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इबोला से लेकर HIV: ग्लोबल हेल्थ के लिए चुनौती हैं ये 10 मुद्दे

WHO और दूसरे हेल्थकेयर प्रोवाइडर्स को इन चुनौतियों पर तुरंत ध्यान देने की जरूरत है.

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स्वास्थ्य से जुड़े वो दस मुद्दे जिन पर तुरंत ध्यान देने की जरूरत है
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स्वास्थ्य से जुड़े वो दस मुद्दे जिन पर तुरंत ध्यान देने की जरूरत है
(फोटो: iStockphoto)

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हमने साल 2018 में वायु प्रदूषण से लेकर इबोला के प्रकोप तक स्वास्थ्य से जुड़ी कई समस्याओं का सामना किया.

इस साल 2019 में दुनिया भर की 3 अरब आबादी को बचाने के लिए वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन (WHO) ने एक नई पंचवर्षीय रणनीतिक योजना शुरू की है. ये योजना ऐसी होगी:

एक अरब से अधिक लोगों तक यूनिवर्सल हेल्थ कवरेज, एक अरब से अधिक लोगों को हेल्थ इमरजेंसी से सुरक्षा और एक अरब से अधिक लोगों के लिए बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं सुनिश्चित करना.

यहां ऐसे 10 हेल्थ से जुड़े मुद्दों की लिस्ट पेश की जा रही है, जिन पर इस साल WHO और दूसरे हेल्थकेयर प्रोवाइडर्स को तुरंत ध्यान देने की जरूरत है:

1. वायु प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन

प्रदूषित हवा में सांस लेने से दुनिया में हर साल 70 लाख लोगों की मौत होती है. (फोटो: एपी)

प्रदूषित हवा में सांस लेने से दुनिया में हर साल 70 लाख लोगों की मौत हो जाती है. इससे एक अरब से अधिक लोगों को नुकसान होता है. WHO के महानिदेशक डॉ टेड्रोस एधानोम घेब्रेयेसस ने वायु प्रदूषण को ‘नया तंबाकू’ कहा था.

डॉ टेड्रोस ने द गार्जियन के लिए लिखे एक लेख में वायु प्रदूषण को ‘एक साइलेंट पब्लिक हेल्थ इमरजेंसी’ बताते हुए लिखा था:

दुनिया ने तंबाकू के मामले में सुधार किया है. अब यही काम इसे आवश्यक रूप से ‘नए तंबाकू’ के लिए भी करना है. नए तंबाकू से आशय उस जहरीली हवा से है, जिसमें अरबों लोग रोज सांस लेते हैं. अमीर या गरीब कोई भी, वायु प्रदूषण से नहीं बच सकता है.

पिछले साल अक्टूबर 2018 में WHO द्वारा पहली बार ‘ग्लोबल कॉन्फ्रेंस ऑन एयर पॉल्यूशन एंड हेल्थ’ का जेनेवा में आयोजन कराया गया. इसमें कई देशों के स्वास्थ्य और पर्यावरण मंत्री और दूसरे प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया था. इस सम्मेलन का मकसद उन रणनीतियों को लागू करना था, जो वायु प्रदूषण को कम करने के प्रयासों में तेजी लाने में मदद कर सकें.

एयर पॉल्यूशन से कई तरह की स्वास्थ्य समस्याओं का खतरा होता है. डिमेंशिया से लेकर अस्थमा और यहां तक कि हृदय की संरचना में परिवर्तन तक. हाल की रिसर्च कहती है कि वायु प्रदूषण का कोई ‘सुरक्षित स्तर’ नहीं है.

2. गैर-संचारी रोग

बचपन से लेकर बुढ़ापे तक जीवन के सभी चरणों में दुनिया भर में अरबों लोग गैर-संचारी रोगों से प्रभावित हैं. (फोटो: iStockphoto)

दुनिया में गैर संचारी रोगों (Non-Communicable Diseases) पर WHO की एक रिपोर्ट में कहा गया है:

बचपन से लेकर बुढ़ापे तक दुनिया भर में अरबों लोग गैर-संचारी रोगों से प्रभावित होते हैं. जैसे-जैसे दुनिया में उम्रदराज हो रहे लोगों की तादाद बढ़ रही है, गैर-संचारी रोगों की रोकथाम और पूरा प्रबंधन आसान नहीं है.

गैर-संचारी रोगों में दिल से जुड़ी बीमारियां, कैंसर, डायबिटीज, सांस से जुड़ी बीमारियां और मेंटल हेल्थ की चुनौतियां शामिल हैं. दुनिया भर में 4.1 करोड़ मौतों या 71 फीसदी मौतों की वजह गैर-संचारी रोग हैं.

रिपोर्ट कहती है, गैर-संचारी रोगों के खिलाफ लड़ाई में अकाल मृत्यु में कमी, शराब-तंबाकू के प्रयोग में कमी, शारीरिक निष्क्रियता और अनहेल्दी डाइट से निपटना प्रमुख चुनौतियों में से एक है.

रिपोर्ट में कुछ अन्य चुनौतियों का सामना करने की भी बात कही गई है, जिसमें स्वास्थ्य से जुड़ी बेहतर चीजों को अमल में लाना है. इनमें न सिर्फ राजनीतिक समर्थन की कमी है बल्कि तय किए गए नॉर्म्स को लागू करना भी शामिल है. इसमें विधान या कानून, स्टैंडर्ड को लागू करना और पर्याप्त निवेश प्राप्त करने से जुड़ी सभी बाधाओं को दूर करना शामिल है.

डब्ल्यूएचओ का लक्ष्य ‘सरकारों के साथ मिलकर काम करना है ताकि उन्हें 2030 तक फिजिकल इनएक्टिविटी को 15 प्रतिशत कम करने के वैश्विक लक्ष्य को पूरा करने में मदद मिल सके.'

3. इन्फ्लूएंजा

WHO के मुताबिक इन्फ्लूएंजा यानी फ्लू दुनिया भर में महामारी का रूप ले सकती है, लेकिन कब और कैसे, ये स्पष्ट नहीं है. महामारी के किसी भी लक्षण का पता लगाने के लिए विभिन्न इन्फ्लूएंजा वायरस की लगातार निगरानी की जा रही है.

डब्ल्यूएचओ हर साल सुझाव देता है कि फ्लू वैक्सीन में वायरस के कौन से स्ट्रेन्स को शामिल किया जाना चाहिए ताकि सीजनल फ्लू से आबादी की सुरक्षा की जा सके.

वर्ष 2019 के लिए, डब्ल्यूएचओ ने विशेष रूप से विकासशील देशों में डायग्नोस्टिक्स, टीके और एंटीवायरल (उपचार) की प्रभावी और समान पहुंच सुनिश्चित करने के लिए सभी प्रमुख पक्षों के साथ साझेदारी की है.

4. बुनियादी स्वास्थ्य सेवाओं की कमी

WHO ने वैश्विक आबादी में कम से कम 22 प्रतिशत ऐसे लोगों की पहचान की है, जिनकी बुनियादी स्वास्थ्य सेवाओं तक कोई पहुंच नहीं है क्योंकि वे ऐसी जगहों पर रहते हैं, जहां स्वास्थ्य सुविधाएं मौजूद नहीं हैं.

सूखा, अकाल, संघर्ष जैसी चुनौतियां इन लोगों को कई बीमारियों और संक्रमणों की चपेट में ले लेती हैं.

डब्ल्यूएचओ की योजना ऐसे राष्ट्रों की सरकार के साथ काम करना जारी रखना है ताकि प्रभावित आबादी को बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं दी जा सकें.

5. एंटीबायोटिक रेजिस्टेंस या प्रतिरोध

भारत शायद दुनिया में एंटीबायोटिक दवाओं का सबसे ज्यादा दुरुपयोग करने वाला देश है. (फोटो: iStockphoto)

भारत शायद दुनिया में एंटीबायोटिक दवाओं का सबसे ज्यादा दुरुपयोग करने वाला देश है. प्रोसीडिंग्स ऑफ द नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज (PNAS) में पब्लिश एक लेटेस्ट पेपर के मुताबिक भारत में एंटीबायोटिक दवाओं का उपयोग वर्ष 2000 से 2015 के बीच 103 प्रतिशत हो गया. यह सब तब है, जब हमारे अस्पतालों, पर्यावरण में मल्टी ड्रग रेजिस्टेंस बैक्टीरिया मौजूद हैं और फैल रहे हैं.

विश्व स्वास्थ्य संगठन का कहना है कि वह रोगाणुरोधी प्रतिरोध (antimicrobial resistance) से निपटने के लिए एक ग्लोबल एक्शन प्लान लागू करेगा. इसमें जागरुकता और जानकारी में बढ़ोतरी, संक्रमण को कम करने और रोगाणुरोधकों के विवेकपूर्ण उपयोग को प्रोत्साहित करना शामिल होगा.

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6. इबोला जैसी बीमारी फैलाने वाले रोगाणु

नवंबर 2018 में कांगो में इबोला के प्रकोप इतिहास का दूसरा सबसे बड़ा प्रकोप कहा गया.(फोटो: पीटीआई)

नवंबर 2018 में, डब्ल्यूएचओ ने कांगो में इबोला के घातक प्रकोप को इतिहास का दूसरा सबसे बड़ी बीमारी का प्रकोप माना. इससे पहले केवल पश्चिम अफ्रीका में फैली विनाशकारी बीमारी में कुछ साल पहले हजारों लोग मारे गए थे.

डब्ल्यूएचओ के इमरजेंसी चीफ डॉ पीटर सलाम ने इसे ‘एक दुखद घटना’ कहा था. कांगो के स्वास्थ्य मंत्रालय की घोषणा के मुताबिक मामलों की संख्या 426 तक पहुंच गई थी. इसमें 379 पक्के मामले और 47 संभावित मामले शामिल थे.

इससे पहले मई 2018 में WHO ने घोषणा की थी कि इबोला से कांगो की पब्लिक हेल्थ को बहुत ज्यादा जोखिम है.

डब्ल्यूएचओ ने खतरनाक रोगाणुओं की एक सूची तैयार की है, जो पब्लिक हेल्थ इमरजेंसी हो सकते हैं.

7. प्राइमरी हेल्थ केयर की कमी

डब्ल्यूएचओ प्राइमरी हेल्थ केयर मजबूत करने के लिए कई देशों के साथ मिलकर काम करने की योजना बना रहा है. (फोटो: पीटीआई)

इंडियास्पेंड की एक रिपोर्ट के अनुसार, सार्वजनिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों का मानना है कि भारत को निश्चित से व्यापक स्वास्थ्य कार्यक्रमों की ओर बढ़ना है. इनकी गुणवत्ता और पहुंच में सुधार करना है. मध्य-स्तर के स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं की नियुक्ति को बढ़ाना है. यूनिवर्सल हेल्थ कवरेज को प्राप्त करने के संबंध में प्राथमिक देखभाल में सुधार के लिए फंड बढ़ाना है.

स्वास्थ्य केवल बीमारी या दुर्बलता का ना होना ही नहीं है. बल्कि यह एक मौलिक मानव अधिकार है, जिसे 40 साल पहले 1978 में कजाकिस्तान में अल्मा-अता डिक्लेरशन में स्वीकार किया गया था. 25 और 26 अक्टूबर 2018 को इस घोषणा को दोहराते हुए दुनिया भर के 197 देशों ने अस्ताना की घोषणा पर हस्ताक्षर किए. इन देशों ने यूनिवर्सल हेल्थ कवरेज को हासिल करने के लिए प्राइमरी हेल्थ केयर को एक आवश्यक कदम के रूप में मजबूत करने की शपथ ली.

8. डेंगू

डेंगू से दुनिया भर में हर साल 5 से 10 करोड़ लोग संक्रमित होते हैं.(फोटो: iStockphoto/FIT)

WHO ने बताया कि दुनिया की लगभग आधी आबादी के डेंगू से संक्रमित होने का खतरा है. डेंगू से दुनिया भर में हर साल 5 से 10 करोड़ लोग संक्रमित होते हैं.

डेंगू बुखार, जो मुख्य रूप से एक वायरस के कारण होता है, संक्रमित एडीज एजिप्टी मच्छर के काटने से होता है. डेंगू बुखार के लक्षण आमतौर पर संक्रमित मच्छर द्वारा काटने के 4-7 दिन बाद दिखाई देते हैं और 2-7 दिनों तक रहते हैं.

डब्ल्यूएचओ का सुझाव है कि जब तेज बुखार के साथ तेज सिरदर्द, जोड़ों और मांसपेशियों में दर्द, उल्टी, मतली और हल्के रक्तस्राव में से कम से कम दो लक्षण हों, तो डेंगू की जांच जरूर करानी चाहिए.

डब्ल्यूएचओ के डेंगू नियंत्रण की नीति का उद्देश्य साल 2020 तक इस बीमारी से होने वाली मौतों में 50 प्रतिशत की कमी लाना है.

9. एचआईवी

वर्ष 2030 में सालाना 2,70,000 बच्चों और किशोरों को एचआईवी वायरस से संक्रमित होने का अनुमान लगाया गया है. (फोटो: iStockphoto)

दुनिया साल 2030 तक एड्स के खात्मे के लक्ष्य से कितनी दूर है, इस पर वास्तविक स्थिति यूनिसेफ की एक रिपोर्ट जाहिर करती है, जिसे दिसंबर, 2018 में जारी किया गया. रिपोर्ट में पिछले एक दशक में 0-9 वर्ष की आयु के बच्चों के बीच की गई उल्लेखनीय प्रगति की सराहना करते हुए, किशोरों में एचआईवी को रोकने के प्रयासों में कमी की बात कही गई.

साल 2018 से 2030 के बीच एचआईवी रोकथाम, परीक्षण और उपचार कार्यक्रमों में अतिरिक्त निवेश के बिना एड्स से जुड़ी बीमारियों के कारण 3,60,000 किशोरों के मरने का अनुमान लगाया गया.

वर्ष 2030 में सालाना 2,70,000 बच्चों और किशोरों के वायरस से संक्रमित होने का अनुमान लगाया गया है. एड्स से संबंधित कारणों से सालाना 56,000 बच्चों और किशोरों को मरने का अनुमान लगाया गया. अगर वैश्विक लक्ष्यों को पूरा किया गया, तो साल 2018 से 2030 के बीच 20 लाख नए एचआईवी संक्रमणों को रोका जा सकता है. इनमें से औसतन 15 लाख संक्रमण किशोरों के बीच हो सकते हैं.

डब्ल्यूएचओ का कहना है कि 2019 में, वह देशों के साथ मिलकर सेल्फ-टेस्टिंग की शुरूआत में मदद करने के लिए काम करेगा ताकि एचआईवी के साथ जीने वाले अधिक लोगों को अपनी स्थिति का पता चले और वे एक नेगेटिव टेस्ट रिजल्ट के मामले में इलाज (या निवारक उपाय) प्राप्त कर सकें.

10. टीकाकरण को लेकर झिझक

टीके लेने या टीका लगवाने में झिझक या मना करने को अक्सर ‘वैक्सीन हेजिटेंसी’ के रूप में जाना जाता है.  (फोटो: iStockphoto)

टीके लेने या टीका लगवाने में झिझक या मना करने को अक्सर 'वैक्सीन हेजिटेंसी' के रूप में जाना जाता है.

डब्ल्यूएचओ कहता है कि टीकाकरण बीमारी से बचने के सबसे अधिक सस्ते तरीकों में से एक है. वर्तमान में ये एक वर्ष में 20 से 30 लाख मौतों को रोकता है और अगर टीकाकरण के वैश्विक कवरेज में सुधार हुआ, तो आगे सालाना 15 लाख और मौतों से बचा जा सकता है. '

डब्ल्यूएचओ की एक नई रिपोर्ट के अनुसार उदाहरण के लिए, अमेरिका, पूर्वी भूमध्यसागरीय क्षेत्र, और यूरोप में वर्ष 2017 में खसरे के मामलों में सबसे अधिक वृद्धि हुई. दुनिया भर में इस बीमारी से करीब 1.10 लाख मौतें हुईं.

रिपोर्ट में सुझाया गया कि खसरे के मामलों में बढ़ोतरी टीकाकरण कवरेज में गैप के कारण हुआ.

2019 में, डब्ल्यूएचओ की योजना है कि दुनिया भर में एचपीवी वैक्सीन का कवरेज बढ़ाकर सर्वाइकल कैंसर को खत्म किया जाए.

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Published: 23 Jan 2019,12:01 PM IST

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