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कठुआ में आठ साल की बच्ची के साथ रेप के बाद हत्या का मामला सोशल मीडिया पर वायरल हो रही फेक पोस्ट के चलते अब सांप्रदायिक रंग ले चुका है. जम्मू-कश्मीर पुलिस की चार्जशीट के मुताबिक, इसी साल जनवरी महीने में आठ साल की बच्ची को पहले अगवा किया गया फिर कई दिनों तक रेप के बाद उसकी हत्या कर दी गई.
इस केस को लेकर सोशल मीडिया पर कई तरह की पोस्ट वायरल हो रहे हैं. इन्हीं में से एक, 'कठुआ केस में वकील क्यों कर रहे हैं सीबीआई जांच की मांग' नाम से पोस्ट वायरल हो रहा है. इस पोस्ट में जो दावे किए गए हैं, वो पूरी तरह झूठे हैं.
इस पोस्ट में सात प्वॉइंट दिए गए हैं, जिनमें से एक भी सही नहीं है. देखिए- पोस्ट में जो सात दावे किए गए हैं, उनकी सच्चाई क्या है?
पहला दावाः "पहली पोस्टमार्टम रिपोर्ट में सिर्फ बच्ची की हत्या की बात थी, रेप की नहीं."
हकीकतः जम्मू-कश्मीर पुलिस की चार्जशीट में एक पोस्टमार्टम के अलावा किसी दूसरे पोस्टमार्टम का जिक्र नहीं है. आठ साल की बच्ची के शव का पोस्टमार्टम 17 जनवरी को दोपहर 2.30 बजे कठुआ जिला चिकित्सालय के डॉक्टर्स की टीम ने किया था.
मेडिकल एक्सपर्ट्स के मुताबिक, पीड़िता के साथ पहले रेप किया गया था, इसके बाद उसकी हत्या की गई थी. जांच में भी सामने आया है कि पीड़िता के साथ एक से ज्यादा आरोपियों ने रेप किया था.
दूसरा दावाः "किसी को भी आठ दिन तक मंदिर में बंधक बनाकर रखना और उसके साथ रेप करना असंभव है, वो भी तब जबकि मंदिर में हमेशा लोगों का आना जाना रहता हो और मंदिर बीच सड़क पर हो."
हकीकतः ये दावा भी आंकड़ों के मामले में सिरे से झूठा है. पहली बात, बच्ची को आठ दिन नहीं, छह दिन तक बंधक बनाकर रखा गया. उसे बेहोशी की हालत में 10 जनवरी को लाया गया और नाबालिग समेत दो आरोपियों ने 15 जनवरी को उसके शव को रासना के जंगल में फेंक दिया.
दूसरी बात, द क्विंट जब उस मंदिर में पहुंचा, जहां पुलिस के मुताबिक बच्ची को बंधक बनाकर रखा गया था, तो पता चला कि यह बहुत ज्यादा भीड़भाड़ वाला मंदिर नहीं है. मंदिर ऐसी जगह पर हैं, जहां आस-पास कोई घर नहीं है.
तीसरी बात, अगर ये पोस्ट करने वाले 'शंखनाद' से कोई शख्स उस मंदिर गया होता तो उन्हें पता होता कि मंदिर सड़क के बीचोबीच नहीं बना हुआ है. दरअसल, मंदिर एक पहाड़ी पर बना हुआ है, जोकि रासना गांव से काफी दूर है.
तीसरा दावाः 'बच्ची के शव पर जो गीली मिट्टी लगी हुई है, वो उस इलाके की नहीं है. इसका मतलब ये है कि उसकी कहीं और हत्या की गई और बाद में उसका शव मंदिर परिसर में फेंक दिया गया.'
हकीकतः 'शंखनाद' ने बच्ची के शव पर गीली मिट्टी का दावा किया है, जोकि पूरी तरह से गलत है. पुलिस की जांच में कहीं भी गीली मिट्टी का जिक्र नहीं है और ना ही मेडिकल एक्सपर्ट्स ने इसका कोई जिक्र किया है.
'शंखनाद' का दूसरा दावा है कि बच्ची की हत्या कहीं और की गई, इसके बाद उसके शव को मंदिर परिसर में फेंक दिया गया. ये दावा भी पूरी तरह से गलत है, क्योंकि नाबालिग का शव मंदिर परिसर से नहीं, बल्कि रासना के जंगल से बरामद हुआ था.
चौथा दावाः जब गांव वालों ने रोहिंग्या मुसलमानों को इलाके में बसाने का मुद्दा उठाया तो मुफ्ती सरकार परेशान हो गई.
हकीकतः सरकार ने रोहिंग्या लोगों को जरूरी दस्तावेजों के साथ जम्मू में बसने की इजाजत दी गई. स्थानीय लोगों ने इस पर आपत्ति भी जताई, लेकिन ये मुद्दा तीन साल पुराना है.
पांचवां दावाः मुफ्ती ने एक अफसर इरफान वानी को नया मुद्दा बनाने के लिए भेजा, जोकि एक लड़की के साथ रेप करने और पुलिस कस्टडी में उसके भाई की हत्या का आरोपी है.
हकीकतः इस दावे का पहला हिस्सा झूठा है. इस केस को हैंडल करने के लिए क्राइम ब्रांच का चयन मुफ्ती ने नहीं किया. जांच टीम का चयन एसएसपी क्राइम ब्रांच रमेश कुमार जल्ला ने किया था, जोकि खुद एक कश्मीरी पंडित हैं.
जब द क्विंट ने उनसे इरफान वानी के पुराने केसों के बारे में बात की, तो उन्होंने कहा, 'मुझे इंस्पेक्टर इरफान वानी के खिलाफ इस तरह के आरोपों की कोई जानकारी नहीं थी. मुझे मीडिया में खबरें आने के बाद इसकी जानकारी हुई. वानी के खिलाफ एक लड़की के साथ रेप करने और एक लड़के की हत्या का केस दर्ज हुआ था. लेकिन वह इन दोनों केसों में साल 2014 में बरी हो गया. अगर उसे देश की न्यायपालिका ने बरी कर दिया है तो फिर मेरी टीम में उसे शामिल किए जाने में कुछ भी गलत नहीं है. मेरी टीम ने चार्जशीट बनाने में अच्छा काम किया.'
छठवां दावाः इरफान वानी को जांच टीम में शामिल किए जाने के बाद नई रिपोर्ट तैयार की गई, जिसमें बिना फॉरेंसिक सबूतों के "रेप" किया जाना भी शामिल किया गया. जांच के नाम पर स्थानीय लोगों पर अत्याचार किए गए.
हकीकतः जैसा कि पहले दावे में कहा गया कि पहले से रिपोर्ट में 'रेप' को शामिल नहीं किया गया था. लेकिन हकीकत ये है कि इसे जांच में शुरुआत में ही शामिल कर लिया गया था. रिपोर्ट में यह चार्ज पोस्टमार्टम रिपोर्ट के आधार पर लगाए गए.
सातवां दावाः जम्मू-कश्मीर पुलिस ने असली दोषियों को बचाने के लिए, निर्दोष लोगों को फंसाया.
हकीकतः असली अपराधी कौन है, यह चार्जशीट के आधार पर कोर्ट में होने वाली बहस के आधार पर ही तय होगा. क्राइम ब्रांच की चार्जशीट सही है या नहीं यह भी कोर्ट में ही तय होगा, नाकि फेसबुक पेज के जरिए पेश किए गए दावों के आधार पर, जोकि बिना मौके पर जाए किए गए हैं.
जो लोग झूठी खबरों के जरिए नफरत भड़काने वाले इस पेज के बारे में नहीं जानते हैं, उनके लिए हमारे पास इस पेज के जरिए पोस्ट की गई ऐसी कई फर्जी कहानियों के उदाहरण हैं जोकि इसकी प्रमाणिकता के दावों को खारिज करते हैं.
सितंबर 2017 में 'शंखनाद' ने ट्विटर पर एक वीडियो शेयर किया था. वीडियो के साथ लिखा गया था, "हैदराबाद में मुस्लिम समुदाय की भीड़ ने हिंदू मंदिर, वाहन और गौशाला में गायों को आग लगा दी."
सांप्रदायिकता भड़काने का एक और उदाहरण अक्टूबर 2017 का है. इस पेज के जरिए बिना सिर वाले स्वामी विवेकानंद की प्रतिमा का एक फोटो डाला गया. फोटो के साथ डाले गए कैप्शन में उत्तर प्रदेश के भदोही के मुसलमानों को इसके लिए जिम्मेदार ठहराया गया.
इस तरह के मामलों की लिस्ट काफी लंबी है. जुलाई 2017 में शंखनाद ने एक वीडियो पोस्ट किया था. इस वीडियो में शामली पुलिस स्टेशन पर हमले की बात कही गई. पुलिस स्टेशन पर हमले के लिए मुस्लिम समुदाय को जिम्मेदार ठहराया गया.
इस मामले पर शामली पुलिस ने स्पष्टीकरण दिया. जिसमें कहा गया कि ये वीडियो दो साल पुराना था, जिस पर आवश्यक कार्रवाई हो चुकी थी.
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