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ऑटिज्म से पीड़ित एक बच्चे की मां का संघर्ष और उम्मीदों तक का सफर

‘हमारे बेटे को ऑटिज्म है, ये पता चलने पर हम जज्बाती तौर पर टूट गए थे.’

चित्रा अय्यर
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चित्रा अपने बेटे श्रवण के साथ. ऑटिज्म से ग्रस्त बच्चे को पालना रोजाना का संघर्ष है और उसकी मां होना एक थकाऊ, लंबा काम है और अकेले रोलरकोस्टर की सवारी है.
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चित्रा अपने बेटे श्रवण के साथ. ऑटिज्म से ग्रस्त बच्चे को पालना रोजाना का संघर्ष है और उसकी मां होना एक थकाऊ, लंबा काम है और अकेले रोलरकोस्टर की सवारी है.
(फोटो साभार: चित्रा अय्यर)

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दूसरे पेरेंट्स हमारी तारीफ करते हैं. अब हम मजबूत हो गए हैं. हमें यह करना ही था. हमारे दिन की शुरुआत सुबह 4 बजे या 9 बजे होती, जो तय होता है श्रवण के जागने से. उस लम्हे से, जिंदगी की पूरी रफ्तार से दौड़ शुरू होती, जिसमें जज्बातों का कारवां भी साथ होता.

3 साल की उम्र में, हमारे इकलौते बेटे श्रवण को गंभीर किस्म के ऑटिज्म और कई समस्याओं का पता चला था. इस बात ने माता-पिता के रूप में जिंदगी को लेकर हमारे पूरे नजरिये को बदल दिया था.

2008 में एक दिवाली पार्टी में मैं और मेरा बच्चा. (फोटो साभार: Chitra Iyer)

श्रवण के बारे में हमेशा कुछ अजीब तरह की चिंताएं घेरे रहती थीं- 9 महीने का होने पर भी, वह दूसरे बच्चों की तरह ठीक से किलकारी नहीं मार रहा था. उसे ‘मम्मा’ या ‘दद्दा’ बोलने में कोई दिलचस्पी नहीं थी.

ऐसे भी मौके आते थे जब वह सीधे हमारी आंखों में नहीं देखता था, और वह अक्सर छूआ जाना भी पसंद नहीं करता था. शुरू में, हमने सोचा कि कोई बात नहीं है, क्योंकि लड़कियों की तुलना में लड़के काफी धीमे विकसित होते हैं- लेकिन कहीं दिमाग के अंदरूनी कोनों में, हमें पता था कि कुछ सही नहीं है.
कनाडा में धूप सेंकते हुए- साल 2013 में वैंकूवर की हमारी यात्रा से (फोटो सौजन्य:Chitra Iyer)

ऑटिज्म का पता चलना हमारे लिए सिर पर आसमान गिरने जैसा था. ऐसे हालात में हर माता-पिता की तरह, हम भी जज्बाती तौर पर टूट गए, भावनाओं का उबाल आ गया, तनाव से भर गए, और अलग-थलग हो गए- लेकिन, फिर हमने बहुत तेजी से खुद को संभाला. यह रातोंरात नहीं हुआ था और यह आसान नहीं था, लेकिन हमें हालात को समझना था और हल निकालना था.

दुनिया भर में 68 बच्चों में से 1 में ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर पाया जाता है. दुनिया में पहला ज्ञात मामला सामने आने के पैंसठ साल बीत चुके हैं, और हम अभी भी कोई इलाज विकसित करने में कामयाब नहीं हुए हैं, या यहां तक कि यह भी समझ नहीं पाए हैं कि वास्तव में ये क्यों होता है.

हमारे संघर्ष और कामयाबी का सफर

पहाड़ों से लेकर समुद्र तक और इसके बीच में जो कुछ भी है, ऐसी कोई जगह नहीं है जहां श्रवण हमारे साथ नहीं है. (फोटो सौजन्य: Chitra Iyer)

श्रवण आज 17 साल का हो गया है.

बेटे के साथ मेरे पति रवि और मेरे शुरुआती साल पूरी तरह बेबसी से भरे थे; हम खीझे, डरे हुए और भविष्य को लेकर अनिश्चित थे. लेकिन इसने मुझे पूरी तरह एकदम अलग स्तर का सब्र सिखाया, और मैंने आगे बढ़कर चुनौती को स्वीकार किया. इसने जिंदगी में हर चीज के प्रति हमारे दृष्टिकोण को बदल दिया. कुछ भी इतना नामुमकिन या मुश्किल नहीं है, जिसके लिए आप लड़ नहीं सकते हैं.

ऑटिज्म आपको विनम्र बना देता है.

हमने देखा है कि हमारा बेटा रोजमर्रा की जिंदगी से जूझ रहा है और तमाम चुनौतियों के बावजूद उसकी मिलियन डॉलर की मुस्कान चेहरे पर है. लोग उसे घूरते हैं, उसे नाम देते हैं और यह सब उसे समझा पाना बहुत मुश्किल है. ऑटिज्म से पीड़ित बच्चे के कौन माता-पिता होंगे, जिनको सार्वजनिक रूप से इन चीजों का सामना नहीं करना पड़ा होगा? आपका बच्चा चिल्ला रहा है, भावभंगिमाएं बना रहा है या शोर कर रहा है, और घबराए हुए आप लोगों की नापसंदगी और सवाल पूछती निगाहों के निशाने पर हैं.

ऑटिज्म से पीड़ित बच्चे का पूरे परिवार पर असर पड़ता है. परिवार से जुड़े लोग अक्सर सोचते थे कि हमारे साथ ऐसा क्यों हुआ. दादा-दादी के लिए समझना बहुत मुश्किल है कि यह नसीहत देने का वक्त नहीं है, बल्कि इस पर बात करनी चाहिए. श्रवण अपनी आंखों, शरीर और आत्मा के साथ संवाद कर सकता है- और मुझे उसके हर लम्हे से प्यार है.

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कलंक- जब सबकी निगाहें आप पर हैं

मेरा बेटा कितना सुंदर है! (फोटो साभार: Chitra Iyer)

कलंक संस्कृति से पैदा होता है, इसलिए आप चाहे मुंबई में हों या मैड्रिड में- यह अलग दिख सकता है. लेकिन इस डर से हम कभी भी उसकी स्कूली शिक्षा या इलाज या उसके साथ दुनिया का सफर करने से नहीं रुके.

जुलाई 2013- जो परिवार एक साथ रहता है, वह फ्रॉग सूट भी एक साथ पहनता है! अलास्का में स्नोर्केलिंग के लिए जाते हुए, जहां हमने बाल्ड ईगल को देखा और मछुआरों के साथ मछली पकड़ी, हमने केचिकन के ठंडे पानी में गोता लगाया! (फोटो साभार: Chitra Iyer)

कुछ समय वास्तव में, हम इस बारे में पता चल जाने के लिए शुक्रगुजार थे- इसके बिना, वह एक डॉक्टर से दूसरे डॉक्टर तक चक्कर काट रहा होता और हर दिन उसके सीखने की रफ्तार और धीमी हो रही होती. उसकी स्कूली शिक्षा और इलाज के लिए हमारा संघर्ष, जो हमारी सर्वोत्तम ख्वाहिश से काफी पीछे था, जारी रहा.

क्या मैं बिना ऑटिज्म वाले बच्चे के साथ ज्यादा खुश रहती? यह कहना अजीब है, लेकिन मैं रोजाना के उन लाखों चमत्कारों से वंचित रह जाती, जिनसे ईश्वर ने मुझे नवाजा. हां, मैं चाहती हूं कि वह आत्मनिर्भर हो और मैं इस दिशा में काम कर रही हूं. भविष्य डराता है. हम नहीं जानते कि हमारे जाने के बाद वह कैसे रहेगा और किसके साथ रहेगा. हमें उसके लिए ढेर सारे पैसे जमा करने की जरूरत होगी.

ऑटिज्म के बारे में

सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन के अनुसार, 68 में से लगभग 1 शख्स को ऑटिज्म है और ये पूरी दुनिया में फैली हुई है.

इसका मतलब है कि भारत में ऑटिज्म से पीड़ित 1.8 करोड़ से ज्यादा लोग (मुंबई की आबादी के बराबर) हैं. इसका मतलब यह भी है कि हममें से हर एक अपनी जिंदगी में ऑटिज्म से पीड़ित कम से कम एक शख्स से मिला है- लेकिन हम कभी भी यह समझ नहीं सके कि उसे ऑटिज्म है.
ऑटिज्म को ‘स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर’ के रूप में जाना जाता है, क्योंकि इसके लक्षणों की गंभीरता मामूली रूप से सीखने की कमी और तालमेल में असमर्थता से लेकर कई कामों में कठिनाई और अक्सर बहुत ही असामान्य व्यवहार की अधिक जटिल समस्याओं तक कुछ भी हो सकती है. इसका मतलब है कि ऑटिज्म पीड़ित में कौशल मौजूद (अनुपस्थित नहीं) है, लेकिन उम्र के अनुसार उचित रूप से इसका विकास नहीं हुआ है. (फोटो सौजन्य: Chitra Iyer)

अगर आप एक ऐसे बच्चे या बच्ची को जानते हैं जो:

आंख-से-आंख मिलाने से बचता है

अकेला रहना पसंद करता है

जो भी उससे कहा जाता है, वह चाहता है कि बार-बार दोहराया जाए

शरीर के अंगों को अजीब तरह से चलाता है, उदाहरण के लिए हाथ ऐंठना या हाथ घुमाना

एक ही तरह के काम करने के लिए भी ज्यादा कोशिश की जरूरत होती है

रोशनी या आवाजों को लेकर गहरा डर

भाषा सीखने में देरी

तो यह ऑटिज्म हो सकता है.

तो कृपया ऐसे बच्चों के माता-पिता का बाल रोग विशेषज्ञ या फोरम फॉर ऑटिज्म से संपर्क के लिए मार्गदर्शन करें, जिसने पिछले 16 वर्षों के दौरान 5000 से अधिक परिवारों की मदद की है.

देखें: ऑटिज्म जागरुकता के एक जबरदस्त समर्थक क्रिकेट कमेंटेटर हर्षा भोगले इस पर रोशनी डालते हैं:

हम ट्रस्टी मुख्य रूप से उन माताओं का एक समूह है, जिन्होंने एक-दूसरे से सीखा है कि रोजमर्रा के हालात को कैसे संभालना है और हम ऑटिज्म से पीड़ित बच्चों के लिए एक बोर्डिंग हाउस बनाने के एक साझा सपने के साथ जीते हैं, जहां उन्हें रखे जाने पर हमारे दुनिया से चले जाने के बाद भी लंबे समय तक उनकी देखभाल की जा सकेगी.

(चित्रा अय्यर 17 साल के श्रवण की मां हैं, जिसे ऑटिज्म और सेरेब्रल पाल्सी है. वह फोरम फॉर ऑटिज्म की ट्रस्टी और कोषाध्यक्ष हैं. एक सर्टिफाइड फाइनेंशियल प्लानर होने के नाते वह My Financial Advisor की सीओओ और फाइनेंशियल कोच के रूप में लोगों को धन प्रबंधन की सलाह देती है.)

(यह लेख मूल रूप से Fit पर अंग्रेजी में 2 अप्रैल 2016 को प्रकाशित हुआ था. इसे 2 अप्रैल 2019 को विश्व ऑटिज्म दिवस पर हिंदी में पब्लिश किया जा रहा है.)

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Published: 02 Apr 2019,10:41 AM IST

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