advertisement
काला और नारंगी कोल्ड ड्रिंक्स पीने या न पीने को लेकर पहले ही घंटों की-बोर्ड खटखटाए जा चुके हैं. लेकिन सब बेकार! अब तो बच्चे-बच्चे आपको कहते मिल जाएंगे, 'डर के आगे जीत है' या 'आज कुछ तूफानी करते हैं'.
खैर, बच्चों ने तो जैसे-तैसे अपने डर को भगा दिया, पर बिहार जैसे कुछ राज्यों में बड़े अभी भी डर-डरकर जी (पी) रहे हैं. डरने से इनकार करने वाले कुछ गब्बरवादी विचारधार के लोग पकड़े भी जा रहे हैं. ऐसे गरम माहौल में व्यापक जनहित को ध्यान में रखकर हम कुछ कूल ड्रिंक्स सुझा रहे हैं, जो पक्का गर्मी का गर्दा छुड़ा देंगे.
जो लत के शिकार हैं, उन्हें हम नंबर वन वाला ऑप्शन चुनने की सलाह देंगे. हां, इसमें नशा मत खोजिएगा. अमित जी का गाना याद है, 'नशा शराब में होता तो, नाचती बोतल...'
इस ड्रिंक का रंग एकदम कोक-पेप्सी जैसा ही होता है. हालांकि यह स्वाद में बेहद कड़वा होता है, करीब-करीब 'सोमरस' जैसा. हालांकि शराबबंदी के कड़वे दौर के आगे इसकी कड़वाहट थोड़ी फीकी ही समझी जानी चाहिए. यह एक किस्म की झाड़ी है, जिसे पानी में डुबोकर रखा जाता है, फिर पानी का इस्तेमाल किया जाता है. आयुर्वेद में इसकी बड़ी महिमा गाई गई है.
सलाह: इसे पाने के लिए गरीब रथ पकड़ने की जरूरत नहीं है. यह अमेजन और फ्लिपकार्ट जैसी साइटों पर ऑनलाइन भी उपलब्ध है.
सॉफ्ट ड्रिंक के तौर पर सत्तू का शर्बत लंबे अरसे से इस प्रदेश की पहली पसंद रहा है. इसके प्रति लोगों की दीवानगी का आलम यह है कि लोग जब-जब 'हॉर्लिक्स' का विज्ञापन टीवी पर देखते, तब-तब एक गिलास सत्तू पानी में घोलकर पी जाते. जब चना और इससे बने सत्तू की खपत बेतहाशा बढ़ने लगी और इसकी कीमत आसमान छूने लगी, तब टीवी पर उस विज्ञापन की फ्रिक्वेंसी ही घटानी पड़ गई! चाहें तो आप इसे सच नहीं भी मान सकते हैं.
वैसे दिल से अमीर और धन से गरीब इस प्रदेश के लोग जहां-जहां जाते हैं, वहां सत्तू का गुण गाते नहीं थकते हैं. सत्तू दिमाग और पेट को तो ठंडा रखता ही है, यह प्रोटीन का भी खजाना है.
यह आम तौर पर 'आम पन्ना' नाम से जाना जाता है. अगर चुनाव के सीजन में सही तरीके से इसकी ब्रांडिंग की जाए, तो शायद ट्रंप भी व्हाइट हाउस में मेड इन पटना वाले अमझोरा की डिमांड करते नजर आएं. आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद इसके ब्रांड एम्बेसडर हो सकते हैं. वे कई बार अमझोरा बनाने की विधि लोगों को समझा चुके हैं, पर इसे अब तक न तो सरकारी संरक्षण मिला है, न अन्य ड्रिंक के बीच आरक्षण. क्या पता, शायद नीतीश जी को अपने पुराने दोस्त की तरह इसकी खटास न पसंद हो!
वैसे लू और बदहजमी से बचाव करने में इसका कोई जोड़ नहीं है.
पूजा-पाठ में बेलपत्र के इस्तेमाल पर लोगों का फोकस इतना ज्यादा होता है कि वे यह भी भूल जाते हैं कि इसके पेड़ में फल भी तो लगते होंगे. खैर, शर्बत बनने के बाद इसका रंग लगभग मिरिंडा जैसा होता है. माथा फोड़ने और खोपड़ी पकाने जैसी उग्र लोकोक्ति शायद इसी फल से बाहर आई होगी. हालांकि इसकी तासीर बेहद ठंडी होती है.
प्रदेश की ज्यादातर चीनी मिलें बंद पड़ी हैं. ऐसे में गन्ने का रस न केवल लोगों को इंस्टेंट एनर्जी दे सकता है, बल्कि गन्ना किसानों का हलक भी सूखने से बचा सकता है. केवल इतना ध्यान रखना होगा कि इसका इस्तेमाल केवल मिठास बढ़ाने में हो, सियासी तौर पर किसी को लठियाने में नहीं.
...तो ज्यादा टेंशन लेने की जरूरत नहीं है. ये बिहार ही तो है, जहां हर मर्ज का पक्का और शर्तिया इलाज होता है, ये गर्मी की गर्मी उतारना कौन-सा मुश्किल काम है?
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)