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वो जन्म के वक्त लड़का थी. लेकिन अब, तक्ष एक खूबसूरत लड़की है, जो स्टाइलिस्ट बनना चाहती है.
कृतिका अपने मां-बाप का इकलौता बेटा थी. जब 22 की उम्र में वो लड़की बनी, तो उसके पैरेंट्स ने उसे छोड़ दिया. अब वो शादीशुदा है, खुश है और अपने पति के अलावा किसी और को ये बात नहीं बताना चाहती है. इसलिए उसके ससुराल वाले और साथ में काम करने वाले लोग ये नहीं जानते कि वो कभी लड़का थी.
प्यार, भरोसे, रिजेक्शन और अलग-थलग किए जाने के बीच इनकी सिर्फ एक ही चाहत थी, अपनी बॉडी में वो बदलाव, जो उनके जेंडर के मुताबिक हो, जैसा वो महसूस करते हैं, वैसी हो. पेश है सेक्स रीअसाइनमेंट सर्जरी की दो कहानियां.
तक्ष बताती हैं, 'छोटे पर से ही मुझे खुद में एक लड़की की तरह महसूस होता था.'
कृतिका के मुताबिक बचपन में हमें वो शब्द पता नहीं होते. 'जैसे मुझे बचपन में नहीं समझ आता था कि दिक्कत क्या है.'
समाज के तौर पर हम सेक्स और जेंडर के बीच अंतर को समझ नहीं पाए हैं.
तक्ष और कृतिका दोनों बचपन की दो अलग और एक-दूसरे से बिल्कुल उल्ट तस्वीर पेश करती हैं.
वहीं कृतिका ने बाहर निकलना तक छोड़ दिया था, उसका कोई दोस्त नहीं था.
वो लड़का थी, लेकिन उसकी हरकतें लड़कियों जैसी थीं. इसलिए लोग उसे गे, छक्का, हिजड़ा कहते.
तक्ष के पैरेंट्स हमेशा सर्पोटिव रहे. उन्होंने उसके फैसलों का ख्याल रखा. तब भी जब 9वीं क्लास में उसने खुद के गे होने की बात कही. तक्ष की मां उस दिन को याद करते हुए कहती हैं:
तक्ष कहती हैं, 'प्यूबर्टी से पहले, मैंने कभी ऐसा महसूस नहीं किया कि मैं इस शरीर में कैद हूं या खुश नहीं हूं. लेकिन प्यूबर्टी शुरू होने के साथ मुझे अपने शरीर पर बाल अच्छे नहीं लगते.'
उनकी मां ने बताया कि 18 की उम्र में तक्ष ने ये साफ कह दिया कि वो अपने शरीर में बदलाव चाहती है. उसने कहा, 'मैं जो हूं, वो रहना मुझे पसंद नहीं है. अगर मैं वो नहीं हो सकती, जो मुझे मंजूर है, तो मैं जीना ही नहीं चाहती.'
कृतिका को अपनी पढ़ाई छोड़नी पड़ी और कई तरह से बुरे बर्ताव का सामना करना पड़ा.
जब तक्ष को पहली बार पता चला कि ट्रांसजेंडर महिलाएं होती हैं, उसे काफी राहत महसूस हुई.
कृतिका ने करीब 18 की उम्र में पढ़ाई छोड़कर ट्रांजिशन शुरू करने का फैसला किया. लेकिन उसके पैरेंट्स ये नहीं चाहते थे. उन्होंने साफ कह दिया वो उसकी मदद नहीं करेंगे.
अपने बेटे का लड़की बनना, इस बात को तक्ष के पैरेंट्स ने कैसे स्वीकार किया?
तक्ष के पिता कहते हैं, 'ये आसान नहीं था. लेकिन मुझे पता था कि मेरे बच्चे के लिए इसकी जरूरत है. इसलिए हमने उसकी सर्जरी का फैसला किया.'
तक्ष की मां को ये सब समझने और मानने में थोड़ा वक्त लगा. वो कहती हैं, 'दो बेटियां होना मेरे लिए कभी भी दिक्कत की बात नहीं थी. लेकिन एक बच्चा इतने शारीरिक और मानसिक तकलीफ से क्यों गुजरे.'
ये कोई मैजिकल सफर नहीं है, बल्कि एक लंबी और दर्द की मेडिकल प्रक्रिया है. लेकिन तक्ष और कृतिका ने इसी चीज के लिए लंबा इंतजार किया था.
सेक्स रीअसाइनमेंट सर्जरी चाहे आदमी से औरत की हो या औरत से आदमी की, इसके लिए तीन स्टेप्स हैं:
ये एक महंगी प्रक्रिया है और सभी इसका खर्च नहीं उठा सकते हैं. फिर भी इंडिया में इस तरह की काफी सर्जरी हो रही हैं.
तक्ष और कृतिका के सर्जन डॉ रिची गुप्ता बताते हैं कि सिर्फ उनके हॉस्पिटल में ही एक साल में करीब 100-150 सेक्स रीअसाइनमेंट सर्जरी होती है.
इसमें दो तरह की सर्जरी होती है- टॉप सर्जरी और बॉटम सर्जरी. आदमी-से-औरत सर्जरी में बॉटम सर्जरी ज्यादा महत्वपूर्ण है, जिसमें पेनिस हटाना, वजाइना और क्लाइटोरिस बनाना शामिल है.
आदमी-से-औरत सर्जरी:
कुछ लोग ब्रेस्ट डेवलपमेंट नहीं कराते क्योंकि हार्मोन थेरेपी से भी ब्रेस्ट का विकास होने लगता है.
औरत-से-आदमी सर्जरी:
कृतिका अब कानूनी तौर पर शादीशुदा हैं.
कृतिका के ससुराल वाले या ऑफिस के लोग उसके अतीत के बारे में नहीं जानते हैं. कृतिका उन्हें बताने की जरूरत नहीं समझती हैं.
वो कहती हैं, 'मैं क्यों किसी को बताऊं, ये मेरी बेहद निजी बात है. जिसे मेरे साथ अपनी जिंदगी बितानी है, वो ये बात जानता है और यही काफी है.'
सेक्सुअल फीलिंग के सवाल पर वो बताती हैं कि उन्होंने इसलिए अपनी बॉडी में बदलाव नहीं कराया लेकिन ये हर किसी की जिंदगी का अहम हिस्सा है. वो दूसरी औरतों जैसा ही महसूस करती हैं.
वजाइना जिसको बनाया जाता है, वो किसी तरह से अलग नहीं होता.
सबसे जरूरी चीज होती है अपने डॉक्यूमेंट्स में चेंज कराना.
भले ही इसके लिए कानून है, जिससे ट्रांसजेंडर लोग बिना किसी तरह की सफाई पेश किए डॉक्यूमेंट्स में जरूरी बदलाव करा सकते हैं, लेकिन सरकारी अधिकारी उतनी मदद नहीं करते हैं.
तक्ष बताती हैं, 'ऐसा लगा कि हम कुछ गलत कर रहे है हों, जबकि हम गलत नहीं थे.'
जब हम अधिकारों की बात करते हैं, वो डॉक्यूमेंट्स से ही शुरू होती है. कृतिका कठिनाइयों का जिक्र करती हैं:
कृतिका बताती हैं, 'मैंने अपना नाम और जेंडर बदलने की कोशिश की थी. लेकिन भारत सरकार की पॉलिसी के मुताबिक सर्जरी का सर्टिफिकेट दिए बिना ये बदलाव नहीं हो सकता था. मैं सर्जरी कराना चाहती थी लेकिन आर्थिक रूप से कमजोर थी. इसका मतलब ये नहीं है कि सरकार मुझे परेशान होने दे, जो कि हुआ. इसलिए मैंने लड़ने का फैसला किया, न सिर्फ अपने लिए क्योंकि पॉलिसी बदलने पर लाखों ट्रांसजेंडर्स को फायदा होता.'
ट्रांस लोग बाकी समाज से अलग नहीं होते. वे इस समाज का ही हिस्सा हैं. यही वक्त है जब समाज को इस वर्ग की ओर देखना है और वो जो हैं, वैसे अपनाना है. उन्हें वो सभी अधिकार और मौके देने हैं, जो उन्हें भारत का संविधान देता है.
वीडियो एडिटर: प्रशांत चौहान
कैमरा पर्सन: अभय शर्मा, अभिषेक रंजन, अतहर और शिव कुमार मौर्य
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