Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Lifestyle Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019रिव्‍यू: बेजोड़ किस्‍सों का सफर कराता है ‘शाह मोहम्‍मद का तांगा’

रिव्‍यू: बेजोड़ किस्‍सों का सफर कराता है ‘शाह मोहम्‍मद का तांगा’

साहित्‍य में रुचि रखने वालों के साथ-साथ स्‍वस्‍थ मनोरंजन चाहने वालों के लिए भी ये किताब पढ़ने लायक है.

अमरेश सौरभ
लाइफस्टाइल
Published:
किताब का कवर (फोटो: क्‍व‍िंंट हिंदी)
i
किताब का कवर (फोटो: क्‍व‍िंंट हिंदी)
null

advertisement

कहानी संग्रह: शाह मोहम्‍मद का तांगा

लेखक: अली अकबर नातिक

अनुवादक: मिर्जा ए.बी. बेग

प्रकाशक: जगरनॉट बुक्‍स

कीमत: 250 रुपये

लेखक के बारे में

अली अकबर नातिक उर्दू में लिखने वाले बेहतरीन युवा लेखकों में से एक माने जाते हैं. नातिक का जन्‍म 1974 में पाकिस्तान के ओकारा में हुआ था. मैट्रिक पास करने के बाद उन्‍होंने राजमिस्त्री के रूप में काम किया. इस काम में मंजकर वे गुंबदों और मीनारों के माहिर मिस्त्री बन गए. आगे चलकर उन्होंने उर्दू और अरबी साहित्य खूब पढ़ा और प्राइवेट से बीए की डिग्री हासिल की. धीरे-धीरे अपनी प्रतिभा के दम पर लेखन की दुनिया में छा गए.

किताब के बारे में

शाह मोहम्‍मद का तांगा में कुल 15 कहानियां हैं. इनमें हर कहानी के किरदार की भौगोलिक स्‍थ‍िति चाहे अलग हो, लेकिन स्‍वभाव में वह अपने ही पास-पड़ोस का रहने वाला नजर आता है. किसी में सादगी और भोलापन, तो किसी में क्रूरता और कुटिलता.

‘बख्‍तो गत पर आ गई’ कहानी में सीधे-सादे शमशेर ने अपनी भारी-भरकम कुल्‍हाड़ी उसी रफीक के हाथों में पकड़ा दी, जिसे मारने की वह कसम ले चुका था. शमशेर कहता है, ‘’इसे पकड़े-पकड़े तो मेरे बाजू आधे रह गए...भला कोई पूछे, मैंने कोई दिल्‍ली फतह करनी थी?’’

लेखक का किस्‍सागोई का नायाब अंदाज तांगेवाले शाह मोहम्‍मद के पात्र में साफ झलकता है. तांगावाला अपनी सवारियों के सामने हर रोज डींगें मारता हुआ नई-नई दास्‍तान सुनाता है. कहानी रोचक तो है ही, साथ ही इसमें गांवों के शहरीकरण और जीवों के मशीनीकरण के क्रम का भी बेजोड़ चित्रण किया गया है.

कुछ लाइनें देखिए...

’’लोगों के आग्रह पर मैंने स्‍कूटर रिक्‍शा तो लिया, लेकिन जब डेढ़ फुट के पहियों वाली फटफटिया पर बैठता, तो ऐसे लगता जमीन के साथ घिसटता जा रहा हूं. शर्म के मारे जमीन में ही गड़ जाता...’’

इस कहानी संग्रह का हर किस्‍सा पाठक को अंत तक बांधकर रखता है. ‘अलादीन की चारपाई’ का क्‍लाइमेक्‍स भी बेजोड़ है, जिसमें अंत में तस्‍वीर साफ पलट जाती है...

‘’करीमा का चेहरा मिट्टी में छुपने लगा, तो उसने आखिरी बार रहम मांगने वाली नजरों से गफूरे भोंदू की तरफ देखा. उसी वक्‍त गफूरे का हाथ कुल्‍हाड़ी पर जा पड़ा और...’’

ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT

इस किताब को क्‍यों पढ़ें

अगर शहरी चकाचौंध से दूर ग्रामीण परिवेश वाले किस्‍से-कहानियां पढ़ना ज्‍यादा पसंद करते हैं, तो यह किताब आपके लिए ही है. हर कहानी में पाकिस्‍तान, खासकर पंजाब प्रांत की मिट्टी की खुशबू महसूस की जा सकती है. हां, कहीं-कहीं लहू की प्‍यास भी साफ झलक जाती है, जो कहानी के पात्र के हिसाब से फिट बैठती है.

इन कहानियों को पढ़कर आप जान सकेंगे कि भले ही भारत और पाकिस्‍तान के बीच बड़ी लकीर खींच दी गई हो, पर लोग तो दोनों तरफ कमोबेश एक जैसे ही हैं.

भाषा और शैली के लिहाज से भी किताब बेहतर है. अनुवाद के बाद इसमें हिंदी-उर्दू के ऐसे बेहद सहज, सरल शब्‍द लिए गए हैं, जिन्‍हें हर कोई बोलचाल में इस्‍तेमाल करता है.

कुल मिलाकर, ये कहानी संग्रह साहित्‍य में रुचि रखने वालों के साथ-साथ स्‍वस्‍थ मनोरंजन चाहने वालों के लिए भी पढ़ने लायक है.

(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)

Published: undefined

Read More
ADVERTISEMENT
SCROLL FOR NEXT