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अजीम प्रेमजी यूनिवर्सिटी में पढ़ाई कर रहे मेरे बेटे पर 14 जनवरी की रात को बेरहमी से हमला किया गया. उसे लूट लिया गया और उसकी बेरहमी से पिटाई की गई. यूनिवर्सिटी के यूजी 2 हॉस्टल के पास सर्जापुरा मेन रोड की ओर जाने वाले बीकानेहल्ली मेन रोड पर एक सुनसान इलाके में महज शाम के 6.35 बजे यह हमला हुआ.
21 साल का अभिलाष (बदला हुआ नाम) उस दिन दोस्तों के साथ डिनर करने का प्लान बनाया था. यूनिवर्सिटी शट्ल बस छूटने की वजह से उसने सोचा कि 2 किमी का रास्ता पैदल ही पार कर अपने दोस्तों के पास पहुंच जाए. शाम 6.35 बजे बेंगलुरू जैसे शहर के लिए ज्यादा देर भी नहीं थी और सरजापुरा पुलिस स्टेशन भी क्राइम डेस्टिनेशन से महज दो किलोमीटर ही दूर है. लेकिन उस लड़के के साथ ऐसा कुछ हुआ जिसका खौफ अब तक उसके चेहरे पर दिख रहा है.
इसके बाद उसका वन प्लस 6 स्मार्टफोन, मोटोरोला स्मार्टवॉच और वॉलेट उन लोगों ने छिन लिया. यहां तक कि जूते भी उतरवा लिए. अगर यह सामान्य लूटपाट की घटना होती तो यहीं पर लड़के को छोड़ दिया जाता, लेकिन ऐसा नहीं हुआ.
उन लोगों ने उसके हाथ-पांव बांध दिए और प्लास्टिक जलाकर उसकी बॉडी पर गिराने लगे. अभिलाष डर के मारे में गिड़गिड़ा रहा था, लेकिन वे लोग कुछ सुनने को तैयार नहीं थे. उनमें से एक ने बड़ा सा पत्थर उठाकर उसे जान से मारने की धमकी दी. इतने में ही डर के मारे अभिलाष बेहोश हो गया.
कोई भी पेरेंट्स कभी नहीं चाहेगा कि उसे इस तरह के फोन कॉल आए. शुरुआत में हमें काफी गुस्सा आया, लेकिन हमने चैन की सांस ली कि हमारा बेटा जिंदा है.
पुलिस ने घटना के आधे घंटे के भीतर ही मेरे बेटे को कैंपस तक जाकर छोड़ आई, लेकिन उन नशेड़ियों को पकड़ने के लिए कुछ नहीं की. यह हमारे देश की पुलिस है, जो तीन पैदल लुटेरे को पकड़ नहीं पाई. किसी और देश में ऐसा होता तो अपराधी तुरंत पुलिस की गिरफ्त में होते, लेकिन यह भारत है.
किसी के साथ भी ऐसा होने पर उसे सबसे ज्यादा सहानुभूति की जरूरत होती है. लेकिन हालात ये है कि न तो ये सहयोग पुलिस से मिल पाता है, न डॉक्टर से और न ही प्रशासन से. इस तरह की घटना होने के बाद अस्पताल में इलाज के लिए घंटों इंतजार करना पड़ता है क्योंकि पुलिस केस के नाम पर इलाज से पहले एफआईआर को तव्वजो दी जाती है.
हमें अगले दिन रिपोर्ट दर्ज कराने के लिए पुलिस स्टेशन में पांच घंटे का समय लग गया. वहीं अपराधी खुलेआम घूमते रहे. हमलोग पढ़े-लिखे संभ्रांत परिवार से ताल्लुक रखते हैं, तब हमें रिपोर्ट कराने में इतना समय लग गया, तो सोच सकते हैं अनपढ़-गरीब लोगों के साथ क्या होता होगा?
बेंगलुरु का तेजी से शहरीकरण, शासन और प्रशासन में जमा भ्रष्टाचार ने हमें ऐसी हालात में ला खड़ा किया है, जहां हमें अपने न्याय के लिए इस तरह की परेशानियों का सामना करन पड़ रहा है. कहने के लिए बेंगुलुरू में काफी कुछ बदल गया है. गगनचुंबी इमारतें हैं और हाईस्पीड इंटरनेट फैसलिटी और आईटी इंफ्रास्ट्रक्चर. लेकिन हाईवे से महज 100 मीटर की दूरी पर सरेशाम एक लड़के के साथ इतना कुछ हो जाता है और पुलिस कुछ नहीं कर पाती है.
तीन हफ्ते बीतने के बाद भी पुलिस ने किसी भी संदिग्ध को नहीं पकड़ा है. बेंगलुरु पुलिस के सूत्रों के मुताबिक, इस तरह के हमले और हमले बढ़ रहे हैं. स्थानीय समाचार पत्र और क्राइम रिपोर्टर इसकी पुष्टि करते हुए दिख जाएंगे.
अभिलाष एक मिलिट्रीमैन का बच्चा है, इस तरह के हालात का सामना के बावजूद वो आगे बढ़ने के लिए तैयार है. हम उम्मीद करेंगे कि हालात जल्द से जल्द सुधरे ताकि भविष्य में किसी और के साथ ऐसी अनहोनी न हो.
(पीड़ित की सुरक्षा का ध्यान रखते हुए उसका नाम बदल दिया गया है. इस मामले में एफआईआर दर्ज कर ली गई है. सभी माई रिपोर्ट सिटिजन जर्नलिस्टों द्वारा भेजी गई रिपोर्ट है. द क्विंट प्रकाशन से पहले सभी पक्षों के दावों / आरोपों की जांच करता है, लेकिन रिपोर्ट और इस लेख में व्यक्त किए गए विचार संबंधित सिटिजन जर्नलिस्ट के हैं, क्विंट न तो इसका समर्थन करता है, न ही इसके लिए जिम्मेदार है.)
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