#TalkingStalking: जब उसने बंदूक दिखा कर मेरी सही बात भी दबा दी 

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नियम तोड़ने वाले बंदूक का सहारा ले आतंक फैलाते हैं
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नियम तोड़ने वाले बंदूक का सहारा ले आतंक फैलाते हैं
(फोटो:iStockphoto)

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यह कहानी पूरी तरह से पीछा करने की नहीं है. लेकिन, यह सार्वजनिक जगहों पर महिलाओं की सुरक्षा का मसला जरूर उठाती है. साथ ही दिखाती है कि लोगों के लिए किसी थोड़ी बहुत अनजान जगह पर एक महिला को धमकाना कितना आसान है.

यह घटना करीब एक साल पहले हुई थी. मैं बेंगलुरू में थी और उस समय शहर की एक पॉश कॉलोनी में रह रही थी. मैं कई शहरों में रही हूं. मैंने देखा कि दोपहिया वाहनों के मामले में बेंगलुरू की स्थिति सबसे ज्यादा खराब है. बाइक और स्कूटर चलाने वालों को लगता है कि वो कहीं से भी आकर अपने लिए रास्ता बना सकते हैं. मैं आम तौर पर इसका विरोध करती हूं, खास तौर पर जब दोपहिया वाहन पैदल चलने वालों के लिए बने फुटपाथ पर से गाड़ी ले जाते हैं. यह मामला भी कुछ इसी तरह का है.

मैं उस दिन अपने घर की तरफ लौट रही थी कि तभी स्कूटर पर आ रहा एक अधेड़ उम्र का आदमी मेरे पीछे से हॉर्न बजाने लगा. मैं फुटपाथ पर चल रही थी लेकिन वो गलत रास्ते पर था. उसने गाड़ी फुटपाथ पर चढ़ाई हुई थी. वह कानून तोड़ रहा था न कि मैं. किसी तरह वह मुझे पार करके आगे निकला पर मैंने उसे रोक दिया. मैंने उससे कहा कि ये गलत है और वह फुटपाथ पर गाड़ी चलाकर कानून नहीं तोड़ सकता. लेकिन, वह मुझसे बहस करने लगा और उसने कहा कि यहां बहुत ज्यादा ट्रैफिक है और वो शॉर्टकट लेना चाहता है. उसने और भी बातें कहीं. यह सब थोड़ी देर चला जिसके बाद उसने मुझे घूर कर देखा और चला गया.

इसके बाद मैं एक दोस्त से फोन पर बात कर रही थी और अपने घर की तरफ चल रही थी. तभी मैंने देखा कि वही शख्स फिर से मेरे पास आया और रुक गया. इस बार, उसने कहा कि मुझे उससे नहीं उलझना चाहिए था क्योंकि यह उसका इलाका है और मैं उसे सही-गलत बताने वाली कोई नहीं होती. उसने मुझे धमकाने के लहजे में पूछा, ''तुम जानती हूं कि मैं कौन हूं?''

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मुझे लगा कि वो कोई राजनीतिक पार्टी का गुंडा है लेकिन उसने आगे जो किया उससे मेरे होश ही उड़ गए. उसने अपनी जैकेट की जेब से एक रिवॉल्वर निकाली और मुझे दिखाते हुए बताया कि वो कौन है और फिर चला गया. उस वक्त तो जैसे मेरे पांव ही जम गए, और सच में, मुझे कुछ समझ ही नहीं आया कि क्या करूं.

सबकुछ इतना जल्दी हो गया कि मुझे सोचने-समझने का वक्त ही नहीं मिला. मुझे याद है कि मैं वहां बहुत देर तक खड़ी रही क्योंकि मैं नहीं चाहती थी कि उसे मेरे घर का पता चले. मैं सचमुच बहुत डर गर्ई थी और ये हकीकत थी कि मैं एक सार्वजनिक जगह पर सुरक्षित नहीं हूं क्योंकि मैंने किसी को कुछ गलत करने से रोका है.

इसके बाद भी कई दिनों तक मुझे डर लगता रहा कि कहीं वो शख्स फिर से न मिल जाए. एक हफ्ते बाद मैंने उसे फिर से देखा और उसने मुझे. मैंने उसे जीता हुआ और खुद को हारा हुआ महसूस किया क्योंकि मेरे पास अपनी सुरक्षा के लिए बंदूक जैसी ताकतवर ढाल नहीं है! इस तरह का डर भी एक तरह से उत्पीड़न ही है और कहने की जरूरत नहीं है, इस घटना के कारण मैं लंबे समय तक घबराहट में रही.

ये स्‍टोरी पहली बार TheQuint पर छापी गई थी

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Published: 30 Nov 2017,07:14 PM IST

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