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17 अप्रैल विश्व अतिरक्तस्राव यानी हीमोफिलिया दिवस के तौर पर मनाया गया. दुनिया में सबसे ज्यादा अतिरक्तस्राव के मरीज भारत में ही हैं.
क्या आपको पेपर कट्स का अनुभव हुआ है?
यह डर, पीड़ा और अविश्वास का संपूर्ण मिश्रण है. एक पेपर कट अति संवेदनशील तंत्रिकाओं और कोशिकाओं को चोट पहुंचाकर आपको एक गहरा घाव देता है.
सामान्यत: जब स्वस्थ लोगों में खून बहता है, तो रक्त में मौजूद तत्व प्लेटलेट्स खून को चिपचिपा बना देते हैं. इससे खून का थक्का जम जाता है और रक्तस्राव रुक जाता है.
क्या आपको पता है कि अतिरक्तस्राव एक दुर्लभ बीमारी है. पूरे विश्व में भारत में इसके सबसे ज्यादा मरीज है. लगभग 10,000 में से एक भारतीय अतिरक्तस्राव से पीड़ित है और यहां इस आनुवांशिक विकार को नियंत्रित करने के लिए सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए कोई व्यापक बचाव का तरीका भी नहीं है.
इस जटिल बीमारी के बारे में और जानने के लिए तथा भारत में इस पर विशेष ध्यान देने की जरूरत क्यों है, इसके बारे में नीचे पढ़ें.
1. इस बीमारी का कोई इलाज नहीं है, यह महंगा है, केवल प्रमुख शहरों में इसके लिए सब्सिडी दी जाती है.
जब एक अतिरक्तस्राव का मरीज घायल होता है, तो उसे तुरंत ही 8 या 9 फैक्टर के शॉट्स देना जरूरी होता है, जो उसके शरीर को रक्त का संश्लेषण करने में मदद करते हैं.
राहत की बात केवल यह है कि कुछ राज्यों में मुख्यत: डोनेशन और सरकारी अनुदान पर हीमोफिलिया सोसाइटी चलती हैं. इससे कई बार टू-टायर शहरों में फैक्टर शॉट्स मुफ्त हो जाते हैं, लेकिन ये लंबे समय से फंड से जूझ रहे हैं और भारत के अधिकतर भागों में छोटे शहरों और गांव में बिल्कुल भी उपलब्ध नहीं है.
2. जोड़ों को क्षति और विकलांगता
भारत में किए गए एक अध्ययन में पाया गया कि अतिरक्तस्राव के 148 मरीजों में से केवल 9 को ही किसी तरह की विकलांगता नहीं थी. अतिरक्तस्राव के इन मरीजों में से अधिकतर समाज के सामाजिक-आर्थिक रूप से कमोजर वर्ग से आए युवा लड़के थे.
3. दवा की बढ़ती कीमत से बढ़ी मरीजों की मुश्किल
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के कैंसर, एचआईवी और अतिरक्तस्राव के इलाज के लिए आवश्यक 74 दवाओं पर सीमा शुल्क में छूट को वापस लेने के निर्णय से इन दवाओं की कीमतों में तेजी आएगी. यह कदम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की प्रमुख परियोजना ‘मेक इन इंडिया’ को बढ़ावा देने के लिए है.
यह अतिरक्तस्राव के मरीजों को बहुत नुकसान करेगा, क्योंकि सभी एंटी-हिमोफिलिया फैक्टर शॉट्स आयात किए जाते हैं.
मैंने गुड़गांव स्थित एक ऐसे परिवार से बात की, जिनका 18 साल का बेटा अतिरक्तस्राव से पीड़ित है. उन्होंने कहा कि उनके इलाज का मासिक खर्च 35,000 रुपये तक बढ़ गया है.
4. अतिरक्तस्राव अधिकतर पुरुषों में होता है
अतिरक्तस्राव दो तरह के होते हैं, जो X क्रोमोसोम (फैक्टर 8 या फैक्टर 9) पर किसी एक जीन में समस्या के कारण होते हैं. यह शरीर को खून का थक्के जमाने के लिए आवश्यक क्लॉटिंग फैक्टर प्रोटींस बनाने का संकेत देता है.
पुरुषों में एक X और एक Y क्रोमोसोम (XY) और स्त्रियों में दो X क्रोमोसोम (XX) होते हैं.
क्या आपको स्कूल में फिजिक्स की क्लास याद है?
लड़कियां X क्रोमोसोम पिता से और लड़के मां से प्राप्त करते हैं. अगर लड़कियां अपने पिता से हिमोफालिया-स्ट्राइकन-क्रोमोसोम प्राप्त करती हैं, तो उनमें दो XX क्रोमोसोम होने से एक स्वस्थ X क्रोमोसोम हावी हो जाता है.
पर उन्हें फिर भी बीमारी हो सकती है- उन्हें पीरिएड्स में अत्यधिक रक्तस्राव और अन्य कारणों से रक्तस्राव होता है, लेकिन बीमारी की गंभीरता स्पष्ट नहीं है.
लड़कों में केवल X क्रोमोसोम होता है. अगर इसमें फैक्टर 8 या 9 नहीं होते हैं, तो उन्हें सारी जिंदगी फैक्टर्स इंजेक्ट होने के भावनात्मक और शारीरिक आघात को सहन करना पड़ता है.
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Published: 20 Apr 2016,11:55 AM IST