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यूरिनरी ट्रैक्ट इंफेक्शन (यूटीआई) इंसानों में सबसे आम बैक्टीरियल इंफेक्शन है. दुनियाभर में इस इंफेक्शन से 15 करोड़ से अधिक लोग पीड़ित हैं.
आंकड़े दर्शाते हैं कि लगभग 12 प्रतिशत पुरुष और लगभग 40 प्रतिशत महिलाओं में उनके लाइफटाइम के दौरान कम से कम एक बार यूटीआई, जिसे मूत्रमार्ग का संक्रमण भी कहते हैं, होता है. जबकि इससे संक्रमित महिलाओं में 40 फीसदी महिलाओं में इसके लक्षण दोबारा दिख सकते हैं.
प्रेग्नेंट और मेनोपॉजल महिलाओं को भी इंफेक्शन का खतरा अधिक होता है. ये उनकी बॉडी में होने वाले कई हार्मोनल और शारीरिक बदलावों के कारण होता है. पुरुषों में, प्रोस्ट्रेट ग्रंथि के बढ़ने या मूत्र के प्रवाह में रुकावट से उन्हें संक्रमण का खतरा हो सकता है.
लंबे समय तक यूटीआई से बैक्टीरिया किडनी में फैल सकता है. खासकर प्रेग्नेंट महिलाओं और डायबिटिज रोगियों में, जिससे किडनी पूरी तरह से खराब हो सकती है.
तो, एक इंफेक्शन जो इतना व्यापक है और जिसके इस तरह के गंभीर परिणाम हैं, उसका आवश्यक रूप से टीका होना चाहिए. है ना? लेकिन ऐसा है नहीं.
आइए समझते हैं कि यूटीआई के लिए अभी भी कोई टीका क्यों नहीं है?
यूरिनरी ट्रैक्ट का इंफेक्शन यूरिनरी सिस्टम के किसी भी हिस्से (किडनी, येरेटर्स, यूरिनरी ब्लैडर और यूरेथरा सहित) में बैक्टीरिया के कारण होने वाला इंफेक्शन है. यह तब विकसित होता है, जब यूरिनरी ट्रैक्ट में प्रवेश करने के बाद बैक्टीरिया यूरिनरी ब्लैडर में बढ़ना शुरू कर देते हैं. ऐसे मामलों में, जब यूरिनरी सिस्टम इस बैक्टीरिया को नष्ट करने में सक्षम नहीं होता है, तो ये फैलता है और इंफेक्शन के रूप में डेवलप होता है.
तो स्वाभाविक रूप से एक यूरिन टेस्ट से ज्यादातर मामलों का पता चल जाता है. अक्सर माना जाता है कि ये इंफेक्शन थोड़े समय के लिए होता है. डॉक्टर अक्सर यंग पेशेंट के लिए एंटीबायोटिक दवाओं का एक कोर्स सुझाते हैं.
FIT से पहले हुई बातचीत में डॉ एन सुब्रमण्यन, वरिष्ठ सलाहकार - यूरोलॉजी, इंद्रप्रस्थ अपोलो अस्पताल, दिल्ली ने बताया था:
लेकिन हजारों महिलाओं जिनको बार-बार ये इंफेक्शन होता है और जिनका इंफेक्शन पुराना हो जाता है, उन्हें शॉर्ट टर्म के एंटीबायोटिक्स से फायदा नहीं होता है. क्यों?
शायद इसका कारण इस तथ्य में निहित है कि एक्सपर्ट यह पता लगाने में असमर्थ हैं कि कौन से बैक्टीरिया से इंफेक्शन हो रहा है या क्या ये बैक्टीरिया का एक ग्रुप है. हालांकि सभी UTIs में से 80 प्रतिशत का कारण E.coli को माना जाता है. फिर भी इस क्षेत्र में रिसर्च की कमी है.
द गार्जियन की एक रिपोर्ट के अनुसार, लंदन में प्रोफेसर मालोन-ली और उनकी टीम टेस्ट कर रही है, जो ये समझने में मदद कर सकता है कि बार-बार होने वाली यूटीआई का इलाज क्यों मुश्किल है.
जब प्रोफेसर ली की टीम ने कुछ ब्लैडर सेल्स के साथ बैक्टीरिया की प्रजातियों का एक समूह विकसित किया, तो उन्होंने पाया कि बैक्टीरिया के पास इलाज से बचने का एक तरीका था. वे ब्लैडर की दीवार के अंदरूनी हिस्से पर ‘घोंसला’ ’बनाएंगे और अंत में महीनों तक स्लीप मोड में रहेंगे, जिससे उन्हें एंटीबायोटिक दवाओं से बचने में मदद मिलेगी.
टीम का मानना है कि यही कारण है कि कुछ महिलाओं में फिर से इंफेक्शन होता है और थोड़े समय तक के इलाज का कोई प्रभाव नहीं पड़ता है. चूंकि ब्लैडर की दीवार लगभग नौ महीनों में फिर से तैयार हो जाती है, इसलिए रोगियों को इंफेक्शन से पूरी तरह छुटकारा पाने के लिए कम से कम इतने समय तक इलाज करना चाहिए.
लेकिन उनका दृष्टिकोण एंटीबायोटिक प्रतिरोध के बारे में गंभीर मुद्दों को भी उठाता है. एंटीबायोटिक दवाओं का अधिक उपयोग बैक्टीरिया को समय के साथ प्रतिरोधी बनने का कारण बन सकता है. इससे न केवल रोगियों के लिए बल्कि पर्यावरण और सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए और अधिक मुद्दे पैदा हो सकते हैं.
क्या कोई विकल्प नहीं है?
वेरीवेल हेल्थ में साल 2018 की रिपोर्ट में कहा गया है कि जुलाई 2017 में फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (एफडीए) ने सिकोइया साइंसेज के FimCH यूटीआई वैक्सीन की मंजूरी दी थी. यह मंजूरी फास्ट ट्रैक डेजिगनेशन (गंभीर स्थितियों का इलाज करने के लिए दवाओं की समीक्षा में तेजी लाने के लिए) दी गई थी. इसका मतलब ये है कि एक बार मंजूरी मिलने के बाद, ये टीका अमेरिका में यूटीआई के लिए पहला टीका बन सकता है.
लेकिन इसके बाद से इस पर कोई अपडेट नहीं आया.
इससे पहले जर्नल नेचर में 2016 में प्रकाशित एक स्टडी में, एक ओरल, नॉन-एंटीबायोटिक दवा का उपयोग करने की एक संभावना पर प्रकाश डाला गया था, जो प्रोटीन पर हमला करने में मदद कर सकता है. FimH जो ई.कोली जैसे बैक्टीरिया को ब्लैडर के आंतरिक भाग में चिपकने में मदद करता है, इससे ही इंफेक्शन होता है.
पीएलओएस जर्नल में 2015 में प्रकाशित एक अन्य स्टडी में पाया गया कि एक 'इम्यून बूस्टिंग एजेंट' यूटीआई के खिलाफ एक नेचुरल डिफेंस के रूप में कार्य कर सकता है.
हालांकि, परीक्षणों को बिना किसी ठोस समाधान के बीच में ही छोड़ दिया गया.
तो क्या यूटीआई के टीके की कोई उम्मीद नहीं है?
1950 के दशक में यूटीआई वैक्सीन तैयार करने के काम ने मेडिकल कम्युनिटी का ध्यान आकर्षित किया और तब से, कई तरह की स्टडी की गई हैं.
हम अब साल 2019 में पहुंच चुके हैं, 60 साल बाद भी हम टीके का इंतजार कर रहे हैं. एक आश्चर्य हो सकता है कि क्या अभी भी एक टीका विकसित करने का इरादा बरकरार है.
इस फील्ड में रहे रिसर्चर्स का तर्क है कि एंटीबायोटिक दवाओं को अक्सर यूटीआई के रोगियों के लिए एक लंबी अवधि के लिए निर्धारित किया जाता है. हमेशा इससे दवा कंपनियों के लिए अधिक पैसा कमाने की राह बनती है. अगर एक बार की दवा से ही इंफेक्शन का इलाज हो सकेगा, तो शायद दवा कंपनियों के लिए इतना लाभ कमाना संभव नहीं हो सकेगा. इसलिए भले ही रिसर्चर्स ने एक टीके के लिए ट्रायल किए हों, लेकिन वे बड़े खिलाड़ियों के प्रतिरोध का सामना करेंगे.
और दर्द से पीड़ित महिलाओं का लगातार मजाक बनाना पूरी स्थिति को बदतर बना देता है.
इसलिए, अगर आप यूटीआई से पीड़ित हैं, तो संभावना है कि आप तब तक एंटीबायोटिक्स लेने के लिए मजबूर होंगी, जब तक कि कोई चमत्कार एफडीए से मंजूर नई दवा नहीं बना देता है.
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Published: 07 Mar 2019,04:12 PM IST