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सावन का महीना आते ही त्योहारों का सिलसिला शुरू हो जाता है. सावन में ही हरतालिका तीज यानी हरियाली तीज भी मनाई जाती है. इस त्योहार को महिलाएं मनचाहा वर और सौभाग्य पाने के लिए मनाती हैं.
ये त्योहार हर साल सावन शुक्ल पक्ष की तृतीया के दिन मनाया जाता है. इसे हरियाली तीज नाम दिया गया है.
मान्यता है कि इस दिन माता पार्वती ने कठोर तपस्या से भगवान शिव को पति के रूप में पाया था. लड़किया और विवाहित महिलाएं इस दिन उपवास रखती हैं. इस दिन श्रृंगार करने के बाद पेड़, नदी और जल के देवता वरुण की पूजा की जाती है.
कहा जाता है कि इस दिन माता पार्वती सैकड़ों साल की साधना के बाद भगवान शिव से मिली थीं. यह भी कहा जाता है कि माता पार्वती ने भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए 107 बार जन्म लिया, फिर भी माता को पति के रूप में शिव मिल न सके.
माता पार्वती ने 108वीं बार जब जन्म लिया और हरिद्वार के मनसा देवी मंदिर में घोर तपस्या की. पुराणों की कथा के अनुसार, श्रावण मास की शुक्ल पक्ष की तृतीया को भगवान शिव देवी पार्वती की तपस्या से प्रसन्न हुए और उन्हें दर्शन दिए, साथ ही उन्हें अपनी पत्नी बनाने का वरदान दिया था.
इस उत्सव को हम मेंहदी रस्म भी कह सकते हैं. महिलाएं इस दिन अपने हाथों और पैरों में मेंहदी रचाती हैं. सुहागिन महिलाएं मेंहदी रचाने के बाद अपने कुल की बुजुर्ग महिलाओं से आशीर्वाद लेती हैं, ये परम्परा है. इस दिन झूला-झूलने का भी रिवाज है.
हरियाली तीज के दिन विवाहित महिलाएं अपने पति की लंबी आयु के लिए व्रत रखती हैं. इस दिन महिलाओं के मायके से श्रृंगार का सामान और मिठाइयां आदि उनके ससुराल भेजा जाता है. हरियाली तीज के दिन महिलाएं सुबह स्नान करने के बाद सोलह श्रृंगार करके निर्जला व्रत रखती हैं. इसके बाद पूरी रात जागरण करके मां पार्वती और भगवान शिव की पूजा-अर्चना करती हैं.
पूजा के अंत में तीज की कथा सुनी जाती है. इसके बाद ही महिलाएं अपना व्रत समाप्त करती हैं.
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