advertisement
आपने धूम्रपान के बारे में जितना बुरा सोचा है, यह उससे कहीं अधिक बुरा है.
लोगों के धूम्रपान करने के कई कारण हो सकते हैं. इसमें निकोटिन एक ऐसा मादक पदार्थ है, जो किसी के चाहने पर भी उसे धूम्रपान नहीं छोड़ने देता.
लेकिन, नई खोजें बता रही हैं कि अगर किसी स्मोकर की आवाज में घरघराहट आ जाए तो इसे सीओपीडी का शुरूआती संकेत माना जाना चाहिए. सीओपीडी, यानी क्रोनिक ऑब्सट्रक्टिक पल्मोनरी डिजीज.
यह फेंफड़ों में संक्रमण की तेजी से फैलने वाली अवस्था है, जिसकी वजह से डेढ़ करोड़ भारतीयों का दम घुट रहा है.
इसलिए अगर धूम्रपान छोड़ना आपके नए साल का संकल्प हो, तो उस पर दृढ़ बने रहने का एक और मजबूत कारण है.
सीओपीडी आपके हवा की नली में धूप से हुई झुलसन जैसा है. जब कोशिकाएं जहरीले पदार्थो के संपर्क में लंबे वक्त तक रहती हैं, तो उनमें सूजने की प्रवृत्ति होती है.
सीओपीडी में, वो इतना झुलस जाती हैं कि वह हवा के आने-जाने को रोकने लगती हैं. खांसी, थूक निकलना और हल्की कसरत में भी दम फूलना इसके शुरूआती लक्षण हैं.
ब्रिटिश थोरैसिक सोसायटी में प्रकाशित एक अध्ययन के मुताबिक, 70 फीसदी स्मोकर लगातार खांसी रहने पर अपने परिवार या दोस्त को डॉक्टर के पास जाने को कहते है. लेकिन उनमें से महज 15 फीसदी ही यह सलाह खुद पर लागू करते हैं.
पब्लिक हेल्थ इंग्लैंड की एक रिपोर्ट स्मोकर्स से गुजारिश करती है कि वह लगातार हो रही खांसी को नजरअंदाज न करें. क्योंकि, खांसी का मतलब है सीओपीडी की शुरूआत, जो फेंफड़ों में कई गड़बड़ियों का मिलाजुला रूप है और इसमें क्रोनिक ब्रोंकाइटिस और इम्फेसिमा शामिल हैं.
हालांकि, फेंफड़ों के कैंसर को घातक माना जाता है, और यह 18 लाख भारतीयों को हर साल अपनी गिरफ्त में लेता है, उसके मुकाबले सीओपीडी देश में सालाना 15 लाख लोगों पर हमला करता है. सीओपीडी की वजह से होने वाली मौतों की संख्या अचानक काफी बढ़ गई हैं. यह पिछले दशक से तकरीबन दोगुनी हो गई हैं और सबसे नाटकीय उछाल तो महिलाओं की संख्या में आया है. (स्रोतः विश्व स्वास्थ्य संगठन)
अभी भी, इस बीमारी को लेकर सीमित जागरूकता है और इसकी दवाओं और इलाज के विकल्पों को लेकर बेहद कम शोध हुए हैं. डॉक्टरों को हताश करने वाली सबसे बड़ी बात है कि एक ओर तो सीओपीडी का इलाज नहीं है लेकिन वहीं मोटे तौर पर इससे बचा जा सकता है.
हालांकि, इस बीमारी में जीन की अपनी भूमिका होती है, लेकिन भारत में 10 में से 9 मामले धूम्रपान की वजह से जोर पकड़ते हैं. तंबाकू की आदत कितनी जोरदार होती है उसके लिहाज से छोड़ने को कहना आसान है और करना मुश्किल, और सीओपीडी की गिरफ्त में आए 10 फीसदी लोगों के लिए तो छोड़ना भी विकल्प नहीं है.
स्मोकर्स सामान्य तौर पर सीओपीडी के शुरूआती लक्षणों को स्मोकर्स कफ कह कर नजरअंदाज कर देते हैं और धूम्रपान करते रहते हैं. यही वजह है कि यह बीमारी बढ़ती रहती है और घातक बन जाती है.
पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन ऑफ इंडिया के मुताबिक, सभी स्मोकर्स के करीब 30 से 40 फीसदी को सीओपीडी होता है. लेकिन डरावना तथ्य यह है कि अगर कोई 25 से 30 साल तक भी धूम्रपान न करे, तो भी आप सीओपीडी से मुक्त नहीं हैं. जोखिम इस बात पर निर्भर करता है कि आपने आखिर कितना धुआं पिया है.
अगर आपने रोजाना एक सिगरेट एक साल तक पिया है, तो आपका जोखिम कम है. लेकिन आपने 20 साल तक रोजाना एक पैकेट खत्म की है, तो दो या तीन दशक के बाद भी आप पर खतरा बरकरार रहेगा.
इसलिए, एक बार आप बीमारी की गिरफ्त में आ गए, तो आपको इसे जिंदगी के आखिर तक ढोना होगा. इसका सामना दवाओं के जरिए किया जा सकता है, लेकिन इस क्षेत्र में हुए बेहद कम शोधों की वजह से डॉक्टरों को ज्यादा अंदाजा नहीं है कि कौन सी दवा उम्रदराज सीओपीडी मरीज के लिए कारगर है.
इस बीमारी को शुरू में ही पहचानने का एक ही तरीका है, नियमित तौर पर फेंफड़ों की जांच. इसका न तो कोई बचाव है और ना ही कोई नया उपचार पाइपलाईन में है, और चूंकि यह बीमारी खुद की बुलाई होती है इसलिए इसके लिए कैंसर या बाकी बीमारियों की तरह सहानुभूतिपूर्ण फंडिंग भी नहीं होगी.
इसलिए अगर आप स्मोकर हैं, तो इसे हमेशा छोड़ने के संकेत के तौर पर लीजिए कि अगर आप भविष्य में इलाज भी हासिल कर पाएं तो भी एक धूम्रपान नहीं करने वाला आपसे बेहतर स्थितियों में रहेगा.
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)
Published: undefined