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कैमरा: सुमित बडोला
वीडियो एडिटर: प्रशांत चौहान
एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम (AES) इंडिया में एक सीरियस पब्लिक हेल्थ प्रॉब्लम है. हर साल देश के किसी न किसी हिस्से में ये कभी जापानी इंसेफेलाइटिस, कभी चमकी बुखार, कभी दिमागी बुखार तो कभी इंसेफेलोपैथी के रूप में कहर बरपाता है.
एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम में बुखार होने के साथ पेशेंट के मेंटल स्टेटस में बदलाव देखा जाता है, जिसमें कन्फ्यूजन, बेहोशी, कोमा या मरीज को दौरा पड़ना शामिल है.
इंसेफेलाइटिस में:
कमजोरी, मांसपेशियों में दर्द, भूख न लगना जैसे लक्षण भी नजर आ सकते हैं.
बुखार के साथ अगर पेशेंट को बहुत ज्यादा सुस्ती या बेहोशी या अकड़न हो, तो ये खतरनाक हो सकता है.
एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम के कई कारण हो सकते हैं और ज्यादातर मामलों में इसके वजह की पहचान तक नहीं हो पाती.
इसलिए इन्हें दो कैटेगरी में बांटा गया है:
Known Acute Encephalitis Syndrome भी दो तरह का हो सकता है:
वायरल इंसेफेलाइटिस: जापानी इंसेफेलाइटिस वायरस (JEV), एंटरोवायरस, चांदीपुरा वायरस (CHPV), निपाह वायरस (NiV), हर्पीस वायरस और मीजल्स, मम्प्स, या डेंगू के वायरस से हो सकता है.
नॉन वायरल इंसेफेलाइटिस: बैक्टीरियल, ट्यूबरक्यूलर,पैरासिटिक, स्क्रब टाइफस, प्रोटोजोअल या फंगल इंफेक्शन से हो सकता है. केमिकल, कुछ फलों और कीटनाशकों के टॉक्सिन इसकी वजह हो सकते हैं. गैर-संक्रामक इंफ्लेमेटरी कंडिशन से भी इंसेफेलाइटिस हो सकता है.
इसमें हीट स्ट्रोक, हाइपोग्लाइसीमिया यानी बहुत लो ब्लड शुगर और कुपोषण को जान जाने की वजह बताया जाता है.
इसीलिए सबसे पहले इसके कारण का पता लगाने की जरूरत है, तभी इसका पूरी तरह से खात्मा किया जा सकता है.
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Published: 28 Jun 2019,07:47 PM IST