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नीतीश के मन की बात- देर लगी आने में तुम को, शुक्र है फिर भी आए तो

नीतीश कुमार ने अमित शाह से कुछ ऐसा कहा होता...

मयंक मिश्रा
खुल्लम खुल्ला
Updated:
हजारों ख्वाइशें ऐसी कि हर ख्वाइश पे दम निकले...
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हजारों ख्वाइशें ऐसी कि हर ख्वाइश पे दम निकले...
(फोटो: क्विट/हर्ष सहानी)

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बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह की मुलाकात के दौरान बैकग्राउंड में बज रही जगजीत सिंह की गजल बहुत कुछ कह रही थी.

नीतीश सोच ही रहे थे कि अमित शाह जी ने देर तो कर ही दी. तमिलनाडु गए, तेलंगाना घूम आए, त्रिपुरा-पंजाब सभी राज्यों का दौरा कर लिया. फिर बिहार का ध्यान आया. 40 लोकसभा सीटों वाला राज्य इतना गया-गुजरा हो गया? या फिर उनको हम सहयोगियों की जरूरत ही नहीं है? या वो यह मानकर चल रहे हैं कि कुछ भी हो जाए, बिहार के उनके सहयोगियों के पास बीजेपी की शर्तों पर चलने के अलावा कोई ऑप्शन ही नहीं है?

नीतीश के पास NDA के अलावा कोई विकल्प नहीं

वैसे मन में यह भी खयाल आया कि हकीकत तो यही है कि मेरे पास कोई ऑप्शन नहीं है. लालू जी के घर पर नो एंट्री का बोर्ड लग गया है. कांग्रेस लालू जी का साथ छोड़ने को तैयार नहीं है. अकेले रह नहीं सकते. बीजेपी के अलावा कहां जाएं.

लेकिन ताज्जुब की बात है कि मुलाकात में भी अमित शाह जी बस इतना ही कह गए कि सबके हितों का खयाल रखा जाएगा. हमारा मकसद लोकसभा की सारी सीटें जीतने का होना चाहिए. उसी पर फोकस कीजिए. सीटों का बंटवारा तो हो ही जाएगा. अभी जल्दी क्या है.

नीतीश एक बार फिर से जगजीत सिंह की एक दूसरी गजल की पंक्तियां दोहराने लगे:

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बिहारियों की नजरें इनायत कहां

नीतीश सोच ही रहे थे कि अमित शाह जी ने देर तो कर ही दी.(फोटो: PTI)
नीतीश ने सोचा, मुलाकात में भी गर्मजोशी की कमी रही. बिग ब्रदर तो छोड़िए, हम तो सम्मानजनक सीट लेकर भी खुश होने को तैयार थे. अरे कभी हम बिहार के सुपरस्टार थे. मेरे नाम पर ही एनडीए को वोट मिलते थे. मुझे ही सुशासन बाबू कहा जाता था, मुझे ही बिहार में बदलाव की बयार लाने का सूत्रधार कहा जाता है. पिछले 14 साल में एक चुनाव में ही तो मेरी पार्टी का खराब प्रदर्शन रहा है.

2014 के लोकसभा चुनाव में मेरी पार्टी को सिर्फ दो सीटें मिलीं, उनमें भी एक नालंदा वाली मेरी परंपरागत मजबूत सीट. वोट मिले 16 परसेंट. मतलब बीजेपी को मिले वोट के आधे. लेकिन कांग्रेस और रामविलास पासवान की एलजेपी से तो ज्यादा ना.

नीतीश को 2009 के वो पुराने दिन भी याद आ गए, जब बिहार की 40 में से 25 सीटें जेडीयू ने लड़ी थीं और बीजेपी के खाते में सिर्फ 15 आई थीं. चलो अब हालात बदल गए हैं, फिर भी इतनी बड़ा जोखिम लेकर भी क्या सम्मान करने लायक हिस्सा नहीं मिलेगा? ...और गहरी सांस लेकर वो जगजीत सिंह की गजल गुनगुनाने लगे:

लेकिन 2014 के उस चुनाव के बारे में सोचकर दिल फिर से भर आया. वही एक चुनाव था, जो अकेले लड़े, बिना किसी सहयोगी के. बिहारियों के पास मौका था मेरा एहसान चुकाने का. मुझे ताज पहनाने का. यह बताने का कि मैं ही हूं बिहार का असली सूरमा. लेकिन बिहारी एहसान-फरामोश निकले. मुझे फिसड्डी बना दिया. हाशिए पर ला दिया. अनायास जगजीत सिंह की गजल की दो लाइनें याद आ गईं:

(*जुदाई के अकेलेपन का जंगल)

नीतीश ने सोचा, अरे कभी हम बिहार के सुपरस्टार थे(फोटो: The Quint)  

गुस्से के बाद थोड़ा आत्मविश्वास आया. 2015 के विधानसभा चुनाव के नतीजों के बारे में सोचकर अच्छा लगा. किस तरह बीजेपी को धूल चटाई. नरेंद्र मोदी जी केअश्वमेध रथ को रोका. यह सोचकर गुस्सा वापस आया कि उस चुनाव की जीत का क्रेडिट लोग लालू जी को क्यों देते हैं. मैं मुख्यमंत्री का चेहरा था, मेरे नाम पर वोट मिले. मैं रिकॉर्ड बहुमत पाकर फिर से मुख्यमंत्री बना. लोग मेरा नाम प्रधानमंत्री पद के संभावित उम्मीदवार तक के लिए लेने लगे. यहां तक कि लालू जी ने भी कह दिया कि मेरे प्रधानमंत्री पद की दावेदारी को उनका समर्थन रहेगा.

अब इतने बड़े नेता को अपनी पार्टी की सीटों के लिए सहयोगियों से भीख मांगनी पड़ेगी? किस तरह की बकवास बातें हो रही हैं. कह रहे हैं कि अपने दम पर हम 16 परसेंट वोट भी नहीं पा सकते हैं. मुस्लिम का तो वोट मिलेगा नहीं, क्योंकि मेरी सेक्‍युलर वाली छवि में दाग लग गया है. सुशासन बाबू वाला तमगा गया, क्योंकि कानून-व्यवस्था चरमरा गई है और राज्य में कई दंगे भी हुए हैं. महादलितों का वोट गया, अति पिछड़ों पर बीजेपी की नजर है. मेरे हिस्से के सारे वोट खिसक रहे हैं.

लेकिन ज्यादा सीटों पर तो लड़ना ही है. कम पर लड़ेंगे, तो कम सीटें मिलेंगी. फिर विधानसभा में भी कम सीटों पर ही चुनाव लड़ना होगा. कम सीटें आईं, तो मुख्यमंत्री की कुर्सी बनी रहेगी?

एहसान-फरामोश बिहारियों के बारे में सोचकर गुस्से से मन भर आया.

पीछे से अंतरात्‍मा की आवाज आती है- नीतीश बाबू, ये तो होना ही था. आपने सारे वाद को ठेंगा दिखाया है. आपके हर फैसले में अवसरवाद ही दिखता है. अब इतनी बार पाला बदलेंगे, तो लोग तो कंफ्यूज हो ही जाएंगे कि आप आखिर किसके साथ खड़े हैं.

लोग तो ये भी पूछेंगे कि आप किसी के साथ हैं भी कि नहीं? और सोचिए. आपके शासन में जो भी बदलाव होना था, वो तो 2009-10 तक हो गया. सड़कें बनीं, कानून-व्यवस्था पटरी पर लाया. बिजली पहुंचाने में तत्परता दिखाई. लेकिन बड़ा निवेश, नौकरियां, शिक्षा में बड़ा बदलाव- इन मामलों में पिछले 13 सालों में आपने कुछ किया?

अंतरात्‍मा की आवाज से नीतीश थोड़ा सहम गए. मन में फिर से जगजीत सिंह की गजल की लाइनें:

यह ‘तेरा’ कौन है, इसका जवाब नीतीश जी फिलहाल खोज रहे हैं.

(यह लेख नीतीश कुमार की अमित शाह से हुई मुलाकात के पहले और उसके बाद नीतीश कुमार के मन में आए भावों का काल्पनिक चित्रण है)

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Published: 12 Jul 2018,05:57 PM IST

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