मेंबर्स के लिए
lock close icon
Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Fit Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019किस तरह ‘दोहरी जिंदगी’ की वजह बन रहा है सोशल मीडिया?

किस तरह ‘दोहरी जिंदगी’ की वजह बन रहा है सोशल मीडिया?

क्या हम अपनी जिंदगी सोशल मीडिया के हिसाब से जीने लगे हैं? 

डॉ सपना बांगर
फिट
Updated:
भारत में लोग अब हफ्ते के करीब 28 घंटे अपने मोबाइल फोन पर खर्च कर रहे हैं.
i
भारत में लोग अब हफ्ते के करीब 28 घंटे अपने मोबाइल फोन पर खर्च कर रहे हैं.
(फोटो:iStock)

advertisement

आज 40 करोड़ से ज्यादा इंटरनेट और 20 करोड़ एक्टिव सोशल मीडिया यूजर्स के साथ उम्मीद जताई जा रही है कि भारत जल्द ही सोशल मीडिया और इंटरनेट का सबसे बड़ा बाजार बन सकता है.

4जी कनेक्शन के लॉन्च से इंटरनेट स्पीड बेहतर होने के साथ ही इसका इस्तेमाल भी बढ़ा है और भारतीय अब हफ्ते में करीब 28 घंटे अपने मोबाइल फोन पर खर्च कर रहे हैं.

औसतन, लोग दिन के करीब 2-4 घंटे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर बीता रहे हैं. क्या हमने वास्तव में सोचा था कि यह हमारे ऊपर कोई प्रभाव नहीं डालेगा?

यूं तो हमारी जिंदगी में सोशल मीडिया की एंट्री एक ऐसे सुविधाजनक प्लेटफॉर्म के तौर पर हुई, जो हमें हमारे दोस्तों, रिश्तेदारों और परिचितों से जोड़े रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. लेकिन अब यह हर किसी का ध्यान पाने के लिए इस्तेमाल किये जाने वाले एक प्लेटफॉर्म के रूप में भी विकसित हो चुका है.

दोहरी जिंदगी जी रहे हैं लोग

सोशल मीडिया अब हर किसी का ध्यान आकर्षित करने के लिए एक मंच के तौर पर विकसित हुआ है.(फोटो: iStockphoto)

आजकल, लोग सोशल मीडिया को अपने मित्रों और समाज की 'मान्यता या सत्यापन' के लिए इस्तेमाल कर रहे हैं. ये चीजें सोशल मीडिया प्लेटफार्मों की बढ़ती संख्या के साथ बढ़ रही हैं. हम क्या खाते हैं, हम क्या देखते हैं, हम किस चीज का आनंद लेते हैं और हम क्या पहनते हैं, ऐसी कई चीजें लोगों की राय से प्रभावित होती हैं. हमने इस तरह जिंदगी जीना शुरू कर दिया है ताकि हम सोशल मीडिया पर शेयर कर सकें.

‘लोगों की पुष्टि या सत्यापन’ की ये लगातार जरूरत लोगों को दोहरी जिंदगी जीने की ओर धकेल रही है - एक “सोशल लाइफ” और दूसरी “रियल लाइफ”. ‘सोशल मीडिया लाइफ’ को लोग एक आदर्श जीवन की तरह दिखाते हैं, ज्यादातर लोग अपनी जिंदगी की सबसे अच्छी चीजें ही सोशल मीडिया प्रोफाइल पर प्रोजेक्ट करते हैं क्योंकि वे चाहते हैं कि लोग सोचें कि वे अग्रणी हैं.

जबकि, 'रियल लाइफ' उनका वास्तविक जीवन है, जो सोशल मीडिया द्वारा निर्धारित आदर्शों से मेल नहीं खाता है.

दोस्तों को लगातर छुट्टियों पर जाते हुए या नाइटआउट का आनंद लेते हुए देखना युवा लोगों को यह महसूस करा सकता है कि उनकी जिंदगी में कुछ कमी है, जबकि दूसरे लोग जीवन का आनंद लेते हैं. ऐसी भावनाएं युवाओं में 'तुलना और निराशा' को बढ़ावा दे सकती हैं.

शोध अध्ययन के अनुसार, यह पाया गया कि:

  • छह युवाओं में से एक को अपने जीवन में किसी प्वाइंट पर चिंता विकार का अनुभव होगा.
  • पिछले 25 सालों में युवा लोगों में चिंता और अवसाद की दर में 70 प्रतिशत की वृद्धि हुई है.
  • सोशल मीडिया प्लेटफार्मों का इस्तेमाल करने वाले पांच युवाओं में से चार वास्तव में चिंता की भावनाओं को बुरी तरह से बढ़ा लेते हैं.

इस तरह के अवलोकनों पर बहस हो सकती है, हालांकि सामने आ रहे कुछ ट्रेंड यह सुझाव देते हैं कि सोशल मीडिया के अधिक उपयोग से मनोवैज्ञानिक परेशानियों में बढ़ोतरी हो सकती है. शोधकर्ताओं का सुझाव है कि ऑनलाइन दुनिया की तीव्रता - जहां किशोर और युवा वयस्क लगातार संपर्क में रहते हैं, वास्तविकता के अवास्तविक प्रतिनिधित्व से दबाव का सामना करते हैं और ऑनलाइन साथियों के दबाव से निपटते हैं. भीड़ में खो जाने का डर (FOMO), बॉडी इमेज जैसे मुद्दे, ये दबाव लगातार खुद की दोस्तों से तुलना के कारण बढ़ते जाते हैं.

ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT
सोशल मीडिया मौजूदा स्थितियों को और भी बदतर बना देता है. (फोटो: iStockphoto)

सोशल मीडिया से बचने का कोई रास्ता नहीं है. लेकिन वो किशोर जो पहले से ही किसी संवेदनशील समस्या से जूझ रहे हैं जैसे आत्म-सम्मान में कमी, सामाजिक चिंता, बॉडी इमेज के मुद्दे, डिप्रेशन और रिश्तों में समस्याएं, अयोग्यता या 'अच्छे नहीं होने' की भावना के साथ जब वे अपने साथियों की परफेक्ट लाइफ और परफेक्ट बॉडी की तस्वीरों को देखते हैं, तो अपूर्णता के उनके एहसास में बढ़ोतरी होती है.

इसके अलावा, 'आत्म अभिव्यक्ति' का उद्देश्य कभी-कभी एक विरोधाभास बन जाता है, क्योंकि ज्यादातर हम जिन तस्वीरों को पोस्ट करते हैं, वह एडिटेड यानी अत्यधिक संशोधित होती हैं और हमारी 'वास्तविकता' की बजाए स्वयं का एक उन्नत संस्करण होती हैं.

यह जरूरी है कि लोग अपनी वास्तविकता को पहचानें, कॉन्फिडेंट रहें और वे जैसे हैं, खुद को वैसे ही अपनाएं. हालांकि, अगर जिम्मेदारी से इस्तेमाल किया जाए तो सोशल मीडिया एक शानदार और प्रभावी प्लेटफॉर्म हो सकता है. यह ना सिर्फ लोगों के जुड़ने और जिंदगी की कहानियों को शेयर करने के लिए है बल्कि किसी मुद्दे को उठाने और उसे सरकार या लोगों तक पहुंचाने के लिये भी एक शक्तिशाली माध्यम है, जो सकारात्मक रूप से जीवन को प्रभावित कर सकते हैं.

एक्टिव सोशल मीडिया यूजर्स को क्या करना चाहिए?

(फोटो:iStockphoto)

Mpower (जनशक्ति) ये सुझाव देती है:

  • सोशल मीडिया से नियमित रूप से ब्रेक लें जैसे कि वीकेंड पर सोशल मीडिया का इस्तेमाल ना करें यानी स्क्रीन-फ्री वीकेंड मनाएं.
  • युवाओं को आमने-सामने बातचीत के लिए समय निकालना चाहिए और सोशल मीडिया को रिश्तों की जगह लेने की इजाजत देने के बजाए अपने दोस्तों और रिश्तेदारों से मिलना चाहिए.
  • अपने उन शौकों को तवज्जो दें, जिनका सोशल मीडिया से संबंध ना हो, ऐसा करने से आपका ध्यान सोशल मीडिया की ओर कम जाएगा और आप अपनी जिंदगी पर सोशल मीडिया के बढ़ते प्रभाव को कम कर सकेंगे.
  • किसी को खुद की अपने साथियों से तुलना नहीं करनी चाहिए और ध्यान रखें कि वे सोशल मीडिया पर जो देख रहे हैं, वह शायद किसी की जिंदगी का सबसे अच्छा लम्हा हो ना कि उसकी ‘पूरी’ जिंदगी की तस्वीर. इसलिये जरूरी नहीं है कि सोशल मीडिया पर किसी की जिंदगी या कहानी जितनी खूबसूरत और जिंदादिल दिख रही है, वो हर वक्त वैसा ही हो या पूरी तरह से वास्तविक हो.

(डॉ सपना बांगर Mpower में क्लाइंट केयर की प्रमुख हैं. Mpower एक ऐसा संगठन है जिसका उद्देश्य स्टिग्मा को खत्म करना और मानसिक स्वास्थ्य को लेकर संवाद को प्रोत्साहित करना है.)

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

अनलॉक करने के लिए मेंबर बनें
  • साइट पर सभी पेड कंटेंट का एक्सेस
  • क्विंट पर बिना ऐड के सबकुछ पढ़ें
  • स्पेशल प्रोजेक्ट का सबसे पहला प्रीव्यू
आगे बढ़ें

Published: 01 Nov 2018,03:12 PM IST

ADVERTISEMENT
SCROLL FOR NEXT