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हे गंगा मैय्या
मांगीला हम वरदान
राजा दशरथ ससुर दिहा, सासु कौसल्या समान
पार्वती हमरा बनईहा, स्वामी शंकर समान
राम जइसन बेटा तू दीह, बेटी सीता समान
मैय्या हे गंगा मैय्या
यह गीत मेरे दिल के बहुत करीब है, इस गीत में एक स्त्री गंगा मैय्या से यह प्रार्थना कर रही है कि शादी के बाद उसे जो परिवार मिले उसके सभी सदस्यों में इन्हीं देवी-देवताओं के समान गुण हों, जिनकी हम पूजा करते हैं.
अगर महिला सशक्तिकरण की अवधारणा को पृष्ठभूमि में रखते हुए हम विचार करें तो हर स्त्री के अलावा, हम सब को भी एक जागरूक समाज के तौर पर एक ऐसे समाज और घर की परिकल्पना करनी चाहिए, जो नारी के अधिकारों के महत्व को समझे, ऐसा समाज जो महिलाओं के योगदान को समझे और यह तभी संभव है जब महिला खुद को समाज में बराबर की सदस्य समझे और अपने अधिकारों का उल्लंघन होने पर अपनी आवाज बुलंद करे. हालांकि महिलाओं को सशक्त करने के लिए समाज के हर सदस्य को कोशिश करनी होगी, अपना दायित्व निभाना होगा.
महिला अधिकारों के संदर्भ में, महिलाओं के प्रजनन स्वास्थ्य व इससे संबंधित अधिकार, एक अहम पहलू है. कोई दंपति जब अपने दाम्पत्य जीवन को निभाते हुए संतान उत्पन्न करने का निर्णय लेता है तो ये जिम्मेदारी खासकर स्त्री पर ही आती है और यहीं प्रजनन अधिकार की बात आती है कि यह निर्णय करने का अधिकार स्त्री को मिलना चाहिए कि वह कब और कितनी संतान चाहती है.
महिला सशक्तिकरण के संदर्भ में इस अहम पहलू को नजरअंदाज कर दिया जाता है. इसके अलावा उन्हें प्रजनन संबंधी स्वास्थ्य सेवाओं तक भी पर्याप्त पहुंच मिलनी चाहिए, इससे सेहतमंद संतान होने की संभावनाएं बढ़ जाती हैं. महिलाओं को ये जानकारी होनी चाहिए कि उन्हें सुरक्षित, प्रभावशाली और वहनीय गर्भनिरोधक कहां से मिलेंगे.
यह कहा जा सकता है कि जो स्त्रियां जागरुकता के अभाव में बच्चों को जन्म दे रही हैं, उनके जीवन पर जोखिम है. सूचना और उचित स्वास्थ्य सेवाओं की कमी से माताओं और बच्चों की मृत्यु तक हो सकती है, जो कि किसी भी परिवार के लिए अत्यंत दुखद होगा. लेकिन अच्छी खबर ये है कि बेहतर परिवार नियोजन से इन मुद्दों का समाधान किया जा सकता है.
परिवार नियोजन के अंतर्गत इस बात पर विशेष बल दिया जाए कि नव-विवाहिताएं पहली संतान के लिए थोड़ा इंतजार करें और दूसरी संतान के लिए उपयुक्त अंतर भी रखें. इसके अलावा परिवार नियोजन दंपतियों को संतानों की संख्या सीमित रखने के भी सक्षम बनाता है. इसका ये भी फायदा है कि इससे महिलाओं और बच्चों के स्वास्थ्य पर प्रत्यक्ष सकारात्मक प्रभाव पड़ता है.
गौरतलब है कि महिलाओं के पास ये अधिकार होना चाहिए कि वे गर्भनिरोध की कौन सी विधि चुनना चाहती हैं. इसका मतलब ये भी है कि उन्हें ये फैसला करने का अधिकार है कि वो कब और कितनी संतान चाहती हैं अथवा चाहती भी हैं या नहीं. इसके अतिरिक्त उनके इस निर्णय की सामाजिक मान्यता एवं सम्मान होना चाहिए.
जब इस मुद्दे पर महिलाओं का नियंत्रण होगा तो वे अपना व अपनी संतान का बेहतर ढंग से ध्यान रख सकेंगी. इसका अर्थ ये भी है कि अगर किसी महिला को महसूस होता है कि अभी वह संतान को जन्म देने के लिए तैयार नहीं है, तो उसे यह अधिकार हो कि वह संतान को जन्म न दे और वह मां बनने के लिए दबाव-मुक्त हो.
सरकार, सिविल सोसाइटी संगठनों और संबंधित अहम हितधारकों को समुदायों तक परिवार नियोजन सेवाओं की जानकारी व उनकी प्राप्ति हेतु पहुंच को सुधारने की जरूरत है.
इसके अलावा डॉक्टर, काउंसलर और गर्भनिरोधक प्रयोग कर रहे व्यक्ति विशेष को जन-संवाद करना चाहिए और परिवार नियोजन संबंधित सूचनाएं, उनकी उपयोगिता, मिथक व भ्रांतियों के बारे में चर्चा करनी चाहिए. समाज का प्रत्येक व्यक्ति कृत-संकल्प हो ताकि सभी महिलाओं के प्रजनन स्वास्थ्य का ध्यान रखा जा सके और महिलाओं के अधिकार सुनिश्चित हो सकें.
(शारदा सिन्हा पद्म भूषण सम्मानित जानी-मानी लोकगायिका हैं. इस लेख में लेखिका ने अपने विचार व्यक्त किए हैं.)
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Published: 17 Oct 2018,03:01 PM IST