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अगर गंभीरता से कोशिश की जाए, तो इंदौर के पोहे और बुरहानपुर की मावा जलेबी की जगह उन पारंपरिक पकवानों की सूची में पक्की हो सकती है, जिन्हें भौगोलिक पहचान (जियोग्राफिकल इंडिकेटर/जीआई टैग) का तमगा हासिल है.
मध्यप्रदेश से निर्यात को बढ़ावा देने के उपायों पर केंद्रित भारतीय निर्यात-आयात बैंक (एक्जिम बैंक) की एक हालिया रिपोर्ट में कहा गया है कि प्रदेश सरकार को इंदौरी पोहे और बुरहानपुरी मावा जलेबी जैसे उत्पादों को जीआई टैग दिलाने की दिशा में प्रयास करने चाहिए.
रिपोर्ट के सामने आने के बाद राज्य की महिला एवं बाल विकास मंत्री अर्चना चिटनीस ने कहा,
चिटनीस बुरहानपुर की विधायक भी हैं. उन्होंने कहा कि मावे की जलेबी बुरहानपुर की मीठी विरासत है और इस पारम्परिक व्यंजन पर उनके क्षेत्र का दावा बेहद मजबूत है.
पोहा, इंदौर का सबसे पसंदीदा नाश्ता है. अपने पारंपरिक जायकों के लिये देश-दुनिया में मशहूर शहर में पोहे की हजारों दुकानें हैं. खासकर सुबह के वक्त इन दुकानों पर स्वाद के शौकीनों की भीड़ उमड़ी रहती है.
बहरहाल, इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी राइट से जुड़े कानूनों के जानकार प्रफुल्ल निकम का कहना है कि पोहे को जीआई टैग दिलाना मध्यप्रदेश के लिये टेढ़ी खीर साबित हो सकता है. उन्होंने कहा, "
बासमती चावल, रसगुल्ला और कड़कनाथ चिकन को जीआई टैग दिलाने के मामले में अलग-अलग राज्यों में रस्साकशी देखी गयी है.
अगर मध्यप्रदेश इंदौरी पोहे और बुरहानपुरी जलेबी को भौगोलिक पहचान का यह टैग दिलाना चाहता है, तो उसे दोनों व्यंजनों के बारे में ऐतिहासिक सबूत जुटाने होंगे और पूरी रिसर्च के जरिए प्रस्ताव तैयार करना होगा.
जीआई टैग के जरिए ग्राहकों को संबंधित उत्पादों की गुणवत्ता का भरोसा भी मिलता है. जीआई टैग के कारण अलग-अलग उत्पादों को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कारोबारी पहचान हासिल होती है, जिससे इनके निर्यात को बढ़ावा मिलता है.
उत्पादकों या निर्माताओं को इस खास चिन्ह से न केवल उत्पादों की ब्रांडिंग और मार्केटिंग में मदद मिलती है, बल्कि फर्जी लोगों के खिलाफ कानूनी संरक्षण भी मिलता है.
(इनपुट्स: भाषा)
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