Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Lifestyle Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019किशोरी आमोणकर, जिन्‍होंने संगीत की साधना के जरिए सत्‍य को खोजा

किशोरी आमोणकर, जिन्‍होंने संगीत की साधना के जरिए सत्‍य को खोजा

प्रख्‍यात शास्‍त्रीय संगीत गायिका किशोरी अमोनकर नहीं रहीं.

श्रुति सडोलीकर काटकर
लाइफस्टाइल
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श्रुति सडोलीकर काटकर के साथ किशोरी आमोणकर (फोटो: क्‍व‍िंट हिंदी)
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श्रुति सडोलीकर काटकर के साथ किशोरी आमोणकर (फोटो: क्‍व‍िंट हिंदी)
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पद्मविभूषण श्रीमती किशोरी आमोणकर का आकस्मिक निधन संगीत की दुनिया के लिए भारी क्षति की तरह है. किशोरी जी के संगीत के बारे में कौन नहीं जानता है. उनका संगीत सही मायने में उनकी आराधना है.

बचपन से उन्होंने घर में ही अपनी माता जी से जयपुर अतरौली घराने से संगीत की शिक्षा पाई. सौभाग्यवश उनकी माता जी ने आगरा घराने से भी तालीम ली थी. इसके बाद किशोरी जी को श्रीमती अंजनीबाई मालपेकर द्वारा भिण्डी बाजार घराने की गायकी के संस्कार मिले. उन्‍होंने जयपुर घराने की तालीम को कंठगत किया और आगरा घराने की गायकी के सौन्दर्यमूलक तथ्यों को समझकर अपनी गायकी में स्थान दिया.

किशोरी जी को शिक्षा से बहुत लगाव था. मेरी शिक्षा के बारे में जानकारी मिलने के बाद उन्होंने मुझे शाबाशी दी और कहा, ‘‘कलाकार को शिक्षित होना बहुत जरूरी है. अच्छा हुआ कि तुमने अपनी शिक्षा के पक्ष को मजबूत किया है.’’

वे फर्राटेदार अंग्रेजी बोलती थीं और मुझे भी कहतीं, ‘‘शान से रहो, लोगों के मन में आदर निर्माण करो.’’

ताई ने अनेक महफिलों में अपने नटखट स्वभाव का परिचय दिया था. गाते-गाते उन्होंने आविर्भाव-तिरोभाव का प्रयोग किया है और स्वर, लय पर अपना प्रभुत्व प्रमाणित किया है. प्रयोगशीलता उनकी गायकी का महत्वपूर्ण अंग था. पारम्परिक रचनाओं की प्रस्तुति करते समय भी वे अपनी नई खोज वाली प्रतिभा का परिचय देती थीं.

संगीत में चिंतन के परिणामस्वरूप जो तथ्य वह प्राप्त करती थीं, वह बिना झिझक के प्रस्तुत करती थीं. उन्होंने जिस सत्यता को पाया, वह सत्य लोगों के सामने रखा. उनकी साधना मूल स्वरों की साधना थी. नई पीढ़ी के लिए वह हमेशा कहती रहीं, ‘‘अपने आप को स्वरों को समर्पित करों, सुर कृपालु है.’’

1970 के प्रथमार्ध में एक कार्यक्रम की समाप्ति पर वह मुझसे मिलीं और मुझे गले लगाकर कहने लगी, ‘‘मुझे लग रहा था कि मेरे साथ जयपुर घराना समाप्त हो जायेगा. पर तुम इस वंश का चिराग हो, ऐसे ही अच्छा गाते रहना.’’ मेरे साथ उनका व्यवहार सौहार्दपूर्ण रहा.

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पिछले साल फरवरी में ‘गान सरस्वती महोत्सव’ में उन्होंने विशेष रूप से मुझसे हवेली संगीत पर कार्यक्रम कराया. ताई हमेशा किसी भी नई विधा को जानने के लिए उत्सुक रहती थीं. उसी तरह हवेली संगीत के बारे में जानने को उत्सुक थीं.

वो जीवन के आखिर समय तक गाती रहीं. संगीत से संबंधित सौंदर्यतथ्यों का आवाहन करती रहीं और पूरे आत्मविश्‍वास के साथ रूढ़ीवादी शास्त्रीय संगीत के कार्यक्रम में प्रयोगवादिता निभाती रहीं.

बुद्धिमत्ता, धारणाशक्‍त‍ि और आविष्‍कार इन तीनों गुणों का अनुपम संगम उनके व्यक्तित्व में हुआ था. दूसरी किशोरी जी फिर से निर्माण होना असंभव है.

(प्रो. श्रुति सडोलीकर काटकर हिंदुस्‍तानी क्‍लासिकल सिंगर और भातखंडे संगीत संस्‍थान सम विश्‍वविद्यालय, लखनऊ की कुलपति हैं. इस आलेख में प्रकाशित विचार उनके अपने हैं. आलेख के विचारों में क्‍व‍िंट की सहमति होना जरूरी नहीं है.)

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Published: 04 Apr 2017,07:39 PM IST

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