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कौन कहता है देश में नौकरियां नहीं है, जरा इधर भी नजरें इनायत कीजिए

पकौड़े खाइए और जॉब एप्लिकेशन भूल जाइए!!

प्रबुद्ध जैन
भूतझोलकिया
Updated:
बीते कुछ वक्त में देश में कई ‘नई नौकरियां’ पैदा हुई हैं
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बीते कुछ वक्त में देश में कई ‘नई नौकरियां’ पैदा हुई हैं
(फोटो: Altered by The Quint)

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देश में बड़ा हल्ला मचा है. नौकरियों का. नौकरियों के वादों का. पकौड़ों से आंकड़ों तक, सब राजनीति के चूल्हे पर देश की कड़ाही में मुहावरों और बयानों का बेसन लपेटकर खूब तले जा रहे हैं. सरकार कभी नए खुले पीएफ खातों का हवाला देकर नौकरियां पैदा होने का दावा कर रही है तो कभी पकौड़ों से ही युवाओं का भविष्य संवारती लग रही है. ये पूरी तरह भूलते हुए कि ऐसा करने में बेरोजगारों युवाओं के सपनों का 'तेल' निकल जा रहा है.

देश में खुल गईं कई रोजगार एजेंसियां

लेकिन इतनी हील-हुज्जत किसलिए भाई? जब देश में इंप्लॉयमेंट एक्सचेंज के समानांतर एक के बाद एक रोजगार एजेंसियां खुलती जा रही हैं तो नई नौकरियां पैदा करने की सारी जिम्मेदारी सरकार के सिर पर क्यों हो. क्या सरकार के पास कोई दूजा काम-वाम नहीं है क्या. हां, नहीं तो.

अब देखिए न. करणी सेना है, सर्व ब्राह्मण महासभा है, अलाने-फलाने दल, गुट और धड़े हैं. मोहल्ले-मोहल्ले पनपनी बाइक रैलियां हैं, गालियां हैं, पाले-पालियां हैं. यानी, नई नौकरियां पैदा करने का पूरा वारदाना मौजूद है. विरोधी, खामख्वाह बेरोजगारी और नौकरियों के नाम पर हायतौबा मचा रहे हैं.

राजपूत करणी सेना ने भी इस सीजन खूब रोजगार पैदा किए!(फोटोः IANS)

नौकरियां पैदा करना ‘दायें’ हाथ का खेल

बीते कुछ महीनों में इन सेनाओं और सभाओं ने दिखा दिया है कि इस मुल्क में नौकरियां पैदा करना बाएं हाथ का...नहीं-नहीं. 'दाएं' हाथ का ही खेल है. लोकतंत्र के 'राजा' की तरफ उम्मीद भरी निगाहों से क्या देखना जब एक ‘रानी’ ने ही राजस्थान से गोवा तक हजारों-लाखों रोजगार पैदा कर दिए. बेरोजगारों के हाथों में बल्लियां, लट्ठ, तलवार थमाकर उन्हें शॉर्ट टर्म जॉब दे दी गई. मत पूछिए कि इसके बदले क्या मिला. क्योंकि, ये ज्ञान पहले ही मिल चुका है कि पकौड़े वाला 200 रुपये लेकर घर लौटता है तो क्या वो बेरोजगार कहलाएगा? नहीं जनाब, बिल्कुल नहीं कहलाएगा.

इसी तर्ज पर ऐलानिया कह दीजिए कि दुकानें तोड़ते, आगजनी करते, स्कूली बच्चों से भरी बसों को निशाना बनाते, डेटा से भरे मोबाइल पर दंगों का सामान इकट्ठा करते युवाओं को स्वरोजगार मिल गया है, जॉब मिल गई है.
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न लोन का झंझट, न कंपनी रजिस्टर कराने की चिकचिक

पूर्व वित्तमंत्री पी चिदंबरम ने कहा कि मुद्रा लोन से औसत हरेक को 43 हजार रुपये मिले हैं, इतने पैसे में जॉब पैदा नहीं होती. लेकिन, कुकुरमत्तों की तरह मौका-बेमौका नमूदार होकर हो-हंगामे भरी 'नौकरियां' पैदा करने वाले संगठनों को तो मुद्रा लोन तक की जरूरत नहीं है.

ये भी पढ़ें- पकौड़े पर बहस।चिदंबरम ने पूछा,क्या ग्रेजुएट पकौड़ा बेचकर खुश होगा?

सरकार कह रही है कि अब एक दिन में कंपनी का रजिस्ट्रेशन हो जाएगा लेकिन कहां समय है एक दिन का भी. कभी-कभी तो अखबार की हेडलाइन पढ़कर सुबह-सुबह दो-चार फोन घुमाकर सड़कों पर कूद जाना पड़ता है. ये सूट भी तो करता है. इन नई नौकरियों में न कंपनी रजिस्टर कराने की जरूरत है, न टैक्स फाइल करने की. धंधा, घणा चोखा मालूम होता है.

तो भैया, कहां जॉब-वॉब के चक्कर में पड़ते हैं. रायता फैलाना छोड़िए. बेसन फैलाइए और उम्मीदों की कड़ाही पर सपनों के पकौड़े तलिए.

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Published: 06 Feb 2018,07:07 PM IST

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