advertisement
लोकसभा चुनाव में परिवार की सीट भी गंवा देने वाली समाजवादी पार्टी मुश्किल दौर से गुजर रही है. एसपी चीफ अखिलेश यादव का हर दांव खाली जा रहा है. कहें तो चौतरफा नुकसान पहुंच रहा है. आर्टिकल 370 इसका ताजा उदाहरण है, जिसका विरोध कर उन्होंने समाजवाद का धर्म तो निभा दिया लेकिन सोशल मीडिया पर उनका कोर वोटर ही विरोधी नजर आ रहा है.
जबकि यूपी में उनकी बड़ी प्रतिद्वंदी मायावती इसका समर्थन कर वाह वाही भी लूट रही हैं और मंडरा रहे ईडी और आईटी के खतरे से भी बचती दिख रही हैं. लब्बोलुआब यह है कि लोकसभा चुनाव के बाद आर्टिकल 370 पर भी बुआ मुनाफे में, भतीजे से आगे निकल गईं हैं.
मायावती की बात करें तो आर्टिकल 370 के मसले पर सरकार का समर्थन कर उन्होंने खुद को राजनीति के मैदान में अव्वल साबित किया है. मायावती के इस पैंतरे के पीछे की वजह चाहे उन पर केन्द्रीय जांच एजेंसियों का लगातार कसता शिकंजा हो या फिर बाबा साहेब के विचारों का आड़. पर इतना तो तय है कि मोदी सरकार के समर्थन का उनका दांव एकदम सटीक पड़ा है.
मायावती के इस कदम के समर्थन में ट्विटर पर मैसेज की बाढ़ सी आ गई. 22 जनवरी 2019 को मायावती ट्विटर से जुड़ीं. 6 अगस्त को आर्टिकल 370 के समर्थन में किया गया उनका ट्वीट अकाउंट ओपन होने के अबतक सबसे ज्याद रीट्वीट हुआ है. 4.5K रीट्वीट और 33.2K लोगों ने लाइक किया है.
मायावती के इस पोस्ट पर खूब कमेंट आये, जिममें तारीफ करने वालों की संख्या ठीकठाक है.
हालांकि, विरोध करने वाले भी हैं, जिन्हें मायावती का यह कदम ठीक नहीं लगा.
वहीं, इसके दूसरी तरफ अखिलेश को लेकर परिस्थितियां विपरीत रहीं. अखिलेश यादव ने जम्मू कश्मीर से आर्टिकल 370 को हटाने के सरकार के फैसले पर थोड़ा बचते हुए अपनी प्रतिक्रिया दी. ट्विटर पर कहा कि हम देश की एकता और अखंडता को मजबूती प्रदान करने की दिशा में उठाए गए किसी भी कदम का स्वागत करते हैं पर सहमति और भरोसे से फैसले होने चाहिए. अखिलेश यादव ने समाजवादी पार्टी के ट्वीट को रीट्वीट किया, इसके बाद तो विरोध में जवाबों का तांता लग गया.
खास बात यह रही कि सोशल मीडिया पर अखिलेश का विरोध करने वालों में दूसरे लोगों के साथ उनके अपने यानी कि यादव भी शामिल थे. अखिलेश ने सरकार का विरोध कर यादवों को भी अपना विरोधी बना लिया, जिसकी उन्होंने उम्मीद भी नहीं की होगी.
अखिलेश यादव का 370 के मुद्दे पर सरकार के विरोध का मकसद अल्पसंख्यक समुदाय को अपने साथ लाने का था. अखिलेश ने सोचा कि अगर वो इस मुद्दे पर सरकार को घेरते हैं तो मुसलमान खुश हो जाएंगे. पर उनका ध्यान इस ओर नहीं गया कि राष्ट्रवाद पूरे उफान पर है और उनके अपने यादव समर्थक समाजवादी पार्टी से अलग हट कर भी सोच सकते हैं.
आर्टिकल 370 पर केन्द्र सरकार यह नैरेटिव सेट करने में सफल रही है कि इसका विरोध करने वाला राष्ट्रद्रोही और समर्थन करने वाला देश भक्त है. जैसा कि चैनलों और सोशल मीडिया में दिख रहा है. आमतौर पर अखिलेश यादव खुद के हैंडल या फिर पार्टी के हैंडल से ट्वीट या रीट्वीट कर दें, उसे रीट्वीट और लाइक करने वालों की संख्या हजारों में होती है. इस ट्वीट पर गाली और उदासी दिखी. इस मुद्दे पर अखिलेश का समर्थन करने वालों की संख्या काफी कम है.
समाजवादी पार्टी से यादवों का जुड़ाव कोई छिपी हुई बात तो नहीं है और ऐसा भी नहीं है कि यादव है तो समाजवादी पार्टी के साथ ही होगा. पिछले चुनावों में यादवों ने अखिलेश के साथ भरपूर ईमानदारी दिखाई थी. जब अखिलेश ने मायावती के साथ हाथ मिलाया तो यादवों ने उसका सम्मान किया.
एक समय जो यादव अखिलेश के कहने पर वोट बांटने पर तैयार हो गए थे वो अब राष्ट्र के मुद्दे पर अखिलेश के खिलाफ हो गए हैं. जो अखिलेश की राजनीति के लिए महंगा साबित होगा. चुनावी बिसात पर मायावती के गठबंधन राजनीति का शिकार हुए अखिलेश यादव को मायावती ने सोशल मीडिया के मैदान पर भी चित कर दिया है.
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)