advertisement
आज 40 करोड़ से ज्यादा इंटरनेट और 20 करोड़ एक्टिव सोशल मीडिया यूजर्स के साथ उम्मीद जताई जा रही है कि भारत जल्द ही सोशल मीडिया और इंटरनेट का सबसे बड़ा बाजार बन सकता है.
4जी कनेक्शन के लॉन्च से इंटरनेट स्पीड बेहतर होने के साथ ही इसका इस्तेमाल भी बढ़ा है और भारतीय अब हफ्ते में करीब 28 घंटे अपने मोबाइल फोन पर खर्च कर रहे हैं.
औसतन, लोग दिन के करीब 2-4 घंटे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर बीता रहे हैं. क्या हमने वास्तव में सोचा था कि यह हमारे ऊपर कोई प्रभाव नहीं डालेगा?
आजकल, लोग सोशल मीडिया को अपने मित्रों और समाज की 'मान्यता या सत्यापन' के लिए इस्तेमाल कर रहे हैं. ये चीजें सोशल मीडिया प्लेटफार्मों की बढ़ती संख्या के साथ बढ़ रही हैं. हम क्या खाते हैं, हम क्या देखते हैं, हम किस चीज का आनंद लेते हैं और हम क्या पहनते हैं, ऐसी कई चीजें लोगों की राय से प्रभावित होती हैं. हमने इस तरह जिंदगी जीना शुरू कर दिया है ताकि हम सोशल मीडिया पर शेयर कर सकें.
जबकि, 'रियल लाइफ' उनका वास्तविक जीवन है, जो सोशल मीडिया द्वारा निर्धारित आदर्शों से मेल नहीं खाता है.
दोस्तों को लगातर छुट्टियों पर जाते हुए या नाइटआउट का आनंद लेते हुए देखना युवा लोगों को यह महसूस करा सकता है कि उनकी जिंदगी में कुछ कमी है, जबकि दूसरे लोग जीवन का आनंद लेते हैं. ऐसी भावनाएं युवाओं में 'तुलना और निराशा' को बढ़ावा दे सकती हैं.
शोध अध्ययन के अनुसार, यह पाया गया कि:
इस तरह के अवलोकनों पर बहस हो सकती है, हालांकि सामने आ रहे कुछ ट्रेंड यह सुझाव देते हैं कि सोशल मीडिया के अधिक उपयोग से मनोवैज्ञानिक परेशानियों में बढ़ोतरी हो सकती है. शोधकर्ताओं का सुझाव है कि ऑनलाइन दुनिया की तीव्रता - जहां किशोर और युवा वयस्क लगातार संपर्क में रहते हैं, वास्तविकता के अवास्तविक प्रतिनिधित्व से दबाव का सामना करते हैं और ऑनलाइन साथियों के दबाव से निपटते हैं. भीड़ में खो जाने का डर (FOMO), बॉडी इमेज जैसे मुद्दे, ये दबाव लगातार खुद की दोस्तों से तुलना के कारण बढ़ते जाते हैं.
सोशल मीडिया से बचने का कोई रास्ता नहीं है. लेकिन वो किशोर जो पहले से ही किसी संवेदनशील समस्या से जूझ रहे हैं जैसे आत्म-सम्मान में कमी, सामाजिक चिंता, बॉडी इमेज के मुद्दे, डिप्रेशन और रिश्तों में समस्याएं, अयोग्यता या 'अच्छे नहीं होने' की भावना के साथ जब वे अपने साथियों की परफेक्ट लाइफ और परफेक्ट बॉडी की तस्वीरों को देखते हैं, तो अपूर्णता के उनके एहसास में बढ़ोतरी होती है.
इसके अलावा, 'आत्म अभिव्यक्ति' का उद्देश्य कभी-कभी एक विरोधाभास बन जाता है, क्योंकि ज्यादातर हम जिन तस्वीरों को पोस्ट करते हैं, वह एडिटेड यानी अत्यधिक संशोधित होती हैं और हमारी 'वास्तविकता' की बजाए स्वयं का एक उन्नत संस्करण होती हैं.
यह जरूरी है कि लोग अपनी वास्तविकता को पहचानें, कॉन्फिडेंट रहें और वे जैसे हैं, खुद को वैसे ही अपनाएं. हालांकि, अगर जिम्मेदारी से इस्तेमाल किया जाए तो सोशल मीडिया एक शानदार और प्रभावी प्लेटफॉर्म हो सकता है. यह ना सिर्फ लोगों के जुड़ने और जिंदगी की कहानियों को शेयर करने के लिए है बल्कि किसी मुद्दे को उठाने और उसे सरकार या लोगों तक पहुंचाने के लिये भी एक शक्तिशाली माध्यम है, जो सकारात्मक रूप से जीवन को प्रभावित कर सकते हैं.
Mpower (जनशक्ति) ये सुझाव देती है:
(डॉ सपना बांगर Mpower में क्लाइंट केयर की प्रमुख हैं. Mpower एक ऐसा संगठन है जिसका उद्देश्य स्टिग्मा को खत्म करना और मानसिक स्वास्थ्य को लेकर संवाद को प्रोत्साहित करना है.)
(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)