Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Lifestyle Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019इस्मत चुगताई: वो जिसने दुनिया को अपनी नजर से देखा 

इस्मत चुगताई: वो जिसने दुनिया को अपनी नजर से देखा 

इस्मत चुगताई की अपने दौर में महिलाओं और पुरुषों की आजादी को लेकर उनके संघर्ष की दास्तां.

अनंत प्रकाश
लाइफस्टाइल
Updated:
इस्मत चुगताई (फोटो: Twitter)
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इस्मत चुगताई (फोटो: Twitter)
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इस्मत चुगताई आखिर कौन थीं, जो अपने दौर के बच्चों की घुटन को कम करने के लिए सर्द से सर्द लफ्जों में समाज को धता बताती गईं.

“इश्क तुमसे हुआ तो मुतमईन हम हो गए, जब आंख खुली तो सारे जहां में तुम नजर आईं...”

इस्मत आपा को आपा कहकर बुलाने का हक मुझे नहीं है, लेकिन लफ्जों को पहचानना सीख रहा इक बच्चा आखिर इस्मत आपा को और क्या ही बुला सकता है. आपा कहने से खुद को उनके करीब पाता हूं. लेकिन आज मैं आपको अपने इस्मत के लिखे से अपने इश्क की गहराइयों में डुबाने के लिए नहीं लिख रहा हूं. आज मैं आपको वो किस्सा सुनाने के लिए हाजिर हुआ हूं, जिसने मुझे इस्मत आपा से रूबरू कराया.

(फोटो: TheQuint)

अभी कुछ महीने पहले की बात है. सर्दियों का महीना था. मैं मंटों पर कुछ लिख रहा था. मंटो को पहले ज्यादा नहीं पढ़ा था, लेकिन जब पढ़ना शुरू किया, तो बस मंटो बस दिमाग पर चढ़ते चले गए. इक नशा है मंटो की अफसाना निगारी में. मंटो को पढ़ते हुए मैं इस्मत आपा तक जा पहुंचा. जैसे मैं लिख रहा हूं कि इस्मत आपा तक जा पहुंचा.

शब्द ऐसे कि गर्म लोहे की रॉड छुआ दी गई हो, जिसके निशां ताउम्र आपकी देह पर बर्थ मार्क के मानें माकूल हो जाएं. अफसानों की तपिश ऐसी कि आपको अपनी दुनिया से उखाड़कर उनकी दुनिया में खींच ले जाए.

(फोटो: TheQuint)
आपा खुद कहती हैं कि मैं बहुत तेज लिखती हूं, बड़ी घबड़ाकर लिखती हूं. तेज लिखती हूं तो जुमले के जुमले खा जाती हूं. सोचती हूं कि लिख दिया है, लेकिन फिर पढ़ती हूं, तो पता चलता है कि कई जुमले खा गई हूं. फिर साइड में लिख देती हूं. 

अब मैं आपसे पूछता हूं कि क्या कभी आपने उबलती कढ़ी में उंगली डालकर देखी है, खौलते हुए मठ्ठे को छूते ही उंगलियों में जो तपिश सी उठती है न, वही तपिश आपा के शब्दों को पढ़ते हुए उठती. आपा का लिखा कुछ ऐसा भी है जो आपके मानसिक नर्वस सिस्टम को चुनौती देता है.

पढ़िए उनकी लिहाफ कहानी का एक अंश -

उन्होंने मेरी पसलियां गिनना शुरू कीं.

‘’ऊं!’’ मैं भुनभुनायी.
‘’ओइ! तो क्या मैं खा जाऊँगी? कैसा तंग स्वेटर बना है! गरम बनियान भी नहीं पहना तुमने!’’
मैं कुलबुलाने लगी.
‘’कितनी पसलियां होती हैं?’’ उन्होंने बात बदली.
‘’एक तरफ नौ और दूसरी तरफ दस.’’
मैंने स्कूल में याद की हुई हाइजिन की मदद ली. वह भी ऊटपटांग.
‘’हटाओ तो हाथ हां, एक दो तीन...’’
मेरा दिल चाहा किसी तरह भागूँ और उन्होंने जोर से भींचा.
‘’ऊं!’’ मैं मचल गई.
बेगम जान जोर-जोर से हंसने लगीं.

अब भी जब कभी मैं उनका उस वक्त का चेहरा याद करती हूं, तो दिल घबराने लगता है. उनकी आंखों के पपोटे और वजनी हो गए. ऊपर के होंठ पर सियाही घिरी हुई थी. बावजूद सर्दी के, पसीने की नन्हीं-नन्हीं बूंदें होंठों और नाक पर चमक रहीं थीं. उनके हाथ ठण्डे थे, मगर नरम-नरम जैसे उन पर की खाल उतर गई हो. उन्होंने शाल उतार दी थी और कारगे के महीन कुर्तो में उनका जिस्म आटे की लोई की तरह चमक रहा था. भारी जड़ाऊ सोने के बटन गरेबान के एक तरफ झूल रहे थे. शाम हो गई थी और कमरे में अंधेरा घुप हो रहा था. मुझे एक नामालूम डर से दहशत-सी होने लगी. बेगम जान की गहरी-गहरी आंखें!

मैं रोने लगी दिल में. वह मुझे एक मिट्टी के खिलौने की तरह भींच रही थीं. उनके गरम-गरम जिस्म से मेरा दिल बौलाने लगा. मगर उन पर तो जैसे कोई भूतना सवार था और मेरे दिमाग का यह हाल कि न चीखा जाए और न रो सकूं.

ये अल्फाज थे उनकी कहानी लिहाफ के लिए जिनके लिए उन पर लाहौर कोर्ट में मुकदमा भी चला. इस मुकदमे की भी इक दिलचस्प दास्तां है कि उनकी पूरी कहानी में से कोर्ट को जो सबसे अश्लील शब्द लगा, वो था लड़कियों का आशिक जमा करना. इस पर आपा के वकील ने कहा कि आशिक जमा करना किस तरह से अश्लील हो सकता है, तो कोर्ट में गवाह ने कहा कि रवायत यानी अच्छे घरों की लड़कियां आशिक जमा नहीं करतीं. तो वकील ने कहा कि आपा ने कहां अपनी कहानी में कहा है कि अच्छे घरों की लड़कियां आशिक जमा कर रही हैं. कोर्ट में जिरह चलती रही. कई लोग आपा को माफी मांगने के लिए मनाते रहे. लेकिन आपा टस से मस न हुईं. और तो और, इस अदालती जिरह से बेफिक्र आपा लाहौर की सैर कराने के लिए ब्रितानी बादशाह के लिए दुआ मांग रहीं थीं.

तो कुछ ऐसी थीं इस्मत आपा - बेखौफ. बेलौस. जिंदाजिल.

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Published: 15 Aug 2016,02:47 PM IST

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