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(दुनिया भर के 120 से ज्यादा देशों में 1-7 अगस्त तक विश्व स्तनपान सप्ताह मनाया जाता है. इसका मकसद नवजात शिशु के लिए मां के दूध का महत्व याद दिलाना होता है.)
एक नजर-
कई बार देखने में आता है कि कई निजी अस्पताल जन्म के बाद बच्चे और मां को अलग करने के बहाने ढूंढ लाते हैं. वे इस बात पर जोर देते हैं कि बच्चे को पाउडर के दूध की जरूरत है क्योंकि 'मां का दूध पर्याप्त मात्रा में नहीं आ रहा है.' जबकि एक नवजात शिशु के पेट का आकार एक छोटी चम्मच जितना होता है. उन्हें एक साथ ढेर सारा दूध पिलाने की बजाए थोड़ी-थोड़ी देर में फीड कराने की जरूरत होती है.
बेशक प्रसव के बाद मां का दूध नहीं आता है. डिलीवरी के 2 से 4 दिन बाद उन्हें कॉलस्ट्रम आना शुरू होता है, जो अलग तरह का होता है. लेकिन यह बाद के दूध के मुकाबले मात्रा में कम होता है.
मां के कॉलस्ट्रम की गंध उसके एम्नियोटिक फ्लूइड से काफी मिलती-जुलती है, इसलिए बच्चा उसे पहचान लेता है. बच्चे को मां के स्तन तक पहुंचने के लिए निर्देशित किया जाना चाहिए और स्वाभाविक रूप से स्तनपान और बाहरी दुनिया के साथ परिचित कराना चाहिए.
कॉलस्ट्रम बहुत खास होता है. इसमें इतनी भरपूर मात्रा में एंटीबॉडीज, कैल्शियम, वसा, प्रोटीन और सफेद ग्लोब्यूल्स होते हैं कि इसे बच्चे का 'पहला रोग-प्रतिरक्षण (टीका)' कहा जाता है. यह नवजातों में स्वस्थ गट फ्लोरा यानी गुड बैक्टीरिया विकसित करने में मदद करता है और उन्हें इंफेक्शन और एलर्जी से बचाता है.
इसमें काफी मात्रा में विटामिन-ए पाया जाता है, जो बच्चों को कई आंख संबंधी बीमारियों से बचाता है. वहीं, लैक्सेटिव गुण नवजात शिशुओं में मेकोनियम (पहले मल) को साफ करने और पीलिया को रोकने में मदद करता है.
प्रकृति ने मां को वो सब दिया है, जो बच्चे को गर्भाशय से बाहर दुनिया के अनुकूल बनाने, उन्हें पोषण देने और आराम देने में मदद कर सकता है. यह हमारी जिम्मेदारी है कि हम अपने नवजात शिशुओं को वो भोजन देने में मदद करें जो प्रकृति ने उनके लिए बनाया है.
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Published: 03 Aug 2017,03:10 AM IST