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इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) ने हाल के आंकड़ों का हवाला देते हुए कहा है कि 1.3 अरब लोगों की आबादी का इलाज करने के लिए भारत में बस 10 लाख एलोपैथिक डॉक्टर हैं. इनमें से केवल 1.1 लाख डॉक्टर सार्वजनिक स्वास्थ्य क्षेत्र में काम करते हैं. इसलिए ग्रामीण क्षेत्रों में करीब 90 करोड़ आबादी स्वास्थ्य देखभाल के लिए इन थोड़े से डॉक्टरों पर ही निर्भर है.
भारत में न तो पर्याप्त अस्पताल हैं, न डॉक्टर, न नर्स और न ही सार्वजनिक स्वास्थ्य कर्मचारी. स्वास्थ्य देखभाल की क्वालिटी और उपलब्धता में बड़ा अंतर है. यह अंतर केवल राज्यों के बीच नहीं है, बल्कि शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में भी है. इसी स्थिति के कारण नीम-हकीम खुद को डॉक्टर की तरह पेश कर मौके का फायदा उठा रहे हैं. डॉक्टरों की अनुपस्थिति में लोगों के पास इलाज के लिए ऐसे फर्जी डॉक्टरों के पास जाने के अलावा अन्य कोई विकल्प नहीं है.
आईएमए के मानद अध्यक्ष डॉ. के.के. अग्रवाल ने कहा, "हाल ही में उत्तर प्रदेश में बच्चों की मौतों का मामला प्रकाश में आया था. इस मामले से स्वास्थ्य सेवा के समक्ष मौजूद दो बड़ी चुनौतियां उजागर हुईं- एक तो डॉक्टर और रोगियों का बिगड़ा हुआ अनुपात और दूसरी, अयोग्य पेशेवरों का डॉक्टरों के भेष में काम करना.
डॉ. अग्रवाल कहते हैं कि कुछ नीम-हकीम तो महज 12वीं तक ही पढ़े होते हैं, इनके पास किसी मेडिकल कॉलेज की कोई योग्यता नहीं होती. चिंता की दूसरी बात यह है कि देश में पर्याप्त प्रशिक्षित डॉक्टर नहीं हैं. कई डॉक्टर सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली में जाना ही नहीं चाहते. नतीजा यह कि वार्ड ब्वॉय तक ग्रामीण इलाकों में खुद को डॉक्टर बताने लगते हैं.
सर्वे के मुताबिक, ग्रामीण इलाकों में प्रति 5 डॉक्टरों में केवल एक चिकित्सक ठीक से प्रशिक्षित और मान्यता प्राप्त है. आईएमए ने नीम हकीमों के खिलाफ कड़ा रुख अपनाया हुआ है. इसी साल जून में दिल्ली चलो आंदोलन किया गया था, जिसमें इस मुद्दे को जोरदार तरीके से उठाया गया था.
आईएमए की सलाह है कि लोग रजिस्टर्ड और योग्य डॉक्टरों से ही इलाज कराएं, क्योंकि वे अनैतिक कार्यो में शामिल नहीं होते और न ही वे कमीशन लेते हैं या न देते हैं. अच्छे डॉक्टर मरीज को ठीक करने के सही उद्देश्य के साथ काम करते हैं और मरीज को हमेशा सही सलाह देते हैं.
(इनपुट आईएनएस से)
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