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स्कूल के दिनों में पढ़ी अंग्रेजी फिलॉसफर फ्रांसिस बेकन की ये पंक्तियां आज बहुत याद आ रही हैं.
हम में से बहुत से लोग पढ़ने के शौकीन हैं या फिर रहे हैं. किसी दिलचस्प किताब को पढ़ते-पढ़ते लेखक के साथ किसी दूसरी दुनिया में जाने और साथ ही कुछ नया सीखने-जानने का सुख उनसे जानिए, जो इस सुख को अक्सर जीते हैं.
पर हममें से ज्यादातर लोग वे हैं, जो टीवी सीरीज और सोशल मीडिया के दौर में अपनी पढ़ने की आदत में आई कमी आने को लेकर चिंतित हैं और फिर से रीडिंग हैबिट की ओर लौटना चाहते हैं. आज हम उन्हीं लोगों की बात करेंगे.
किस्मत बड़ी चीज है. किसने सोचा था कि पूरा देश और दुनिया एक वायरस के आगे बेबस होकर घर में कैद हो जाएगी. किसी ने तो लिख भी दिया-
‘सारे मुल्कों को नाज था अपने-अपने परमाणु पर,
कायनात हो गई बेबस, एक छोटे से विषाणु पर.’
अब चूंकि घर में रहना और बाहर न निकलना ही नागरिकों के लिए सबसे बड़ी देश सेवा है, ऐसे में क्या करें कि व्यस्त और मस्त रहते हुए ये मुश्किल वक्त अच्छे से निकल जाए और रीडिंग हैबिट फिर से हमारी जिंदगी में लौट आए. तो आइए, जानते हैं कोरोना संकट के इस दौर में, पढ़ने की आदत के सम्बंध में कुछ काम की बातें.
चाहे आप छात्र हों यह वर्किंग प्रोफेशनल, अपने फील्ड में बेहतर काम करने के लिए आपको कुछ टेक्स्ट बुक पढ़नी होती हैं. पर टेक्स्ट बुक से अलग भी कुछ और पढ़ते-पढ़ते न केवल नई जानकारियों और ज्ञान से रूबरू होने का मौका मिलता है, बल्कि भाषा पर पकड़ भी मजबूत होती है. साथ ही एक बेहतरीन आदत का विकास होता और आनंद की अनुभूति होती है, सो अलग.
पढ़ना भी बाकी रुचि की तरह एक शानदार और दिलचस्प हॉबी है. लेकिन सवाल है कि इस तरह की शौकिया रीडिंग कब करें और पढ़ें तो क्या पढ़ें?
लेकिन हिंदी में क्या पढ़ें, यह सवाल काफी प्रासंगिक और ज्वलंत सा हो जाता है. मैं इस सवाल का जवाब खोजने में आपकी मदद करने की कोशिश करता हूं. हिंदी की किताबों को आप सुविधा और रूचि के अनुसार तीन-चार कैटेगरी में बांट सकते हैं:
ये किताबें, इतिहास, राजनीति, इकनॉमी, दर्शन, सेल्फ-हेल्प जैसे विषयों पर सामान्य रीडर्स की रूचि के हिसाब से लिखी जाती हैं और आपकी समझ को गहरा और व्यापक बनाती हैं. इन किताबों में अमर्त्य सेन, रामचंद्र गुहा, गुरचरण दास, ज्यां द्रेज, रजनी कोठारी, शशि थरूर, प्रताप भानु मेहता, बिपिन चंद्रा, सुनील खिलनानी जैसे लेखकों की किताबें शामिल हो सकती हैं.
इनमें से ज़्यादातर किताबों के बेहतरीन हिंदी अनुवाद आजकल बाजार और अमेजन वेबसाइट पर उपलब्ध हैं. इस तरह की ज्ञानवर्धक और प्रामाणिक किताबों के लिए भारत सरकार के ‘नेशनल बुक ट्रस्ट’ और ‘प्रकाशन विभाग’ की किताबें भी बेहतर विकल्प हैं.
यह क्लासिक साहित्य आपको विविध तरह के समाजों के सामाजिक-आर्थिक-राजनीतिक और मनोवैज्ञानिक जीवन और समस्याओं को समझने में मदद करके संवेदनशील बनाता है और भाषायी कौशल का विकास होता है सो अलग.
हिंदी और उसकी सभी बोलियों-उपभाषाओं के बेहतरीन साहित्य को इंटरनेट पर पढ़ने के लिए आप 'कविता कोश' और 'गद्य कोश' नामक दो बेहतरीन वेबसाइटों का सहारा ले सकते हैं.
मिसाल के तौर पर ऐसी चर्चित किताबों में नीलोत्पल मृणाल की 'डार्क हॉर्स' और ‘औघड़’, दिव्यप्रकाश दुबे की 'मसाला चाय' और 'मुसाफिर कैफे’, सत्य व्यास की 'दिल्ली दरबार' और 'बनारस टाकीज', पंकज दुबे की 'लूजर कहीं का', ललित कुमार की ‘विटामिन जिंदगी’, निशान्त जैन की ‘रुक जाना नहीं’, हिमांशु बाजपेयी की ‘किस्सा-किस्सा लखनउवा’, अनुराधा बेनीवाल की 'आजादी मेरा ब्राण्ड', नवीन चौधरी की ‘जनता स्टोर’, शशांक भारतीय की ‘देहाती लड़के’ और गौरव सोलंकी की ‘ग्यारहवी ए के लड़के’ जैसी किताबें शामिल हैं.
इस तरह के ‘नए किस्म के साहित्य’ के भीतर इंग्लिश के लोकप्रिय लेखकों- चेतन भगत, अमीश त्रिपाठी, अश्विन सांघी, आनंद नीलकंठन, क्रिस्टोफर सी डॉयल की लोकप्रिय किताबों के हिंदी अनुवाद भी शामिल किए जा सकते हैं.
ये किताबें अगर फिलहाल आपकी निजी लाइब्रेरी में उपलब्ध नहीं भी हैं, तो इनका ‘किंडल संस्करण’ आप पढ़ सकते हैं. लॉकडाउन के बाद तो बुक स्टोर पर व ऑनलाइन किताबें उपलब्ध होंगी ही.
कुल मिलाकर बात इतनी सी है कि रीडिंग हैबिट या पढ़ने का शौक आपको एक सुकून देता है, आपकी सोच और समझ को विस्तृत और व्यापक बनाता है, आपको बेहतर एक्सपोजर देता है और भाषा पर आपका अधिकार मजबूत तो करता ही है.
तो फिर देर किस बात की, आइए, लॉकडाउन का सार्थक उपयोग करें और खुद से और अपने दोस्तों से वीडियो कॉल पर बतियाते हुए पूछ ही लें, 'क्या पढ़ रहे हैं आजकल?'
(निशान्त जैन युवा IAS अधिकारी और ‘रुक जाना नहीं’ किताब के लेखक हैं.)
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