जागरुकता पैदा करना बेहद महत्वपूर्ण है और यह बहुत आगे जा सकता है.
इसलिए अगर तर्क ये है कि अधिकतर प्री-टीन्स या टीन्स के लिए, सेक्स से उनका पहली बार वास्ता या इसके बारे में कोई भी शिक्षा पॉर्नोग्राफी होगी और ये नकारात्मक चित्रण है. तो इसका जवाब सेक्स एजुकेशन है और पहले उन्हें सही जानकारी प्रदान करना है.
डॉ मित्रा का मानना है कि जितना अधिक आप इसके बारे में खुलकर बात करते हैं, उतना ही आप इसके नकारात्मक प्रभावों को दूर करेंगे.
(इस आर्टिकल को अंग्रेजी में यहां पढ़ें.)
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Published: 23 Feb 2019,06:45 PM IST