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रेमडेसिविर के लिए मरीज दे रहे दोगुनी कीमत,सप्लाई में दिक्कत क्यों?

कोरोना ड्रग रेमडेसिविर के सप्लाई में क्यों होने लगी दिक्कत?

कौशिकी कश्यप
फिट
Updated:
रेमडेसिविर की किल्लत: 10 अप्रैल से हालात सामान्य होने की उम्मीद
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रेमडेसिविर की किल्लत: 10 अप्रैल से हालात सामान्य होने की उम्मीद
(फोटो: iStock)

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पुणे के आदित्य करपे शिकरापुर के सूर्या हॉस्पिटल में अपने कोरोना(Corona) संक्रमित भाई और पिता का इलाज करा रहे थे. 10 दिन पहले उनके पिता को एंटीवायरल ड्रग रेमडेसिविर की जरूरत पड़ी और उन्हें वो अस्पताल से मिल गई. लेकिन 3 दिन पहले जब भाई को जरूरत पड़ी तो दवा अस्पताल से नहीं मिल पाई क्योंकि दवा खत्म हो चुकी थी. आसपास की फार्मेसी ने भी कहा कि दवा का स्टॉक खत्म है. आखिर में उन्हें दोगुनी कीमत देकर दवा खरीदनी पड़ी. उन्होंने सिप्रेमी (Cipla’s Cipremi ) के लिए 7.5 हजार रुपये दिए और डर्सम (Mylan’s Dersem) की एक वायल के लिए 10 हजार रुपये दिए जबकि इनकी कीमत 4 हजार और 4.8 हजार रुपये प्रति वायल है.

आदित्य की कोरोना रिपोर्ट भी अब पॉजिटिव आई है और वो भी उसी हॉस्पिटल में भर्ती हैं. उन्हें चिंता है कि एक साथ इतने लोगों के इलाज में खर्च के बाद, उन्हें भी दवा दोगुनी कीमत देकर खरीदनी पड़ेगी.

बता दें, एक कोविड मरीज को रेमडेसिविर के 5 शॉट की जरूरत पड़ती है. ब्लैक में खरीदने पर पूरा खर्च 45 हजार के करीब जा सकता है. रेमडेसिविर- कोरोना वायरस के संक्रमण के बाद इससे निपटने के लिए इस्तेमाल की जा रही सबसे प्रभावी दवा मानी जाती है.

आदित्य ने फिट से फोन पर बातचीत में बताया कि उनके साथ भर्ती मरीज के परिजनों को भी ये दवा नहीं मिल रही. ये स्थिति पिछले 3-4 दिनों से है, क्योंकि अस्पताल में मरीजों की संख्या बढ़ी है और इस दवा की किल्लत हो रही है. मजबूर मरीजों को ब्लैक में दवा खरीदनी पड़ रही है.

कोरोना की दूसरी लहर थमने का नाम नहीं ले रही है. मरीजों की बढ़ती संख्या के कारण महाराष्ट्र के मुंबई, ठाणे, एबरनाथी, मध्य प्रदेश के भोपाल, इंदौर, ग्वालियर और गुजरात के अहमदाबाद, सूरत, राजकोट के प्राइवेट और सरकारी अस्पतालों में कोरोना मरीजों के इलाज में इस्तेमाल की जाने वाली रेमडेसिविर की कमी हो रही है.

इंदौर के एक वरिष्ठ चिकित्सा अधिकारी ने फिट से बातचीत में इस बात की पुष्टि की कि उनके प्रदेश में भी दवा की भारी किल्लत हो रही है. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक इंदौर में दवा दुकानों के आगे लंबी-लंबी कतारें लग रही हैं लेकिन दवा नहीं मिल रही.

इंदौर के डिस्ट्रिक्ट कलेक्टर मनीष सिंह ने 8 अप्रैल को मीडिया के सामने बयान दिया कि “महाराष्ट्र और गुजरात में केस बढ़ने से हमारे यहां रेमडेसिविर की कमी हो रही है. महाराष्ट्र में मैन्यूफैक्चरिंग कंपनी है, लेकिन वहां बढ़ते केस को देखते हुए राज्य सरकार ने उसकी सप्लाई रोक दी है.”

1 रुपी क्लिनिक(1RUPEECLINIC) के फाउंडर और सीईओ डॉ राहुल घुले मुंबई में ‘1500 बेड कोविड हॉस्पिटल सेटअप’ चला रहे हैं. उन्होंने ट्विटर पर अपना नंबर सार्वजनिक कर रखा है ताकि लोग उन्हें सीधे फोन कर मदद मांग सके.

महामारी की शुरुआत से ही मुंबई में कोरोना मरीजों और उनके परिजनों की मदद कर रहे डॉ राहुल घुले ने फिट को बताया कि “मरीज के परिजनों को दोगुनी परेशानी झेलनी पड़ रही है. मरीजों को बेड मुहैया नहीं हो पा रहा और बेड मिल भी रहा है तो उन्हें रेमडेसिविर दवा नहीं मिल पा रही है. अस्पतालों में स्टॉक खत्म है. दवा की ब्लैक मार्केटिंग हो रही है.”

उन्होंने 7 अप्रैल को ट्वीट किया था-

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“हमने रेमडेसिविर इंजेक्शन के लिए कंपनी को 10 दिन पहले 200 शीशियों का ऑर्डर और पेमेंट किया था, लेकिन कंपनी ने दवा देने से इनकार कर दिया है और ज्यादा कीमत की मांग कर रहे हैं. ये अमानवीय और अनप्रोफेशनल एक्ट है क्योंकि ये अस्पताल के मरीजों के लिए मंगवाया गया था. हम पुलिस में शिकायत करेंगे.”
डॉ राहुल घुले, 1 रुपी क्लिनिक(1RUPEECLINIC) के फाउंडर और सीईओ

महाराष्ट्र में मांग ज्यादा हुई

टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक महीने के अंत तक इस एंटीवायरल दवा की मांग में तिगुनी बढ़त की उम्मीद करते हुए, महाराष्ट्र के सार्वजनिक स्वास्थ्य मंत्री राजेश टोपे ने दवा कंपनियों से प्रोडक्शन में तेजी लाने की गुजारिश की है.

उन्होंने कहा है कि 30 अप्रैल तक रोजाना करीब 1.5 लाख डोज की जरूरत पड़ सकती है. मौजूदा हालात में रोजाना 50 हजार डोज की जरूरत पड़ रही है. गुरुवार को उन्होंने फार्मा कंपनियों के वरिष्ठ अधिकारियों के साथ बैठक की और कहा कि कंपनियों ने प्रोडक्शन बढ़ा दिया है लेकिन नए बैचों को आने में कम से कम 20 दिन लगेंगे. दवा की कालाबाजारी को रोकने और कीमतों को आम लोगों की पहुंच में रखने के लिए सरकार ने फैसला लिया है कि रेमडेसिविर के डोज की कीमत 1100 से 1400 रुपये प्रति डोज रखी जाए.

क्यों हुई किल्लत?

कोरोना की दूसरी लहर की वजह से हॉस्पिटल में मरीजों की संख्या और दवा की खपत बढ़ी है. 3-4 दिनों से हालात पहले की तुलना में खराब है. 5 अप्रैल को नए केस का आंकड़ा रिकॉर्ड 1 लाख पार कर गया.

8 अप्रैल तक भारत में 1,31,968 नए केस दर्ज किए गए. अकेले महाराष्ट्र में 5,22,762 कोरोना के एक्टिव केस हैं वहीं मध्य प्रदेश में एक्टिव केस की संख्या 28,060 है.

महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश की सरकारें इस दवा को प्रोक्योर कर रही हैं. मध्य प्रदेश सरकार की ओर से आर्थिक रूप से कमजोर कोविड मरीजों के लिए ये इंजेक्शन मुफ्त में देने की योजना है.

बढ़ते केस के साथ, बढ़ती डिमांड और सप्लाई के बीच गैप ने कमी पैदा कर दी है. ऑल इंडिया ऑर्गेनाइजेशन ऑफ केमिस्ट्स एंड ड्रगिस्ट्स (AIOCD) के जनरल सेक्रेटरी राजीव सिंघल ने फिट से बातचीत में कहा-

“साल की शुरुआत में जैसे-जैसे मामले घटते गए, रेमडेसिविर की मांग कम हो गई, इसलिए कंपनियों ने मैन्यूफैक्चरिंग रोक दी या धीमी कर दी क्योंकि इसकी एक्सपायरी डेट 3 महीने तक की थी. 10 मार्च के बाद मामले बढ़ने लगे और मांग बढ़ गई. मैन्यूफैक्चरर्स का कहना है कि उन्हें दवा को 18 से 20 दिनों तक इन्क्यूबेशन/बबल में रखना पड़ता है, उसके बाद ही वो इसे मार्केट में सप्लाई कर सकते हैं. इसी वजह से दवा की सप्लाई तेजी से नहीं हो पा रही है.”
राजीव सिंघल, ऑल इंडिया ऑर्गेनाइजेशन ऑफ केमिस्ट्स एंड ड्रगिस्ट्स (AIOCD)

सिंघल के मुताबिक हालात 2-3 दिनों में सामान्य हो जाने की उम्मीद है क्योंकि मार्च में केस में बढ़त को देखते हुए लगातार दवा का प्रोडक्शन कर रही फार्मा कंपनियां अपना स्टॉक 10 अप्रैल तक बाजार में उतारना शुरू कर देंगी.

कितनी है प्रोडक्शन क्षमता?

भारत में इस दवा का प्रोडक्शन 7 फार्मा कंपनियां- सिप्ला, जाइडस कैडिला, हेटेरो, माइलैन, जुबिलैंट लाइफ साइंसेज, डॉ रेड्डीज, सन फार्मा कर रही है.

केंद्रीय राज्‍य मंत्री (रसायन एवं उर्वरक) मनसुख मंडाविया ने 7 अप्रैल को कहा था कि इन कंपनियों को प्रोडक्शन बढ़ाने को कहा गया है. फिलहाल इन सबकी प्रोडक्शन क्षमता 31.60 लाख वायल मासिक है. 31.60 लाख वायल में से, हेटेरो महीने में 10.50 लाख वायल का उत्पादन करती है, सिप्ला 6.20 लाख, जाइडस कैडिला 5 लाख और 4 लाख वायल का उत्पादन माइलैन करती है. बाकी कंपनियां महीने में 1 लाख और 2.5 लाख की रेंज में वायल का उत्पादन करती हैं.

रेमडेसिविर की मांग क्यों?

रेमडेसिविर एक एंटीवायरल दवा है, जिसे अमेरिकी दिग्गज दवा कंपनी गिलियड साइंसेज ने बनाया है. इसे एक दशक पहले हेपेटाइटिस C और सांस संबंधी वायरस (respiratory syncytial viruses या RSV) का इलाज करने के लिए बनाया गया था, लेकिन इसे कभी बाजार में उतारने की मंजूरी नहीं मिली.

'एंटीवायरल दवा' वायरल संक्रमण के इलाज में इस्तेमाल की जाने वाली दवाएं होती हैं.

कोविड-19 इस दवा को फिर से चर्चा में ले आई. भारत में रेमडेसिविर के कई जेनेरिक वर्जन बाजार में उतारे जा चुके हैं, ये दवा कोविड-19 मैनेजमेंट के लिए स्वास्थ्य मंत्रालय के प्रोटोकॉल का हिस्सा है.

नवंबर 2020 में, विश्व स्वास्थ्य संगठन(WHO) ने रेमडेसिविर के इस्तेमाल के खिलाफ एक सिफारिश जारी की. इसके सॉलिडैरिटी ट्रायल के अंतरिम परिणाम के मुताबिक पाया गया कि "वर्तमान में कोई सबूत नहीं है कि रेमडेसिविर से कोविड मरीजों के जिंदा बचने या हालत में सुधार पर असर पड़ा हो."

लेकिन रेमडेसिविर के संभावित रूप से बहुत सीमित फायदे हो सकते हैं. WHO के ट्रायल से अलग, नवंबर 2020 में द लैंसेट में छपी एक स्टडी से पता चलता है कि दवा हाइपरइनफ्लैमेशन के रिस्क वाले लोगों के लिए प्रभावी है, अगर संक्रमण से 10 दिन पहले दिया जाए. फरवरी की अमेरिकी खाद्य एवं औषधि प्रशासन(FDA) की गाइडलाइन बताती है कि रेमडेसिविर के इस्तेमाल से अस्पताल में भर्ती मरीजों के रिकवरी टाइम को कम किया सकता है.

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Published: 09 Apr 2021,07:23 PM IST

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