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एक बार फिर से हम एक शहर के संस्कृतिकरण और हिंदूकरण की दिशा में एक कदम आगे बढ़ गए हैं. 16 अक्टूबर को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इलाहाबाद शहर का नाम बदलकर प्रयागराज करने का ऐलान कर दिया. सत्ता में आने के बाद से आदित्यनाथ लगातार शहरों के नाम बदलते जा रहे हैं. कुछ समय पहले जब वह इलाहाबाद आए थे, तभी उन्होंने इस शहर के नाम बदलने के संकेत दिए थे.
तीन नदियों (त्रिवेणी) के संगम के रूप में इलाहाबाद मशहूर रहा है. यहां पर गंगा, यमुना और पौराणिक सरस्वती नदी का संगम है. प्राचीन काल में इसे प्रयाग के नाम से जाता था. जिसे अकबर ने बदलकर इलाहाबाद कर दिया.
एक अनुमान यह है कि आदित्यनाथ सोच सकते हैं कि अगर शहरों का नाम बदलकर अपने प्राचीन नाम पर रखा गया है, तो वह एक विरासत छोड़ने में सक्षम होगा. जिसका रूढ़िवादी वोटरों पर असर पड़ेगा और वह लगातार चुनाव जीतने में मदद करेगा. लेकिन हमारे मुख्यमंत्री भूल गए हैं कि वह सत्ता में आने के बाद अपनी उस सीट को भी नहीं बचा पाए, जहां का प्रतिनिधित्व उन्होंने 19 सालों तक किया था.
अगर वह इंफ्रास्ट्रक्चर को बेहतर बनाने की दिशा में काम करेंगे तो निश्चित रूप से अपने वोट बैंक को बढ़ा सकते हैं. मुझे लगता है कि वह इस दिशा में काम भी कर रहे हैं, लेकिन इसमें तेजी लाने की जरूरत है. इलाहाबाद डेवलपमेंट अथॉरिटी (एडीए) जो करप्शन के लिए कुख्यात है, उसमें बदलाव की जरूरत है. बाकी अन्य बी टाउन शहरों की तरह इलाहाबाद में गरीबी, सड़क, सीवर, अंडरडेवलप इंफ्रास्ट्रक्चर, क्राइम जैसी कई समस्याएं हैं. इन परेशानियों को जल्द से जल्द दूर करने के लिए मुख्यमंत्री को पहल करनी चाहिए.
इलाहाबाद में छात्रों के लिए भी अवसरों की कमी है. तीन-चार सरकारी संस्थानों को छोड़ दें, तो यहां पर बाकी कोई संस्थान ऐसी नहीं है जो छात्रों को क्वालिटी एजुकेशन दे सके. मुझे खुद बेहतर एक्सपीरिएंस लेने के लिए इंटर्नशिप करने के लिए दिल्ली जाना पड़ रहा है.
मेरा मानना है कि शहर का नाम बदलना केवल हिंदुत्व को बढ़ावा देना है. यह आजादी के लिए लड़ाई के दौरान शहर और उसके लोगों द्वारा निभाई गई भूमिका को कम करता है और उस जगह के धार्मिक पहलू पर ध्यान केंद्रित करता है.
अब जब इस शहर का नाम बदला जा चुका है, क्या हम ये उम्मीद कर सकते हैं कि सभी टेक्स्टबुक, दस्तावेजों और माइलस्टोन से इलाहाबाद का नाम हटा दिया जाएगा. हाईकोर्ट के सभी फैसलों से इलाहाबाद का नाम हटाकर प्रयागराज कर दिया जाएगा? यह बेतुका ही लगता है.
मुख्यमंत्री के फैसले का सरकार के मंत्री जोर-शोर से समर्थन कर रहे हैं. उत्तर प्रदेश के ऊर्जा मंत्री श्रीकांत शर्मा ने कहा कि शहरों का नाम बदलने का अधिकार सरकार के पास है.
लेकिन क्या लोग बदलाव की इस प्रक्रिया को अपनी सहमति देते हैं? इसमें आश्चर्य नहीं है कि लोगों का मत केवल सरकार चुनने में मायने रखता है, बाकी फैसलों में उनकी सहमति-असहमति का कोई मतलब नहीं है. ऐसे में सरकार शहर का नाम बदलसर कुछ भी रखे, जनता क्या कर सकती है.
मैं न तो इलाहाबादी होते हुए गर्व महसूस करता हूं, न ही खुद को असली इलाहाबादी बताता हूं. जैसा कि इन दिनों इंस्टाग्राम पर #ट्रू इलाहाबादी (असली इलाहाबादी) के साथ दावा किया जा रहा है. मैं देश के सबसे अधिक आबादी वाले राज्य के इस टू-टीयर शहर का रहने वाला एक सामान्य नागरिक मात्र हूं. पिछले दो दशकों से मैं यहां रहता हूं, इस शहर को प्रयागराज के रूप में बुलाना आसान नहीं है. वहीं ये सोचना भी गलत है कि केवल नाम बदल देने से इतिहास बदल सकता है.
मेरे लिए प्रयागराज का मतलब सिर्फ एक ट्रेन मात्र से है, जिससे मैं इलाहाबाद से दिल्ली जाता हूं. यह ट्रेन पिछले कई दशकों से चल रही है और हर रात 21:30 बजे जंक्शन से खुलती है.
हाल ही में लखनऊ में हजरतगंज के नाम को बदलकर अटल चौक और मुगलसराय रेलवे स्टेशन का नाम बदलकर जनसंघ नेता दीन दयाल उपाध्याय के नाम पर रख दिया गया. यहां तक कि मुगलसराय से ताल्लुक रखने वाले पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री का भी नाम इस शहर के लिए उपयुक्त नहीं लगा. पता नहीं शहरों के नाम बदलने पर राजनीति कब तक चलती रहेगी.
(लेखक प्रतीक गुप्ता इलाहाबाद यूनिवर्सिटी के फाइनल ईयर लॉ स्टूडेंट हैं. और पत्रकार बनना चाहते हैं.Twitter: @prateekreports)
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