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भारत में लगभग 33.6 करोड़ लड़कियां और महिलाएं हर महीने मेंस्ट्रुएशन का सामना करती हैं. उनमें से लगभग 12.1 करोड़ डिस्पोजेबल सैनिटरी नैपकिन का उपयोग कर रही हैं. इसका मतलब है, जैसा कि क्लीन इंडिया जर्नल में बताया गया है, भारत में सालाना 432 मिलियन पैड (नैपकिन) बनाये जाते हैं और इस तरह 9000 टन सैनिटरी वेस्ट निकलता है, जो हर तरीके से पर्यावरण के लिये खतरनाक है.
समस्या ये है कि ज्यादातर सैनिटरी पैड प्लास्टिक आधारित होते हैं और नॉन-बायोडिग्रेडेबल होते हैं. इस प्लास्टिक कंपोनेंट को डिकंपोज करने के लिए लगभग 500-800 साल लगते हैं. इसका मतलब ये है कि हर महीने कचरे में फेंके जाने वाले सैनिटरी पैड नष्ट नहीं हो रहे बल्कि जमीन में धंसते जा रहे हैं और पर्यावरण को लगातार दूषित करने का काम कर रहे हैं.
इसके अलावा मेडिकल एक्सपर्ट्स ने पैड के बार-बार उपयोग के कारण पेल्विक इंफेक्शन जैसी समस्या होने की भी आशंका जताई है.
हालांकि, बायो-मेडिकल वेस्ट (प्रबंधन और हैंडलिंग) नियम, 1998 का कहना है कि ब्लड और बॉडी फ्लूइड से दूषित पदार्थ जैसे कॉटन, ड्रेसिंग, मृदा प्लास्टर कास्ट, लाइन्स और बेडिंग एक तरह के बॉयो-मेडिकल (जैव-चिकित्सा) वेस्ट हैं और इनके पैथोजन (रोगाणु) को नष्ट करने के लिये इन्हें जला दिया जाना चाहिए, ऑटोक्लेव या माइक्रोवेव किया जाना चाहिए.
सैनिटरी पैड को नष्ट करने में भी कई समस्याएं हैं क्योंकि इन्हें जलाने से डाइऑक्साइन और फुरॉन जैसे जहरीले धुएं भी पैदा होते हैं.
इसके अलावा, जितने लंबे समय तक इस्तेमाल किए हुए पैड खुले में रखे जाते हैं और हवा के संपर्क में रहते हैं, वे उतने ही रोगजनक बनने या वायरल और बैक्टीरियल इंफेक्शन की वजह बन सकते हैं.
इस तथ्य के अलावा कि इसे रिसाइकिल नहीं किया जा सकता है, खुला सैनिटरी नैपकिन कचरा उठाने वाले के लिए गंभीर स्वास्थ्य समस्या पैदा कर सकता है.
सभी सैनिटरी वेस्ट जल्द ही हमारे सीवेज सिस्टम, जमीन और जल निकायों में भी अपना रास्ता बना लेते हैं और फिर हमारे स्वास्थ्य पर इसका खतरनाक प्रभाव पड़ता है.
2016 में, भारत सरकार ने सॉलिड वेस्ट प्रबंधन (Solid Waste Management) नियमों की शुरुआत की, इस नियम के तहत निर्माताओं, ब्रांड मालिकों या सैनिटरी नैपकिन (और डायपर) बेचने वाली कंपनियों के लिए सैनिटरी नैपकिन के सुरक्षित डिस्पोजल के लिये उसके साथ रैपर या पाउच देना अनिवार्य है. हालांकि, इन नियमों के पूरी तरह से लागू होने में अभी भी बाधा बनी हुई है.
हां, बायोडिग्रेडेबल नैपकिन इस समस्या का एक जवाब है. बायोडिग्रेडेबल नैपकिन को इस्तेमाल के बाद आसानी से डिस्पोज किया जा सकता है. ज्यादातर छोटे पैमाने पर मैन्यूफैक्चरर्स या गैर सरकारी संगठनों द्वारा इसे बनाया जाता है, ये बायोडिग्रेडेबल सैनिटरी पैड प्राकृतिक उत्पादों जैसे केला, जूट फाइबर या दोबारा इस्तेमाल करने योग्य कपड़े का उपयोग करके बनाये जाते हैं.
सैनिटरी पैड के साथ-साथ कई दूसरे विकल्प भी हैं, इनमें मेंस्ट्रुअल कप भी शामिल हैं, जिन्हें 12 घंटे तक पहना जा सकता है और इसे 4 से 5 साल तक इस्तेमाल किया जा सकता है. जो इसे सबसे टिकाऊ और पर्यावरण अनुकूल मेंस्ट्रुअल उत्पादों में से एक बनाता है.
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Published: 28 May 2019,05:02 PM IST