अनशन पर अनशन है, नेताजी को कुर्सी की टेंशन है

क्या आप बता सकते हैं उपवास कितने प्रकार के होते है?

शादाब मोइज़ी
भूतझोलकिया
Published:
भारत में सर्दी, गर्मी, बारिश के अलावा पांचवां मौसम उपवास का भी होता है.
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भारत में सर्दी, गर्मी, बारिश के अलावा पांचवां मौसम उपवास का भी होता है.
(फोटो: हर्ष सहनी/द क्विंट)

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अनशन पर अनशन है, नेताजी को कुर्सी की टेंशन है, और जनता जब से बनी जनार'धन' है, तब से डब्बे में राशन की जगह भाषण है.. आप सोच रहे होंगे कि हम ये सब आपको काहे बता रहे हैं, तो बता दें कि मंच सज चुका है, तंबू लग चुका है, एसी ऑन है, नेता जी मौन हैं, भीड़ जुट गई है, खबरें बिक गई हैं, लाउडस्पीकर मुंह चिहारे तैयार है, और जनता के इमोशन पर उपवास आखिरी वार है...

भारत में सर्दी, गर्मी, बारिश के अलावा पांचवां मौसम उपवास का भी होता है. या यूं कहें कि आजकल अनशन का ट्रेंड चला हुआ है. कोई छोले-भटूरे खाकर अनशन पर बैठा है, कोई पकोड़े और चाय की दुकान खोलकर खरीदार को रिझाने के लिए अनशन पर बैठा नहीं, लेटा है.

अनशन का जवाब भी तो अनशन से ही देना होगा

उपवास का क्रेज इतना सर चढ़ कर बोलने लगा कि देश की सबसे पुरानी पार्टी के नए अध्यक्ष भी उपवास पर बैठे गए. उपवास 10 बजे से 5 बजे तक था, इसलिए नेताजी के लोग 9 बजकर 59 मिनट तक खाते रहे.

अब चलन में अनशन है, तो फिर क्या था, देश की ‘सरकार’ भी अनशन पर बैठ गई. लेकिन तभी किसी ने सवाल किया कि साहब आप तो खुद ही मालिक हैं, सरकार हैं, फिर आप किसके खिलाफ अनशन पर हैं? तो साहब बोले कि अब ईंट से ईंट ही बजाई जाती है, ताली भी दोनों हाथ से ही बजती है, तो फिर अनशन का जवाब भी तो अनशन से ही देना होगा ना. तो बस ये मेरा करारा जवाब है..

उपवास कितने प्रकार के होते है?

तरह-तरह का उपवास मार्केट में हैं... छोटा उपवास पैक, सोने से पहले से लेकर सोकर उठने तक का उपवास पैक, ब्रेकफास्ट टू लंच पैक, मुख्यमंत्री बनने का, मुख्यमंत्री बने गए हैं, तो दोबारा सीएम बनने का. पीएम बनने की चाहत का उपवास, पीएम हैं, तो फिर प्रायश्चित का उपवास.

प्रायश्चित का उपवास, मतलब बेरोजगारी गई नहीं, नौकरी लोगों को मिली नहीं, 15 लाख आए नहीं. तो फिर अगले चुनाव से पहले कुछ तो करना था, तो चलो उपवास कर लें.

अनशन न हुआ, मानो हर मर्ज की दवा हो गई...

अनशन का ट्रेड मार्क 'बापू' वाले गांधी जी से तो 'छोटे गांधी' मतलब अन्ना हजारे ने 2011 में ही छीन लिया था. इस छीना-झपटी में किसी को फायदा हुआ है, तो अरविंद केजरीवाल का. अन्ना के अनशन के बाद से मानो अनशन ही करियर बनाने की आखिरी सीढ़ी हो. अनशन न हुआ, मानो हर मर्ज की दवा हो गई.

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मेरा अनशन ही मेरा शासन है

ऐसे पिछले साल जून की तपती गर्मी में मध्य प्रदेश में बच्चों के 'मामा' मतलब सीएम शिवराज सिंह चौहान भी भोपाल के दशहरा मैदान में अनशन पर बैठे थे. जनाब मंदसौर किसान आंदोलन में मारे गए किसानों के लिए उपवास कर रहे थे.

एमपी के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान.(फाइल फोटो: ट्विटर)

माहौल ऐसा बना था कि लगने लगा कि ये उपवास लंबा चलेगा, लेकिन महज एक दिन पूरा होते-होते शिवराज सिंह चौहान का उपवास टूट गया. शिवराज सिंह ने मंच से खुद ऐलान किया कि वो अपना उपवास मारे गए किसानों के परिवार वालों की अपील पर तोड़ रहे हैं. वो अलग बात है कि मारे गए किसानों को ही नहीं पता था कि वो उपवास उनके लिए है.

"गाय से कहां पूछा था कि तेरी रक्षा के लिए आंदोलन करें या नहीं"

शिवराज सिंह की ऐसे अनशन से याद आया कि एक बड़े व्यंग्य बाबा गुजरे हैं, नाम था हरिशंकर परसाई.

हरिशंकर परसाई ने अपनी कहानी ‘10 दिन का अनशन’ में कहा था कि अनशन जिसके लिए कर रहे हैं, जिस लिए कर रहे हैं, मतलब ‘इशू’ उससे थोड़े ही पूछा जाता है कि भाई मैं आपके लिए अनशन करूं या ना करूं. जैसे गोरक्षा आंदोलन वालों ने गाय से कहां पूछा था कि तेरी रक्षा के लिए आंदोलन करें या नहीं.’ 

वैसे ही जिसके लिए अनशन कर रहे हैं, उससे अगर शिवराज जी ने पूछा नहीं, तो कोई गुनाह नहीं किया.

ऐसे बता दें कि मध्य प्रदेश में सरकार भी इन्हीं की है, किसान नाराज भी इन्हीं से थे, किसानों पर अटैक करने वाली पुलिस भी इन्हीं की, और तो और खुद की सरकार की नाकामी पर खुद ही उपवास पर बैठे थे.

"अनशन में चतुर खिलाड़ी मरते नहीं "

परसाई साहब ने ये भी कहा था कि अनशन में चतुर खिलाड़ी नहीं मरते. वे एक आंख मेडिकल रिपोर्ट पर और दूसरी मध्यस्थ पर रखते हैं. इसलिए शायद अब चतुर खिलाड़ी अनशन का छोटा पैक इस्तेमाल करते हैं. 10 बजे दिन से शाम के 4 बजे तक वाला.

ऐसे तो उपवास किसानों के हक, भ्रष्टाचार, मजदूरों की आवाज जैसी जीरो टीआरपी वाली चीजों के लिए कुछ लोग करते ही हैं, लेकिन फिलहाल मार्केट में इस तरह के अनशन का कोई महत्व नहीं है.

अभी दो तरह के लोग ही उपवास कर रहे हैं- एक जिसके पास किचन नहीं है, मतलब सत्ता नहीं है, तो वो खाएगा कहां से, इसलिए उपवास दिला सकता है उनको सत्ता का फ्री पास.. वहीं दूसरा वो है जिसके पास किचन भी है, खाना भी है, सत्ता का दबदबा भी है, ज्यादा खा भी लिया है, तो ऐसे में खाना पच भी जाये और किसी को डकार की आवाज भी न आए, इसलिए उपवास आखिरी आस है.

लेकिन सवाल ये है कि अनशन से या उपवास से जनता का फायदा होगा? क्या उपवास जनता को आएगा रास, क्या देश का इससे होगा विकास? जवाब ना मिले, तो आप भी उपवास कीजिएगा, शायद जवाब मिल जाए.

ये भी पढ़ें- उपवास तो एक बहाना है, असली मंजिल तो सत्ता पाना है !

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