Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Khullam khulla  Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019जब जुबान की भाषा हो जाती है नाकाम, तब जूते की भाषा आती है काम

जब जुबान की भाषा हो जाती है नाकाम, तब जूते की भाषा आती है काम

जूते चाहे कितने भी नंबर के हों, बड़ी से बड़ी बात बेहद कम शब्‍दों में कह जाते हैं

अमरेश सौरभ
खुल्लम खुल्ला
Updated:
जूते की भाषा की बात निराली है. इसे इंसान तो क्या, पशु-पक्षी भी सरलता से समझ लेते हैं
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जूते की भाषा की बात निराली है. इसे इंसान तो क्या, पशु-पक्षी भी सरलता से समझ लेते हैं
(फोटो: Kamran Akhter/Quint)

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‘’जब जूता शोरूम में बिकने लगे और किताब फुटपाथ पर, तब समझिए कि इंसान को ज्ञान की नहीं, जूते की ज्यादा जरूरत है.’’

- वरिष्ठ चिंतक और सलाहकार, WhatsApp यूनिवर्सिटी

क्या समझे आप? आज के दौर में जूते की क्या अहमियत है, ये किसी को साबित करने की जरूरत नहीं है. जूता अपना बड़प्‍पन खुद बताता है.

और हां, जब जूता बोलता है, तो उसका जवाब कोई और नहीं, सिर्फ जूता ही दे सकता है. शिष्टाचार का तकाजा तो यही है. जूते चाहे कितने भी नंबर के हों, अस्पष्ट आवाज के साथ भी बड़ी से बड़ी बात बेहद कम शब्‍दों में कह जाते हैं.

जब जूता बोलता है, बाकी सब मौन हो जाते हैं

दुनियाभर में जितनी भाषाएं मुंह से बोली जाती हैं, उनमें कोई एक भी ऐसी नहीं, जिसे हर इंसान समझ ले. पर जूते की भाषा की बात निराली है. इसे इंसान तो क्या, पशु-पक्षी भी सरलता से समझ लेते हैं.

बस यों समझ लीजिए कि अगर पत्रकारिता के छात्रों को मास कम्युनिकेशन समझाना हो, तो बस जूते की ओर इशारा कर दीजिए. कहिए कि भाई, तुम्हारी भाषा ऐसी होनी चाहिए, जो हर कोई आसानी से समझ जाए.

ऐसा भी नहीं कि भावी या अनुभवी पत्रकारों की जमात आप जैसे गुरु द्रोण के इंतजार में ही बैठी हो. आपको याद होगा, इस क्‍लास के कई एकलव्य संसाधनों के अभाव में भारी धक्कमपेल के बीच लक्ष्य पर निशाना साध चुके हैं.

सबको बस उछलते हुए जूते का सवाल ही तो याद है(फोटो: Kamran Akhter/Quint)

आप तर्क कर सकते हैं कि आज तक कितनों का जूता टारगेट को हिट करने में कामयाब रहा? तो जनाब सुनिए. जब-जब जूता उछला है, बाकी सारे सवाल गौण पड़ गए हैं. किसने ग्रोथ रेट पर पूछा, किसने डिफेंस पर पूछा, किसने करप्शन पर पूछा. कुछ याद हो तो बताएं?

आप हों या हम, सबको बस उछलते हुए जूते का सवाल ही तो याद है. अब बताएं, टारगेट हिट हुआ कि नहीं? इतने कम वक्‍त में इतना कुछ कहने की हिम्‍मत और चतुराई बस जूते में ही हो सकती है.
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कौन-सा जूता ज्‍यादा कम्‍यूनिकेटिव?

सवाल उठता है कि क्‍या सभी जूते संवाद करने की क्षमता में समान दक्षता रखते हैं? मोटे तौर पर इसका जवाब हो सकता है, 'जी, हां'. लेकिन अगर आप गौर करें, तो जूते-जूते की पर्सनालिटी और शालीनता में फर्क होता है.

'शोले' वाले ठाकुर साहब के जूते का लोहा हर किसी ने माना, पर अब ठाकुरों का वो जमाना न रहा. अब तरह-तरह के डिजाइन वाले जूते मैदान में आ गए हैं.

लेस वाले जूते ज्‍यादा आराम देते हैं, पर उग्र संवाद के वक्‍त तत्‍काल सेवा नहीं दे पाते हैं. ऐसे में दूसरे का बिन लेस वाला जूता मैदान मार लेता है. बिना लेस वाले जूते आपका साथ देने को सदैव तत्‍पर नजर आते हैं.

आजकल के लड़के स्नीकर वाले जूते ज्‍यादा पसंद करते हैं. अगर आप भी ऐसा जूता खरीदने का मन बना रहे हैं, तो एक बात साफ कर दें. ऐसे जूते किसी स्‍टेज की ओर सवाल पूछने के काम तो आ सकते हैं, लेकिन रब खैर करे, किसी ने आपसे सवाल कर लिया, तो जूते जवाब देने के काम नहीं आ सकते हैं.

जूते राजशाही और डेमोक्रेसी, दोनों के प्रतीक!

जूते राजशाही के प्रतीक कैसे हैं, ये आप जानते हैं, बस याद दिला देता हूं. श्रीराम जानकी के साथ वन चले गए. भरत उन्हें लौटाने गए, पर उन्हें मना न सके. हारकर उन्होंने अग्रज की खड़ाऊं मांग ली. महल आकर सिंहासन पर सुशोभित कर दिया. राम के अयोध्‍या लौटने तक खड़ाऊं ही राज करता रहा. कलयुग में लोग इसे 'खड़ाऊं राज' के नाम से जानने लगे.

आप पूछेंगे, तब ये जूते डेमोक्रेसी के प्रतीक कैसे?

आपने कुछ ही वक्‍त पहले टीवी पर या मोबाइल पर देखा होगा कि कैसे दो लोग एक-दूसरे से जूते की भाषा में बात कर रहे थे.

किसी ने बताया कि उन दोनों को आप और हम जैसे लोगों ने ही अपनी समस्याएं सुलझाने के लिए बड़ी पंचायत में भेजा था, लेकिन वहां जाकर उनका मन बदल गया. वे नाम के चक्कर में पड़ गए. पत्‍थर पर मेरा नाम कि तेरा नाम.

संवाद उग्र होता गया. किसी को किसी की बात समझ न आई. आखिरकार जूते की भाषा काम आई.

जानकार बताते हैं कि दोनों डेमोक्रेसी की देन हैं. दोनों जिस पार्टी से आते हैं, उसका दावा है कि जैसी डेमोक्रेसी उनकी पार्टी में है, वैसी किसी और पार्टी में नहीं है. कोई शक हो, तो दूर कर लीजिए.

किसी-किसी पार्टी में तो इंसान को मुंह खोलने की भी मनाही है. जूते खोलकर उसके जरिए स्‍पष्‍ट संवाद की बात कौन कहे!

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

Published: 07 Mar 2019,06:14 PM IST

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