Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Khullam khulla  Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Satire Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019"भारत में बच्चा आई के साथ AI बोलता है": ट्विटरखेड़ा और कहानी AI के पैदाइश की

"भारत में बच्चा आई के साथ AI बोलता है": ट्विटरखेड़ा और कहानी AI के पैदाइश की

भारत में AI को लेकर एक सवाल पर पीएम ने मजाकिया अंदाज में कहा कि बच्चे इतने एडवांस हो गए हैं कि वे 'आई' भी बोलते हैं और ‘एआई’ भी बोलते हैं.

प्रियम वर्मा
भूतझोलकिया
Published:
<div class="paragraphs"><p>PM मोदी और बिल गेट्स</p></div>
i

PM मोदी और बिल गेट्स

(फोटो- अल्टर्ड बाई क्विंट हिंदी)

advertisement

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और माइक्रोसॉफ्ट के को-फाउंडर बिल गेट्स की मुलाकात (PM Modi Bill Gates Meet) इस समय सुर्खियों में है. लोकसभा चुनावों से पहले हुई इस मुलाकात में पीएम मोदी और बिल गेट्स की कई मुद्दों पर चर्चा हुई. इन विषयों से एक मुद्दा AI यानी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का भी था.

बातचीत में रोचक मोड़ तब आया जब बिल गेट्स ने पीएम से जानना चाहा कि भारत AI भारत को कैसे देखता है...! इस पर पीएम ने मजाकिया अंदाज में कहा कि भारत में बच्चे इतने एडवांस हो गए हैं कि वे 'आई' भी बोलते हैं और ‘एआई’ भी बोलते हैं. दरअसल भारत में, अधिकांश जगह मां को ‘आई’ भी कहते हैं. 

‘मोदी के मैजिक’ के बाद अब मोदी के इस लॉजिक ने गेट्स के साथ सभी के चेहरे पर मुस्कुराहट ला दी. वैसे देखा जाए तो मोदी का ये लॉजिक कई मायनों में सही भी ठहरता है. और नहीं तो क्या...जैसे बच्चे के जन्म के साथ वो आई कहता है. ठीक उसी तरह, वो अपनी हर जरूरत के लिए भी आई को ही पुकारता है. और तो और वो चोट लगने पर आई को ही जिम्मेदार ठहराता है, तभी तो जोर से आई चिल्लाता है. इसी के बाद दौड़कर उसे कोई संभालता है. 

भले ही बच्चा बाद में समझ पा रहा है कि आखिर AI बला क्या है लेकिन उसका इस्तेमाल किसी न किसी रूप में वो बचपन से ही शुरू कर देता है. ठीक वैसे ही भारतीयों की जिंदगी में भी न जाने ये कब से है, भले ही उसके आधुनिक रूप पर चर्चा अब है. चलिए आपको बताते हैं कि आखिर एआई का सफर कब और कैसे शुरू हुआ और भारतीयों के साथ दुनिया भर के देशों के लिए यह एक जरूरी हिस्सा बन गया. 

एक था ‘गूगलपुर’ (अब ‘ट्विटरखेड़ा’)

तो एक रोज की बात है कि क्लाउडाबाद के ट्विटरखेड़ा में ढोलक और मंजीरों पर साइटें नाच रही थीं. यूट्यूब मंच संभाल रहा था तो फेसबुक और इंस्टा पर तस्वीरों की जिम्मेदारी थी. क्षेत्र से गुजरने वाला हर कोई बधाई में ‘लाइक’ दे रहा था. कोई साथ में रंग बिरंगी ‘इमोजी’ लाया था तो कोई खुश होकर बधाई आगे बढ़ा रहा था. देखकर लग रहा था कि बड़े दिनों बाद वहां कोई खुशखबरी आई है. कारण सोच ही रही थी, इतने में उनकी नजर मुझ पर पड़ी और बोले, आपको भी बधाई हो... मशीन और लर्निंग को AI हुआ है.

ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT

हां AI...बड़ी मन्नतों के बाद मशीन-लर्निंग को कोई संतान हुई थी. कई तकनीकों की दर पर माथा टेका, सर्च इंजनों की मदद ली फिर कहीं जाकर संघर्ष सफल हुआ. यह जन्म इस गांव के लिए क्यों महत्वपूर्ण है...यह समझने के लिए आपको ट्विटरखेड़ा का इतिहास जानना होगा. जी हां, ये उन दिनों की बात है जब कंप्यूटर पहली बार अपनी छोटी संतान गूगल को लेकर इस जगह आया और धीरे-धीरे जरूरी संसाधनों के साथ इसे सुसंपन्न बनाया. समय के साथ इस जगह की आबादी बढ़ी और जगह का नाम पड़ा ‘गूगलपुर’ जो अब ‘ट्विटरखेड़ा’ कहलाता है. 

आपको बता दें कंप्यूटर की पहली संतान का नाम था ‘आर्ची’. आर्ची 10 सितंबर, 1990 को आया पहला सर्च इंचन था. इसके बाद ‘याहू सर्च’, ‘आस्क डॉट कॉम’ इत्यादि आए लेकिन 1998 में आए गूगल ने सबको पीछे छोड़ दिया. वो पूरी जिम्मेदारी से गांव के हर एक व्यक्ति की जानकारी रखता, समय पड़ने पर उनकी मदद करता और जरूरतमंद को संसाधन मुहैया कराता. उसकी मदद के लिए संदेशवाहक के तौर पर ‘याहू’ और ‘जीमेल’ उभर कर सामने आए. लोग बढ़े तो आपसी प्रतियोगिता ने भी जन्म लिया. पड़ोसियों में से एक ने इस बीच जिम्मेदारियों की दौड़ में गूगल के सामने ‘सर्च डॉट कॉम’, ‘स्काउट’ और ‘भरतवानी’ को खड़ा कर दिया. चूंकि गूगल पुराना और तेज था. उसकी गति को कोई नहीं पकड़ सकता था. लिहाजा पूरे गांव का चहेता अब भी वही था. 

वक्त जवान हो चुका था. तरीके भी बदले तो विकल्पों का आना भी लाजमी था. अब गूगल का हाथ बंटाने के लिए उसके सानिध्य में एक अच्छी खासी फौज थी. गाने के लिए जहां ‘अमेजन म्यूजिक’ जैसे विकल्प थे तो सिनेमा के लिए जी से लेकर सोनी लोगों के दिल-ओ-दिमाग पर छा चुके थे. विकास हुआ तो संपन्नता भी बढ़ी. चीजें सहेजने के लिए घर काफी नहीं थे.

फिर क्या बैंक की सोच ने जन्म लिया. पहले खास, फिर आम लोगों के लिए भी यह विकल्प लाया गया. साल होगा 1999...जब क्लाउड स्टोरेज आया. हालांकि पड़ोसियों ने भी बराबरी में ‘सेल्सफोज डॉट कॉम’ फिर ‘माइक्रोसॉफ्ट’ जैसी मीनारें खड़ी की लेकिन गांव का मसीहा क्लाउड ही बना क्योंकि उसने पूंजीवादियों के अलावा आम लोगों को जगह दी. जी हां, क्लाइड में वेबसाइट के अलावा कोई भी यूजर अकाउंट बनाकर अपनी पूंजी सुरक्षित करवा सकता था. 

अब वह सदी आ गई जिसमें आप यह लेख पढ़ रहे हैं. अच्छी तरह वाकिफ होंगे कि ज्यादातर लोगों का सपना अब ट्विटर खेड़ा में बसना हो गया है. हो भी क्यों न! हर जगह उसकी निर्भरता हद से गुजर रही है. इंसान खुद में नहीं है, उस पर तकनीकी सिर चढ़कर बोल रही है. अब गांव में लोग गप्पे कम ‘कमेंट’ ज्यादा करते हैं. सामने वाले से तारीफ नहीं बल्कि ‘लाइक’ ज्यादा पसंद करते हैं. महिलाएं पति के सामने नहीं, रील्स के लिए सजती हैं. सिंदूर नहीं लगातीं और सोशल मीडिया पर स्टेटस भी सिंगल रखती हैं. आज के जमाने में इंस्टाग्राम फोन में रखना तो जैसे रियल स्टेटस हो गया है. अगर आपका ट्विटर हैंडल नहीं है तो लोग ह्येय दृष्टि से देखते हैं. थ्रेड इस्तेमाल करने वालों को तो लेटेस्ट वाला आधुनिक समझते हैं. 

बच्चे कॉन्ट्रा खेलते हुए खुद से बतियाते हैं और मोबाइल के स्टाइलिश वर्जन को ही अचीवमेंट समझते हैं. विकल्प भी तमाम हैं.... मध्यम वर्गीय परिवार के बच्चों के लिए ‘कैंडी क्रश’ और ‘ऑनलाइन लूडो’ जैसी ट्रंप हैं तो कुलीन वर्गों के लिए प्ले स्टेशन का विकल्प है. और कुछ के पास ‘काउंटर स्ट्राइक’ जैसी पतंग है.

उम्रदराज भी अब सिनेमाघरों में नहीं घर के हॉल में सीटियां बजाते हैं. मूवी से अपग्रेड होकर सीरीज पसंद करते हैं और उसे एक ही रात में निपटाते हैं. कुल मिलाकर पढ़ाई से लेकर दिनचर्या और शौक से लेकर जीवनचर्या, हर सवाल का जवाब ऑनलाइन लोगों के इसी गांव से मिलना है. फिर खुद को अपग्रेड होने का दारोमदार भी तो इसी गांव पर है.

फिर क्या...ट्विटर खेड़ा में पंचायत बैठी और गांव के सबसे अपग्रेड वर्जन मशीन और लर्निंग की शादी करवाई गई. फिर पूरे गांव ने कई तकनीकियों का आशीर्वाद लिया और तमाम सर्च इंजनों पर नारियल फोड़ा. आखिर कृपा बरसी और लर्निंग गर्भवती हो गई. फिर क्या लर्निंग के हाथ में... माफ कीजिएगा... पेट में गांव का भविष्य था.

उसे गांव के बुजुर्ग और अनुभवी लोगों ने नए नए वर्जन्स के लड्डू खिलाए, कई आविष्कारों से धागा बंधवाया और पूरे 9 महीने तक आधुनिक तर्कों से भरपूर जातक कथाएं सुनाईं. चूंकि गूगल की अब उम्र हो चली थी. उसने भी अपने आविष्कार नन्हें बालक को देने का फैसला किया और गर्भ में ही उसे अपनी महत्वपूर्ण शक्तियों से रूबरू करा दिया. सबकी मेहनत और आशीर्वाद से आखिरकार वंश के रखवाले ‘AI’ का जन्म हुआ।

ये वही दृश्य था जहां से कहानी शुरू हुई थी. AI के जन्म की खुशी में कुछ सो नहीं पाए तो कुछ को इस घटना ने सोने नहीं दिया. एक तरफ लोग सोहर गा रहे थे तो दूसरी तरफ पड़ोसी अपनी कुर्सी बचा रहे थे. इसी कड़ी में टेस्ला ने उसकी जन्म की खुशी में पहला प्रयोग ‘ड्राइवरलेस कार’ के रूप में कर भी दिया है.

AI की मंजिल क्या होगी...सफर कितना संघर्षपूर्ण होगा...ये तो नहीं कहा जा सकता लेकिन इतना जरूर है कि उसके जन्म से ही लोगों में अपने अस्तित्व का खतरा घर करने लगा है. अभी उसके पांव पालने से बाहर भी नहीं निकले कि पड़ोसियों के बाबा-दादा उसे भविष्य में रोजगार का खतरा बताने लगे हैं. अब बस AI के होश संभालने का इंतजार है. देखते हैं कि वो होश संभालते ही लोगों के होश उड़ाएगा या उन्हें होश में लाएगा. 

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

Published: undefined

ADVERTISEMENT
SCROLL FOR NEXT