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आपको कैसा लगेगा जब आपसे ये कहा जाए की आप जो पानी पीते हैं, उसमें प्लास्टिक के छोटे-छोटे कण हैं. जाहिर है आपको बहुत हैरानी होगी और आप परेशान हो जाएंगे.
जी हां अब से आपके घर के पानी से मिलने वाले तत्वों की लंबी फेहरिस्त में माइक्रोप्लास्टिक का नाम भी जोड़ लीजिए.
ऑर्ब मीडिया ने हाल ही में एक रिसर्च किया है, जिसके मुताबिक दुनिया भर से लिए गए टैप वॉटर सैंपल में 83 फीसदी पानी में माइक्रोप्लास्टिक्स पाया गया है.
भारत इस मामले में तीसरे नंबर पर है, जहां का 82.4 फीसदी टैप वाटर दूषित पाया गया. अमेरिका पहले नंबर पर था और लेबनान दूसरे नंबर पर.
भारत में रिसर्च के लिए इस्तेमाल किया गया टैप वॉटर दिल्ली से लिया गया था.
नई दिल्ली में 17 जगहों से टैप वॉटर सैंपल लिए गए थे, जिनमें से 14 में माइक्रोस्कोपिक प्लास्टिक फाइबर पाया गया था.
वर्ल्ड रिसोर्सेज इंस्टीट्यूट के आंकड़े बताते हैं कि 13 करोड़ भारतीय उन इलाकों में रहते हैं, जहां का ग्राउंड वॉटर प्रदूषित है.
इसलिए इसकी बहुत आशंका है कि आपके घरों में आने वाला टैप वॉटर भी बहुत ज्यादा प्रदूषित हो.
भारत में प्रदूषण को रोकने के लिए बनाई गई संस्था केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के आंकड़ों के मुताबिक भारत में हर दिन 15,342 टन प्लास्टिक वेस्ट पैदा होता है और उनमें से केवल 9205 टन को ही रीसाइकल किया जाता है.
और ऐसे में जबकि भारत अनियमति मॉनसून और फ्रेश ड्रिंकिंग वॉटर की कमी से जूझ रहा है, ये आंकड़े किसी अच्छे भविष्य की तरफ इशारा नहीं कर रहे.
पिछले रिसर्च ने बताया था कि पानी में किस तरह प्लास्टिक प्रदूषण पाया जाता है. उससे ये भी पता चला था कि प्रदूषित सीफूड के रास्ते माइक्रोप्लास्टिक लोगों के शरीर में जा रहा है.
लेकिन इस नए शोध ने दो नई चिंताएं पैदा कर दी हैं.
गैलवे-मेओ इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलोजी की डॉक्टर ऐने मेरी माहोन ने इस रिसर्च को किया है. द गार्डियन अखबार से बातचीत के दौरान उन्होंने कहा कि टैप वाटर सैम्पल में नैनोपार्टिकल्स पाए गए थे, जो शरीर में दाखिल हो सकते हैं.
नैनो साइज के माइक्रोप्लास्टिक्स वाटर फिल्टर से पहचान में नहीं आते और वो साफ पानी में मिल जाते हैं.
उन्होंने कहा कि अभी तक ऐसा कोई वाटर प्यूरीफायर उनकी नजर से नहीं गुजरा जो माइक्रोप्लास्टिक्स को फिल्टर करने का दावा करता हो.
आप किसी भी तरह के प्लास्टिक के इस्तेमाल से बच सकते हैं. हालांकि इस रिसर्च में ये बात नहीं बताई गई है कि माइक्रोप्लास्टिक्स से सेहत को किस तरह का नुकसान होता है, लेकिन फिलहाल सबसे जरुरी यही है कि उसके इस्तेमाल से बचा जाए.
प्लास्टिक के इस्तेमाल पर पूरी तरह रोक लगा कर ही हम माइक्रोप्लास्टिक्स को फैलने से रोक सकते हैं. प्लास्टिक वेस्ट मैनेजमेंट को भी बड़े पैमाने पर लागू करने की जरुरत है.
(यह लेख 11 सितंबर 2017 को पहली बार छपा था. विश्व पर्यावरण दिवस के अवसर पर इसे दोबारा छापा जा रहा है. )
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