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देव दीपावली: जिस दिन काशी वालों के लिए देवता मनाते हैं दिवाली

जगमगा उठेंगे काशी के 87 घाट, विदेशी पर्यटकों से गुलजार होगी काशी

विक्रांत दुबे
लाइफस्टाइल
Published:
देव दीपावली पर अलग अंदाज में जगमगा उठता है बनारस
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देव दीपावली पर अलग अंदाज में जगमगा उठता है बनारस
(फोटो: रॉयटर्स)

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बनारस के अस्सी घाट पर 50 साल के प्रदीप कुमार अपने बजड़े (बड़ी नाव) को सजाने- संवारने में जुटे हैं. उनका बजड़ा सबसे अच्छा दिखना चाहिये क्योंकि पिछले कई सालों से उनता बजड़ा, दूसरे बजड़ों पर भारी पड़ा है. प्रदीप के उत्साह की वजह है वो दिन जिसका पूरा बनारस साल भर इंतजार करता है. और वो दिन है- देव दीपावली. देव दीपावली पर बनारस के नाविक चंद घंटों में कई महीनों की कमाई करते हैं. प्रदीप का बजड़ा जो आम दिनों में 3 हजार से 6 हजार रुपये किराये पर जाता है वो देव दीपावली पर तीन घंटे के लिये 1 लाख 80 हजार में बुक हुआ है.

प्रदीप ने प्लान किया है कि इस पैसे से वो अपने नाव से पुराना इंजन निकाल कर नया इंजन लगायेंगे. यही उत्साह बनारस के दूसरे छोटे-मोटे दुकानदारों से लेकर बड़े होटल मालिकों तक में है.

नाविक प्रदीप को है देव दीपावली का इंतजार(फोटो: विक्रांत दूबे)

क्विंट हिंदी आपको बताएगा कि आखिर क्या है वो देव दीपावली जिसकी चमक पूरी दुनिया में फैली है और क्यों उसके लिए बनारस साल भर इंतजार करता है.

क्या है काशी की अद्भुत देव दीपावली

देव दीपावली, असल दीपावली के पंद्रह दिन बाद दोबारा मनाई जाने वाली वो दीपावली है जो कार्तिक पूर्णिमा की रात वाराणसी को जगमगाती है. हालांकि इससे जुड़ा गंगा महोत्सव पांच दिन तक चलता है. सात किलोमीटर के इलाके में फैले बनारस के 87 घाट दीयों से सजाये जाते हैं. शाम होते ही टिमटिमाते दीयों की रोशनी हौले-हौले उठती गंगा की लहरों पर पड़ती है तो नजारा अद्भुत होता है. इसे देखने के लिए देश-विदेश से पर्यटकों की भीड़ उमड़ती है.

यूं तो घाटों को कार्तिक पूर्णिमा पर दीयों से सजाने की परंपरा पुरानी है लेकिन साल 1989 में पूरे पंचगंगा घाट पर एक साथ दीये जलाये गये. मगर पैसों की कमी के चलते ये देव दीपावली दो साल में ही बन्द हो गयी. 1993 में फिर इसकी शुरूआत हुई और उसके बाद यह सिलसिला घाट दर घाट बढ़ता चला गया.
(फोटो: रॉयटर्स)

देव दीपावली की पौराणिक कथाएं

वाराणसी विश्व का एकमात्र स्थल है, जहां दो-दो बार दीपावली मनाई जाती है. शास्त्रों के मुताबिक इस दिन तीनों लोकों पर राज करने वाले त्रिपुरासुर दैत्य का भगवान शिव ने वध किया था. इससे हर्षित देवताओं ने दीये जलाकर अपनी खुशी का इजहार किया था. माना जाता है कि इस दिन देवता स्वर्ग से उतर कर शिव की नगरी काशी में गंगा तट पर दीपावली मनाने आते हैं. इस दिन गंगा स्नान और दान का भी महत्व है. कार्तिक पूर्णिमा की सुबह गंगा स्नान के लिए वाराणसी तीर्थ यात्रियों से पूरी तरह पट जाता है. इस दिन गंगा के किनारे बने रविदास घाट से लेकर राजघाट के आखिरी छोर तक लाखों दिये जलाकर मां गंगा की पूजा की जाती है.

(फाइल फोटो: रॉयटर्स)
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क्या है बनारस की अर्थव्यवस्था पर असर?

महज 25 साल पुरानी देव दीपावली ने खुद को इतना विकसित कर लिया कि अब बनारस की पहचान बन गयी है. आज बनारस के पर्यटन में देव दीपावली का बहुत बड़ा योगदान है. बनारस में तकरीबन 600 होटल हैं, जिनमें 90 बड़े 5 और 7 स्टार होटल हैं. देव दीपावली के आसपास सभी होटल न सिर्फ खचाखच भरे रहते हैं, बल्कि प्रीमियम रेट पर बुकिंग होती है.

यह बनारस का इकलौता त्योहार है जिसमें एक साल पहले से होटल और नाव बुक हो जाते हैं. सामान्य दिनों में जिन बजड़ों का किराया 5 हजार रुपये होता है, इस दिन 2 लाख तक पहुंच जाता है. बनारसी साड़ी, रेस्टोरेंट, फूल माला, दीये बनाने वालों की चांदी रहती है.

देव दीपावली से जुड़ी सियासत

बनारस का चेहरा बन चुकी देव दीपावली को आज कारोबारियों से लेकर नेता और सरकारें तक भुनाना चाहते हैं. हालांकि प्रधानमंत्री बन ने के बाद गंगा आरती में आये नरेन्द्र मोदी, देव दीपावली में शामिल नहीं हो पाये थे लेकिन 2017 में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ इसमें शामिल होने वाले हैं. अयोध्या, चित्रकूट के बाद योगी सिर्फ इसी कार्यक्रम में शामिल होने के लिए काशी आ रहे हैं.

(फाइल फोटो: रॉयटर्स)

क्यों है विदेशियों की सबसे बड़ी पसंद

विदेशियों के लिए काशी की देव दीपावली किसी आश्चर्य से कम नहीं हैं. वे बनारस के घाट और इसकी सुन्दरता को एकटक निहारते हैं. घाटों पर जगह-जगह आयोजित होने वाले छोटे बड़े संगीत कार्यक्रम उन्हें अपनी ओर खींचते हैं. नाव की सैर और फोटोजेनिक घाट विदेशियों की पहली पसंद हैं. यही वजह है कि महीनों पहले बुकिंग करवा कर लाखों की तादाद में विदेशी सैलानी देव दीपावली पर बनारस को गुलजार करते हैं.

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