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चेतावनी: 18 दिसंबर तक न्यूज चैनलों से दूर रहें, इसमें हैं खतरे

हर तरफ है गुजरात चुनाव का शोर, लेकिन जान लीजिए नतीजा किसी को नहीं मालूम. सेहत के लिए खतरा है इतना टेंशन

अरुण पांडेय
भूतझोलकिया
Updated:
न्यूज चैनल और सोशल मीडिया की ब्रेकिंग के चक्कर से खुद को संभालिए
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न्यूज चैनल और सोशल मीडिया की ब्रेकिंग के चक्कर से खुद को संभालिए
(फोटो: क्विंट)

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इसे अलर्ट कहिए वार्निंग कहिए या फिर सीधे सीधे हिंदी में कहें तो चेतावनी मान लीजिए. अगले कुछ दिन न्यूज चैनलों और सोशल मीडिया में खास तौर पर बहुत एक्शन, ड्रामा रहेगा इसलिए सेहत की खातिर न्यूज चैनलों से दूर रहें तो अच्छा होगा. लेकिन आपके लिए मुमकिन ना हो तो बच्चों को तो इनसे दूर ही रखिए.

न्यूज चैनल में गर्मागर्म बहस और तीखी नोंकझोंक से बच्चों को बचाइए(फोटो: क्विंट)

आप पूछेंगे क्यों? देखिए वैसे तो इन दिनों न्यूज चैनल देखना हर दिन नई चुनौती और साहस का काम है, पर गुजरात चुनाव के नतीजे जब तक नहीं आ जाते तब तक हर रोज कहानी में मोड़ आएंगे. 18 दिसंबर को नतीजे आने तक न्यूज देखने से फ्यूज उड़ने का खतरा बहुत ज्यादा है.

बच्चों को खासतौर ज्यादा से ज्यादा दूर रहने की हिदायत दें क्योंकि चैनल में चल रही धमाचौकड़ी, चीखने- चिल्लाने, आरोप प्रत्यारोप से उनके कोमल मन मस्तिष्क में बुरा असर पड़ सकता है.

न्यूज चैनल और सोशल मीडिया में सिर्फ आरोप ही आरोप छाए(फोटो: क्विंट)

चैनलों और सोशल मीडिया में शोर

इस समय टीवी में चलने वाली बहस देखिए. उनमें गुस्सैल रस, उलाहना रस, घृणा या वीभत्स रस, भावना रस, क्षेत्रवादी रस सब कुछ है. लेकिन जो जरूरी रस हैं वो नहीं हैं जैसे वीर रस, श्रृंगार रस, प्रेम रस, सहयोग रस. अब आप सोचिए जो व्यक्तित्व के लिए जो जरूरी गुण चाहिए न्यूज और सोशल मीडिया उनकी तो सप्लाई हो ही नहीं रही है. जिसकी सप्लाई हो रही है वो किसी व्यक्ति में ना ही हों तो अच्छा है.

18 साल के ऊपर के लोग और खास तौर पर 30 साल के ऊपर के बालिग लोग तो कई चुनाव देख चुके हैं इसलिए हम उन्हें बेनेफिट ऑफ डाउट देते हे मान लेते हैं कि न्यूज में परोसे जा रहे अलग अलग भाव का शायद असर ना पड़े. पर बच्चों तो मन के सच्चे होते हैं उन पर इन बातों का असर मत पड़ने दीजिए.

सवाल ही सवाल, जवाब किधर है भाई

इन दिनों हालात ऐसे हैं कि सावधानी हटी और दुर्घटना घटी. सभी पक्ष सिर्फ आरोप ही आरोप लगा रहे हैं. विपक्ष कहता है हमारा तो काम ही है सरकार को कठघरे में खड़ा करना यानी आरोप लगाना हमारा हक है. सरकार की तरफ वालों का कहना है विपक्ष निगेटिविटी बढ़ा रहा है. फिर तीसरे किरदार हैं दोनों पक्षों के समर्थक जो अंधाधुंध शब्द बाण दागे जा रहे हैं. उन्हें इस बात की परवाह नहीं है कि ये बाण कहां जा रहे हैं और किसी को लग भी रहे हैं या नहीं.

इस बार के चुनाव में वो भी हुआ जो पहले शायद ही नजर आया हो और वो है खास तरह की सीडी. न्यूज के दौरान बीच बीच में माहौल बदलने के लिए इन सीडी की चर्चा भी खूब हो रही है. वैसे तो इन सीडी में कुछ खास नहीं है पर जब ये सस्पेंस के अंदाज में न्यूज के बीच में दिखाई जाने लगती है तो तो पूरी गुंजाइश है कि बच्चे पूछ बैठे किस बात की सीडी है और इसका मकसद क्या है? अब आप सोचिए बच्चों को क्या जवाब देंगे आप? ये मत सोचिए कि वोटिंग खत्म होने के बाद सीडी से पीछा छूटेगा, नहीं चुनाव बहस के बैकग्राउंड में सीडी की चर्चा 18 दिसंबर तक लगातार रहेगी.

चुनाव में इतने तरह के किरदार हैं तरह तरह के किरदार हैं. देश में कहीं भी कोई घटना हो उसे सीधे गुजरात चुनाव से जोड़ा जा रहा है इस मामले में कश्मीर से कन्याकुमारी तक देश एक हो गया है.

18 दिसंबर के पहले कोई नहीं बता पाएगा विजेता का एलान(फोटो: क्विंट)
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इन दिनों न्यूज देखने का खतरा

  • मन में घृणा या दुर्भावना के विचार
  • जीवन मिथ्या लग सकता है विरक्ति के भाव
  • तरह तरह के आरोप लगाने की आदत
  • उलाहना देने, शिकायत करने की बीमारी
  • खुद की खामी के लिए दूसरों को जिम्मेदार ठहराने की प्रवृत्ति
  • बीच बीच में अर्थ को अनर्थ करने की इच्छाएं जागृत होंगी
  • सीधी बात को किस तरह जलेबी की तरह घुमाने की लत

ऐसे लोग भी अभी टीवी स्क्रीन से दूर रहें

अगर किसी को गुस्सा जल्दी आता है या फिर हाई ब्लड प्रेशर है तो डिबेट शो देखने से बचें. ऐसे शो में उत्तेजना के हालत बन सकते हैं जो सेहत के लिए ठीक नहीं हैं.

अभी हल्के-फुल्के मनोरंजन से ही काम चलाएं, क्योंकि अभी बहस का कोई फायदा नहीं. जीत हार का फैसला वोटों की गिनती से होगा जो 18 दिसंबर के सुबह 8 बजे के पहले शुरू होने वाली नहीं है और नतीजे तभी आएंगे. तब तक अपना और अपने करीबियों के मूड का ख्याल रखें

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

Published: 11 Dec 2017,07:50 PM IST

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