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आपके शरीर के न्यूरॉन, आपके बाल और आपके पसंदीदा मीट के टुकड़े के बीच कौन सी बात एक जैसी है? सच्चाई ये है कि इन सभी को कृत्रिम रूप से सूक्ष्म स्टेम सेल से उगाया जा सकता है.
ये लैब एक्सपेरिमेंट सिर्फ मजे के लिए नहीं हैं. मेडिकल फील्ड में स्टेम सेल थेरेपी, या स्टेम सेल के इस्तेमाल से बीमारियों का इलाज बढ़ रहा है. इसका इतनी अधिक मात्रा में इस्तेमाल हो रहा है कि इलाज में इसके प्रयोग को नियमित करने के लिए सरकार स्टेम सेल को दवा के रूप में सूचीबद्ध करना चाहती है.
लेकिन स्टेम सेल थेरेपी हकीकत में क्या है? यह कहां मदद कर सकती है? इसके क्या फायदे हैं? कौन इसे पा सकता है? जानिए इस गर्मागर्म चर्चा की पूरी हकीकत.
स्टेम सेल यानी मूल कोशिकाएं शरीर की बिल्डिंग ब्लॉक्स हैं. विखंडन की मदद से ये कोशिकाएं खुद को नया कर सकती हैं. जब स्टेल सेल टूटता है, तो हर नए सेल में स्टेम सेल बने रहने या स्पेशलाइज्ड सेल बनने की क्षमता होती है- जैसे कि मसल सेल, रेड ब्लड सेल या ब्रेन सेल.
कुछ प्रायोगिक दशाओं के तहत इन्हें टिश्यू बनाने या खास काम के लिए अंग-विशेष के सेल्स बनाने के लिए तैयार किया जा सकता है. यही स्टेम सेल थेरेपी का आधार है.
स्टेम सेल आमतौर पर बोन मैरो, सर्कुलेटिंग ब्लड, अमबिलिकल (गर्भनाल) कॉर्ड ब्लड से निकाले जाते हैं और इसका गंभीर बीमारियों के इलाज में इस्तेमाल किया जाता है. उदाहरण के लिए, अगर किसी बीमारी के कारण किसी शख्स के स्वस्थ ब्लड सेल खराब हो गए हैं, तो स्वस्थ डोनर से स्टेम सेल ट्रांसप्लांट किया जा सकता है. इससे उनके शरीर में दोबारा स्वस्थ ब्लड सेल्स बनाना शुरू हो सकता है.
ब्लड से संबंधित बीमारी से लेकर ऑर्थोपेडिक (हड्डियों), यहां तक कि हार्ट डैमेज के मामले में भी स्टेम सेल का इस्तेमाल किया जाता है. लेकिन यहां एक समस्या है.
कुछ स्टेम सेल प्रोसीजर भली प्रकार आजमाए हुए हैं और इनका इलाज में इस्तेमाल किया जाता है. जबकि कई अन्य स्टेम सेल थेरेपी अभी शोध के स्तर पर हैं, और अभी इसका इस्तेमाल क्लीनिकल ट्रायल के तौर पर किया जाता है.
भारत में मान्यता प्राप्त ट्रीटमेंट मुख्यतः हीमाटोपायोटिक स्टेम सेल ट्रांसप्लांटेशन से जुड़े हैं, जिसमें बोन मैरो ट्रांसप्लांटेशन, सर्कुलेटिंग ब्लड या अमबिलिकल कॉर्ड ब्लड स्टेम सेल शामिल है.
हालांकि सरकार की नई अधिसूचना जो इस सेक्टर को नियमित करने के मकसद से जारी की गई है, उसमें परिभाषित किया गया है कि डॉक्टर अपने मरीजों को किस तरह का इलाज दे सकते हैं.
फिट से बातचीत में स्टेम सेल सोसायटी ऑफ इंडिया के वाइस प्रेसिडेंट डॉ रोहित कुलकर्णी सरकार के इस कदम का स्वागत करते हैं और समझाते हैंः
ड्रग एंड कॉस्मेटिक्स एक्ट में इस प्रस्तावित बदलाव के अनुसार स्टेम सेल्स में बड़े पैमाने पर बदलाव को ड्रग माना जाएगा और इसके लिए रेगुलेटर की मंजूरी लेनी होगी.
हालांकि इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR) जो कि स्टेम सेल थेरेपी के लिए गाइडलाइंस की तैयारी कर रहा है, इसमें और स्पष्टता चाहता है. ICMR की डॉ गीता जोटवानी का कहना है कि स्टेम सेल थेरेपी का देश भर में दुरुपयोग किया जा रहा है और इसे ज्यादा स्पष्ट तरीके से परिभाषित किए जाने की जरूरत है.
मेनस्ट्रुएल ब्लड, कॉर्ड टिश्यू, प्लेसेंटा, टूथ एक्सट्रैक्ट, एडिपॉज टिश्यू और डेंटल पल्प से स्टेम सेल हार्वेस्ट किया जा सकता है. इसे स्टेरेलाइज्ड लैब्स में स्टोर किया जा सकता है और इनका लाइफ स्पैन करीब 20 साल होता है.
डॉ जोटवानी का कहना है कि, लेकिन गाइडलाइंस के मुताबिक इनमें से किसी की भी इजाजत नहीं है. डॉ जोटवानी कहती हैं, “इस समय सेंट्रल ड्रग स्टैंडर्ड कंट्रोल ऑर्गेनाइजेशन के पास पंजीकृत बैंक कॉर्ड ब्लड से निकाले स्टेम सेल को स्टोर कर सकते हैं, लेकिन कॉर्ड टिश्यू को नहीं.”
चिकित्सा जगत में स्टेम सेल थेरेपी काफी बड़ा क्षेत्र है. निश्चित रूप से इसका फायदा इस बात पर निर्भर करता है कि इसका कैसे और कहां इस्तेमाल किया जाता है.
उदाहरण के लिए सेरिब्रल पाल्सी, ऑटिज्म जैसी न्यूरोलॉजिकल बीमारियों में इलाज का कोई और विकल्प नहीं है. डॉ राोहित कुलकर्णी का कहना है कि ऐसे में अगर स्टेम सेल्स 10-12 फीसद भी सुधार ला देता है, तो यह वाकई बहुत अच्छा है.
अपोलो हॉस्पिटल में ऑर्थोपेडिक सर्जन डॉ यश गुलाटी का कहना है कि स्टेम सेल अभी भी बहुत विशिष्ट है और इसे मुख्यधारा के इलाज के तौर पर नहीं देखा जाना चाहिए, जो ऑर्थोपेडिक (हड्डी) क्षेत्र में परंपरागत पद्धतियों की जगह ले. साथ ही वह यह भी जोड़ते हैं, “मुझे उम्मीद है कि पर्याप्त रिसर्च के बाद अगले 10-15 साल में यह मुख्यधारा में शामिल हो जाएगा.”
सच्चाई यह है कि, इस बारे में ज्यादा जानकारी नहीं है. यही वजह है की गाइडलाइंस में मरीज को कोई इलाज दिए जाने से पहले क्लीनिकल ट्रायल पर जोर दिया गया है. ट्रायल न सिर्फ यह बताएगा कि विभिन्न बीमारियों में स्टेम सेल थेरेपी काम कर सकती है, बल्कि यह भी बताएगा कि इसका कोई साइड इफेक्ट है या नहीं.
उदाहरण के लिए, सेरिब्रल पाल्सी के लिए स्टेम सेल थेरेपी पर 2016 के एक अध्ययन में पाया गया कि 17 में से 5 मरीजों ने हल्के सिरदर्द, बुखार या उलटी के साइड इफेक्ट की बात कही थी. इन सभी का कुछ दिनों में समाधान कर दिया गया था. किसी और गंभीर घटना का जिक्र नहीं किया गया था.
कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि यह विकसित होता क्षेत्र है, जो बेहतर इलाज की उम्मीद जगाता है, लेकिन इसे विश्वसनीयता पाने के लिए अभी लंबा सफर तय करना है.
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