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लड़की को गले लगाना ‘रिस्‍की’ है, इसलिए जान लें ये 4 जरूरी बातें 

प्रिंसिपल का कहना है कि दोनों बच्‍चे अगर 1, 2 या 3 सेकेंड तक गले मिलते, तो कोई बात नहीं थी.

अमरेश सौरभ
सोशलबाजी
Updated:
अब क्‍या गले मिलकर गर्मजोशी से बधाई देना भी गुनाह हो गया!
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अब क्‍या गले मिलकर गर्मजोशी से बधाई देना भी गुनाह हो गया!
(फोटो: iStock)

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भारत कृषि प्रधान देश तो पहले से रहा है, अब विज्ञान और तकनीक में भी दुनिया के विकसित देशों को टक्‍कर दे रहा है. इसके बावजूद कुछ ऐसी बातें हो जाया करती हैं, जिनसे हमारी इमेज को धीरे से ही सही, पर जोर का झटका लग रहा है.

पहले मामला बता दें, फिर कुछ जरूरी टिप्‍स. केरल के एक स्‍कूल में 16 साल के लड़के ने साथ पढ़ने वाली अपनी ही उमर की दोस्‍त को सरेआम गले लगा लिया था. दरअसल, लड़की ने म्‍यूजिक में अच्‍छा परफॉर्म किया था और उसके दोस्‍त ने गर्मजोशी से बधाई दी थी. एक टीचर ने दोनों को अलग किया, बवाल मचाया.

बात प्रिंसिपल, सेक्रेटरी से बढ़ते हुए हाईकोर्ट तक पहुंची. आहत लड़का 12वीं बोर्ड एग्‍जाम की तैयारी ढंग से नहीं कर पा रहा है. स्‍कूल के रवैये से हैरान और दुखी लड़की ने किसी दूसरे स्‍कूल में दाखिला ले लिया.

खैर, जो हुआ, सो हुआ. अब डर केवल इस बात का है कि दूसरे देश के मीडियावाले इस घटना को अपने-अपने अखबारों में न छापें, बस्‍स.

वैसे एक-दूसरे से गले लगने को आतुर लड़कों और लड़कियों को परेशान होने की जरूरत नहीं है. हम उनके हित में एडवायजरीनुमा कुछ टिप्‍स पेश कर रहे हैं.

टाइमर (अवधि सूचक यंत्र) साथ ले जाना न भूलें

ये सबसे जरूरी चीज है. उस स्‍कूल के प्रिंसिपल का कहना है कि दोनों बच्‍चे अगर 1, 2 या 3 सेकेंड तक गले मिलते, तो कोई बात नहीं थी. लेकिन इससे ज्‍यादा देर तक मिलना अभद्रता है. मतलब गले मिलने में कोई दिक्‍कत नहीं है. पाबंदी केवल ड्यूरेशन को लेकर है.

हमें ये बात अच्‍छी तरह समझनी होगी कि जब मामला स्‍कूल-कॉलेज का हो, तो हर चीज घड़ी और घंटी के हिसाब से ही चलनी चाहिए.

मेरे जमाने में एक प्रोफेसर साहब वक्‍त के बड़े पाबंद थे. कहते थे, ‘’घंटी बजने पर आऊंगा, घंटे भर पढ़ाऊंगा, घंटा पढ़ाऊंगा.’’

कुछ जानकारों का ऐसा मानना है कि गुरुघंटाल शब्‍द ही उत्‍पत्त‍ि के पीछे टीचरों का वक्‍त का पाबंद होना ही है. अगर आपके स्‍कूल-कॉलेज में भी कोई गुरुघंटाल हों, तो आपको चौकस रहना चाहिए. किसी से गले मिलते वक्‍त टाइमर या स्‍टॉप वॉच जरूर ले जाना चाहिए.

पर स्‍टॉप वॉच दबाएगा कौन?

अब जबकि लिमिट 3 सेकेंड तय है, तो बड़ा सवाल ये है कि गले मिलने वाले स्‍टॉप वॉच कब और कैसे दबाएं? या तो गले मिले लें या घड़ी पर ही पूरा फोकस कर लें. दोनों बातें साथ-साथ कैसे हो सकती हैं. 3 सेकेंड के भीतर उसेन बोल्‍ट वाली फुर्ती से गले मिलकर अलग हों, तो झपटमार समझे जाने का भी डर है.

इस समस्‍या का एक हल ये हो सकता है कि लड़के और लड़कियां, यानी दोनों पक्ष अपनी ओर से कम से कम 2 लोगों को पहले वहां इकट्ठा कर लें. किसी के हाथ में घड़ी थमा दें. वही 3 सेकेंड होने पर अलर्ट कर दे.

इसका एक फायदा ये भी होगा कि अगर मामला कोर्ट में पहुंचा, तो ये लोग बतौर गवाह हालात और हाव-भाव का पूरा ब्‍योरा पेश कर सकते हैं. मामला बधाई देने भर का था या तेरी बांहों में है दोनों जहां मेरे वाला.

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प्राइवेसी में दखल देने का हक तो किसी के पास नहीं है, लेकिन मोरल पुलिस बनने वालों को ये बात कौन समझाए(फोटो: The News Minute)

भूलकर भी कम्‍प्रोमाइज न करें

केरल की घटना के दोनों पीड़ित बच्‍चे साफ-साफ बता चुके हैं कि वे आपसी सहमति से ही गले मिले. लेकिन स्‍कूल इस पर अड़ा है कि दोनों कम्‍प्रोमाइजिंग पोजिशन में थे.

दरअसल आज के स्‍कूल यही चाहते हैं कि बच्‍चे हर जगह कम्‍प्रोमाइज न करें, नहीं तो उनकी आदत और बिगड़ सकती है. मेरिट के बावजूद दाखिला नहीं मिल रहा, तो थोड़ा सा कम्‍प्रोमाइज करना ही है. किताब-कॉपी खरीदनी हो या यूनिफॉर्म, थोड़ा-सा कम्‍प्रोइज. डिवेलपमेंट फंड के लिए पैसे देने ही हैं, थोड़ा-सा कम्‍प्रोमाइज. ट्रांसपोर्ट के लिए भी थोड़ा-सा कम्‍प्रोमाइज.

अब इतनी बार कम्‍प्रोमाइज करने के बाद भी अगर किसी बच्‍चे के मन में कम्‍प्रोमाइज करने की ललक बची ही रह जाए, तो सही वक्‍त पर अलर्ट करना स्‍कूल का काम है.

डिजिटल मीडियम से बधाई दें

आपसी सहमति से गले मिलने पर कानूनन कोई रोक नहीं है. अदालत तो आपकी प्राइवेसी तक में दखल की इजाजत किसी को नहीं देता. पर बात इससे ऊपर उठकर समझने की है.

आजकल डिजिटल हिंदुस्‍तान का बड़ा जोर है. हर छोटा-बड़ा काम डिजिटल मीडियम से हो रहा है. ट्रांजेक्‍शन से लेकर मोबाइल कनेक्‍शन तक. फिर फेसबुक और वॉट्सऐप के रॉकेट साइंस से तो हर कोई वाकिफ है. गांवों की जिस जमीन ने आजतक पानी का मुंह नहीं देखा, वहां भी खड़े मोबाइल टावर विकास की कहानी बयां कर रहे हैं.

आज बच्‍चा-बच्‍चा वर्चुअल वर्ल्‍ड में जी रहा है. ऐसे में सचमुच किसी के गले लगकर उसका उत्‍साह बढ़ाने की कोई जरूरत रह जाती है क्‍या, ये आप खुद तय कर लीजिए. मौका सामने ही है. हैपी क्रिसमस, हैपी न्‍यू ईयर.

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

Published: 22 Dec 2017,05:27 PM IST

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