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ट्विटर पर सियासतदानों का अपने विरोधियों पर जुबानी हमला करना कोई नई बात नहीं. पर मामला तब काफी दिलचस्प हो जाता है, जब कोई राजनेता सत्ता से बंधकर खुलकर 'तीर' नहीं चला पाता. दूसरी ओर सत्ता से बस 'थोड़ा-सा' किनारा कर लेने वाले सियासतदान का ट्वीट इतना आक्रामक होता है कि उस बयान से गर्द-गुबार ऊपर उठता नजर आता है.
क्या आपने कभी बिहार सीएम नीतीश कुमार और पूर्व सीएम लालू प्रसाद के ट्वीट की बोलियों पर गौर किया है? एक सत्ताधारी जेडीयू के अध्यक्ष हैं, तो दूसरे सत्ताधारी गठबंधन के सबसे बड़े घटक आरजेडी के मुखिया हैं. चर्चा आगे बढ़ाने से पहले इन दोनों के कुछ हालिया ट्वीट देखते हैं:
लालू और नीतीश के ट्वीट से कुछ बातें एकदम साफ हो जाती हैं. लालू अपने पुराने आक्रामक और चुटीले अंदाज से थोड़ा भी बदलते नजर नहीं आते हैं. दूसरी ओर नीतीश के ट्वीट में पहले जैसी शालीनता और 'विकास गाथा' की झलक दिख जाती है.
दरअसल, लालू पब्लिक का मूड भांपने के खेल के काफी पुराने और पक्के खिलाड़ी रहे हैं. उन्हें मालूम है कि कौन-सी बात बोलकर वे तुरंत गली-नुक्कड़ तक चर्चा में छा जाएंगे. वे यह भी अच्छी तरह जानते हैं कि लोग उनसे कुछ चुटीला सुनना चाहते हैं. अगर उनकी बातों में थोड़ी आक्रामकता और मसखरेबाजी नहीं होगी, तो वह लोगों के बीच असर छोड़ने में नाकाम ही रहेगी. आप चाहें, तो उनकी आक्रामकता को 'लाठी' से जोड़ सकते हैं.
दूसरी ओर नीतीश के राजनीतिक करियर का ग्राफ लगातार ऊपर की ओर जा रहा है. चाहे वे मानें या न मानें, पर उनकी नजर साल 2019 के लोकसभा चुनाव और पीएम पद की दावेदारी पर जरूर होगी. यही वजह है कि वे 'सुशासन बाबू' की इमेज बरकरार रखते हुए इसे ज्यादा से ज्यादा चमकाने को लेकर फिक्रमंद नजर आते हैं.
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