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खाना जिसके बिना हम जिंदगी की कल्पना भी नहीं कर सकते हैं. हमारी जिंदगी का अहम हिस्सा है खाना फिर भी हम रोजाना खान-पान में इतनी लापरवाही कर बैठते हैं कि इसका खामियाजा आखिर में शरीर को ही भुगतना पड़ता है. यही वजह है कि हमें डाइट और न्यूट्रिशन के लिए भी जागरुक होने की जरूरत पड़ी और इस तरह शुरुआत हुई ‘’World Food Day’’ की.
संयुक्त राष्ट्र के संगठन FOA ( Food and Agriculture Organization) की वर्षगांठ पर 16 अक्टूबर को हर साल World Food Day के तौर पर मनाया जाता है. इस साल 2020 में कोविड-19 महामारी ने कई देशों को अपनी चपेट में लिया है. ऐसे में खानपान और स्वास्थ के नजरिए से इस दिन का महत्व और भी अधिक बढ़ गया है.
कोरोना ने खानपान पर गहरा असर डाला है. लाॅकडाउन के कारण बजार बंद रहे, कृषी क्षेत्र ठप होने के साथ कीमतों ने आसमान छूना शुरू किया और इस तरह पहले से ही भूखमरी झेल रहा देश और ज्यादा प्रभावित हो गया. देश के कई हिस्सों और तबको में पोषण और खानपान पर गहरा असर पड़ा.
गाइडलाइन के तहत स्कूल बंद हैं. जिससे बच्चों को जो पौष्टिक खाना मिलता था वो भी बंद हो गया. जीडीपी, आर्थिक मंदी और फुड सेफ्टी का डेटा देखकर भविष्य के लिए अभी से तैयारी करना जरूरी हो गया है. जीएचआई ने सचेत किया है कि ऐसी स्थित के साथ भविष्य में कुपोषण का खतरा और भी बढ़ना तय है. कहने का मतलब यह है कि भारत की स्थति पहले से ही कुछ खास नहीं थी और महामारी की वजह से खानपान और पोषण रडार पर है.
थाइलैंड की सेराह का कहना है कि उन्हें अपने देश का खाना काफी पसंद है. वहां सब्जियां, हर्ब और कई तरह के मसाले खाने में शामिल किए जाते हैं. इन सभी खूबियों के कारण थाइलैंड में लोग खाने को दवाओं के रुप में भी लेते है.जो टेस्टी होने के साथ हेल्दी भी है. सेराह को ट्रैवल और फूड का काफी शौक है. अबतक वह कई देशों के लजीज पकवान चख चुकी है. उनका कहना है कि
बेशक यह कहना गलत नहीं होगा की भारत में जितनी वेरायटी खाने में मिलती ही शायद ही किसी और देश में मिलती हो. 29 स्टेट और 7 यूनियन टेरेटरी में आपको एक से बढ़कर एक लजीज पकवान का स्वाद मिलेगा. साथ ही एक ऐसा कल्चर जहां लोगों को खाने के साथ खिलाने का भी शौक है. लेकिन इन सब के बावजूद भी हम स्वास्थ मामलों में पीछे रह गए हैं.
25 सितंबर, 2015 को (FOA) ने 193 देशों के साथ 2030 तक जीरो हंगर यानि भुखमरी से निजात और सस्टेनेबल डेवलप्मेंट के लिए हाथ मिलाया था. क्योंकि यह एजेंडा वैश्विक तौर पर लिया गया है इसलिए इसके सामने कई अहम चुनौतियां हैं. सभी देशों में विकास अलग स्तर पर है, ऐसे में कदम से कदम मिलाकर चलना अपने आप में ही एक चैलेंज है. जीरो हंगर और सस्टेनेबल डेवलप्मेंट दो ऐसे पहलू हैं, जिन्हें एक साथ लेकर चलना है. आखिर भविष्य में बेहतरी के लिए बचाव भी जरूरी है.
महामारी ने कई जीवन के साथ समझौता किया है, अर्थव्यवस्था पर ऐसा प्रभाव भविष्य के लिए चैलेंजिंग है. यह भारत में फूड सेफ्टी के तहत अच्छा संकेत नहीं है. यह हम सभी के लिए एक इमरजेंसी थी, लेकिन एकजुट होकर हम बेहतरी की आशा रख सकते है.
शुरुआती दौर में TDPS (टारगेटेड पब्लिक डिस्ट्रीब्यूशन सिस्ट के तहत गरीबों में राशन बांटे गये. केंद्र सरकार ने 1.74 लाख करोड़ रुपये की प्रारंभिक घोषणा कर के भूखमरी की स्थिति को संभालने की कोशिश की, जिसका असर जमीनी स्तर पर भी देखने को मिला.
आगे भारत के COVID-19 चरण में फूड सेफ्टी का मसला कई तरह से देश के विकास को प्रभावित करेगा. इसलिए समय और रणनीतिक पहलों के साथ आज को मजबूत करना यह परिभाषित करना अभी बहुत जरूरी है.
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