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(जमशेदजी टाटा की पुण्यतिथि पर इस आर्टिकल को दोबारा पब्लिश किया जा रहा है)
उन्नीसवीं सदी खत्म हो रही थी. एक भारतीय उद्योगपति मुंबई के सबसे महंगे होटल में पहुंचता है. लेकिन उसे सिर्फ इसलिए अंदर नहीं आने दिया जाता है कि वह काला है. होटल सिर्फ गोरों को अंदर आने की इजाजत देता था.
उसी वक्त उस उद्योगपति ने इससे भी भव्य और शानदार होटल बनाने की प्रतिज्ञा की. और महज सात साल के भीतर मुंबई में होटल ताज बन कर खड़ा हो गया. वो उद्योगपति था भारत में मॉर्डन इंडस्ट्री की नींव रखने वाला जमशेद जी नसरवान जी टाटा.
मुंबई में समुद्र के किनारे खड़ा यह होटल किसी अजूबे से कम नहीं था. आज इसकी भव्यता दुनिया के भव्यतम से होटलों से टक्कर लेती है. उस वक्त इस होटल को बनाने में चार करोड़ रुपये खर्च किए गए थे.
1898 में खुला यह होटल बांबे की पहली इमारत था, जिसमें बिजली थी. अमेरिकी पंखे लगे हुए थे, जर्मन स्वचालित सीढ़ियां थीं. तुर्की बाथरूम और अंग्रेज खानसामे थे. भारत जैसे देश में ऐसे होटल की किसी ने कल्पना भी नहीं की थी.
यह वह दौर था, जब 1857 का क्रांति कुचल दी गई थी और इसके साथ ही भारत का स्वाभिमान भी बुरी तरह धूल-धूसरित हो चुका था. कांग्रेस की स्थापना भी नहीं हुई थी और देश गरीबी और अकाल से जूझ रहा था.
महज 29 साल की उम्र में 21,000 रुपये से पहली ट्रेडिंग कंपनी खोली और फिर एक बाद एक उन्होंने कपड़ा, चाय, तांबा, पीतल और अफीम कारोबार (अफीम का कारोबार उन दिनों कानूनी था) का एक बड़ा साम्राज्य खड़ा कर दिया था. आज उनकी ओर से शुरू की गई कंपनियां दिग्गज टाटा समूह के तौर पर पहचानी जाती हैं.
टाटा समूह आज सॉल्ट से लेकर सॉफ्टवेयर तक बनाता है. और कुछ साल पहले तक यह कहा जाता था एक भारतीय पैदा होने से लेकर मरने तक न जाने टाटा के कितने प्रोडक्ट का इस्तेमाल करता है.
जब हम इतिहास के उस दौर के बारे में सोचते हैं तो लगता है कि किसी भारतीय के लिए उन दिनों कंपनी खड़ी करना कितना कठिन रहा होगा.
उनमें पढ़ने और बौद्धिकता हासिल करने की गजब की ललक थी लेकिन उन्हें एकेडेमिक्स की दुनिया छोड़ कर जल्द ही बिजनेस में उतरना पड़ा. अपने पिता के साये में उन्होंने कमोडिटी, मार्केट, ट्रेडिंग और बैंकिंग के गुर सीखे और महज 29 साल की उम्र में अपनी पहली कंपनी खोली. इसके बाद उन्होंने पीछे मुड़ कर नहीं देखा.
भारत का कपड़ा कारोबार का अतीत भले ही समृद्ध रहा हो लेकिन अंग्रेजों ने इसे खत्म कर दिया था. जमशेदजी ने ब्रिटेन यात्रा के दौरान उन्होंने वहां लंकाशायर कॉटन मिल का मुआयना किया और फिर भारत का उसका पुराना गौरव वापस दिलाने की ठानी.
1877 में उन्होंने देश की पहली कपड़ा मिल खोली. बांबे (मुंबई) के चिंचपोकली में उन्होंने एक दिवालिया हो चुकी ऑयल मिल का अधिग्रहण किया और इसी में एलेक्जेंड्रा मिल नाम से कपड़ा मिल खोली. अपनी स्वदेशी सोच के बूते उन्होंने इम्प्रेस टेक्सटाइल मिल खोली. यह मिल उसी दिन खुला जिस दिन क्वीन विक्टोरिया भारत की महारानी बनीं.
जमशेद जी दिग्गज उद्योगपति के साथ ही बड़े राष्ट्रवादी और परोपकारी थे. आज भले ही परोपकार या फिलेंथ्रॉपी की कारोबारी दुनिया में गूंज हो लेकिन जमशेद जी के बेटे दोराब टाटा ने 1907 में देश की पहली स्टील कंपनी टाटा स्टील एंड आयरन कंपनी, टिस्को खोली थी तो यह कर्मचारियों को पेंशन, आवास, चिकित्सा सुविधा और दूसरी कई सहूलियतें देने वाली शायद एक मात्र कंपनी थी.
जमशेदजी स्टील कंपनी के जन्म को देखने के लिए जिंदा नहीं थे लेकिन आधुनिक स्टील कंपनी और इससे लगे कॉस्पोलिटन कल्चर वाले आधुनिक शहर के निर्माण के लिए एक-एक चीज तय करके गए थे.
कल्याणकारी कामों और देश को एक बड़ी ताकत बनाने के विजन में वह अपने समकालीनों से काफी आगे थे. बेंगलुरू में इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस की स्थापना के लिए उन्होंने अपनी आधी से अधिक संपत्ति जिनमें 14 बिल्डिंगें और मुंबई की चार संपत्तियां थीं, दान दे दीं.
अगर जमशेद जी का विजन देखना हो तो एक बार झारखंड में जमशेदपुर जरूर देख आना चाहिए. टाटानगर के नाम से मशहूर इस शहर को जिस नियोजित तरीके से बसाया गया और कर्मचारियों के कल्याण और सुविधाओं का जो ख्याल रखा गया है, वह उस दौर में कल्पना से बाहर थीं.
स्टील कंपनी खोलना उनका सबसे बड़ा सपना था और उसके साथ लगा एक आधुनिक शहर बनाना भी. वह अपने कारोबार में बेहतरीन प्रतिभाओं को जोड़ने के बड़े समर्थक थे. एक बार उन्होंने कहा था- कोई देश या समाज, अपने कमजोर और असहाय लोगों की मदद से उतना आगे नहीं बढ़ता जितना वो अपने बेहतरीन और सर्वोच्च प्रतिभाओं के आगे बढ़ने से बढ़ता है. बाद में उनके जीवनकारी फ्रैंक हैरिस ने लिखा- अगर मिस्टर जमशेदजी यूरोप या अमेरिका में होते तो घर-घर में उनका नाम पहचाना जाता.
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