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दशानन रावण के पुतले को हर साल विजयादशमी पर जलाया जाता है. ये दिन बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक है. रावण के अहंकार और उसकी कुछ बुराइयां, उसके तमाम पांडित्य पर भारी पड़ीं. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, रावण प्रकांड पंडित था. उसे वेदों और संस्कृत पर महाराथ हासिल थी. उसने कई ग्रंथों और किताबों की रचना की. आयुर्वेद पर रावण की अच्छी पकड़ थी. बावजूद इसके, उसे श्रीराम के हाथों हार का सामना करना पड़ा. अंत में उसके अहंकार ने सब खत्म कर दिया. लेकिन क्या आप जानते हैं, जब रावण मृत्यु-शैय्या पर अपनी अंतिम सांसें गिन रहा था तो लक्ष्मण, रावण के पास गए थे.
कहा जाता है, श्रीराम ने खुद लक्ष्मण को निर्देश दिया कि वो रावण के पास जाएं और नीति और जीवन की कुछ बातें सीख कर आएं. पहले तो लक्ष्ण को ये सुनकर थोड़ा ताज्जुब हुआ लेकिन राम की आज्ञा का पालन तो उन्हें करना ही था. लक्ष्मण, मरते हुए रावण के पास पहुंचे. लेकिन कुछ ही समय के बाद वो वापस लौट आए. राम ने जब उनसे पूछा कि क्या रावण ने उन्हें कुछ ज्ञान की बातें बताईं तो उन्होंने न में सिर हिला दिया. फिर श्रीराम ने पूछा कि तुम कहां खड़े थे.
इस पर लक्ष्मण ने जवाब दिया- मैं रावण के सिरहाने खड़ा था.
इसके बाद लक्ष्मण एक बार फिर मृत्य-शैय्या पर लेटे रावण के पास पहुंचे. तब रावण ने लक्ष्मण को ये 3 मंत्र दिए--
शुभ कार्य को जितनी जल्दी कर सको कर लेना और अशुभ काम को जितना टाल सको टालना
माना जाता है कि रावण ने लक्ष्मण को कहा कि- मैं राम को पहचान न सका और उनके चरणों को छूनें में देरी की, इसलिए मेरी ये हालत हुई है
अपने प्रतिद्वंद्वी / शत्रु को कभी कमजोर या छोटा नहीं समझना चाहिए
रावण ने इस मंत्र के आगे कहा कि- मैंने राम को आम इंसान समझा और सोचा कि मैं इन्हे हरा दूंगा. ब्रह्माजी से मैंने अमर होने का वरदान मांगा, जिसमें वानर और मनुष्य के अतिरिक्त मेरा कोई वध नहीं कर सकता क्योंकि मैं वानर और मनुष्य को तुच्छ समझता था, जो मेरी सबसे बड़ी भूल थी.
अपने जीवन का कोई भी राज कभी किसी के सामने नहीं खोलो
रावण ने लक्ष्मण से कहा- अपना कोई भी रहस्य कभी किसी के सामने नहीं खोलना चाहिए, विभीषण मेरा रहस्य जानता था उसी से मेरी ये हालत हुई
ये वो तीन मंत्र थे, जो मरते हुए रावण ने लक्ष्मण को दिए. रावण के दिए मंत्रों को आप भी अपने जीवन में अपने विवेक के हिसाब से अपना सकते हैं.
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