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हिंदी न्यूज चैनल देखने वालों से मुझे बड़ी सिम्पैथी है. तीन दिन तक उन्हें हिंदी न्यूज चैनलों ने बंधक बना लिया. 6 नवंबर को छोटी दिवाली से बड़ी दिवाली और फिर गोवर्धन पूजा तक न्यूज चैनल भक्तिरस से सराबोर रहे और लोग न्यूज के लिए तरस गए.
हिंदी न्यूज चैनल में एंकर, रिपोर्टरों का तो क्या कहना, वो गा-गाकर कमेंट्री कर रहे थे या फिर उन्होंने ये सोच लिया था कि जो खबर हम दिखाते हैं, वही खबर है.
क्या हिंदी न्यूज चैनल ये समझते हैं कि उनके दर्शकों को भक्ति, भजन और तीर्थ-स्थानों के अलावा किसी और बात में इंटरेस्ट नहीं है? भक्ति का इतना ओवरडोज क्यों है.
हिंदी चैनलों के लिए दुनिया ठहरी हुई थी. चैनल त्रेता युग में चले गए थे, लेकिन दुनिया चल रही थी.
लेकिन तब भी हिंदी न्यूज चैनल बिना परवाह किए मंजीरा बजाए जा रहे थे.
6 नवंबर को जैसे ही कर्नाटक में काउंटिंग और अमेरिका में वोटिंग शुरू हुई, तभी हिंदी न्यूज चैनल त्रेतायुग मोड में चले गए. भक्तिरस से सराबोर होकर. एंकर और रिपोर्टरों का बस कीर्तन करना ही बाकी रह गया था. वैसे वो जो कह रहे थे, वो कीर्तन जैसा ही कुछ था. जैसे अयोध्या में वर्ल्ड रिकॉर्ड बनेगा. आस्था का मेला है. राम नाम की लूट है, लूट सके तो लूट.
सुबह से सीधे अयोध्या से लाइव प्रसारण दायें रिपोर्टर, बाएं रिपोर्टर, स्टूडियो में एंकर दे दनादन जो मन में आया वो बोला गया.
रिपोर्टर ने रावण और मेघनाद से संवाद भी कर लिया और आंसू छलकाते हुए बोला, देखिए कितना दिलचस्प है कि रावण और मेघनाद भी राम मंदिर चाहते हैं. लेकिन साथ-साथ लोगों को भड़काने की पक्की व्यवस्था होती रही. जैसे हिंदुओं की आस्था सुप्रीम कोर्ट क्यों नहीं सुनता और पूरे देश के लोग राम मंदिर की मन्नत मांग रहे हैं.
मॉरल ऑफ द स्टोरी यही है कि हिंदी न्यूज चैनल शायद यही समझते हैं कि हिंदी भाषी दर्शकों के जीवन में मंदिर, धार्मिक कहानियां, पूजा का मुहूर्त, अविश्वसनीय और अकल्पनीय चमत्कार के अलावा कुछ नहीं है.
सभी न्यूज चैनल को पूर्व पीएम अटल बिहारी वाजपेयी की बात याद रखनी चाहिए, “सत्ता का खेल चलता रहेगा, सरकारें आएंगी जाएंगी, पार्टियां बनेंगी-बिगड़ेंगी, लेकिन देश अमर रहना चाहिए देश का लोकतंत्र अमर रहना चाहिए”
और लोकतंत्र अमर रखने के लिए मीडिया भी जिम्मेदार होना चाहिए.
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