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बिहार की राजनीति में कुछ दिनों से चली आ रही सरगर्मी अब सामान्य हो गई है. सरगर्मी के सामान्य होने के साथ ही बिहार में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की सीटों के फेर में उलझा गणित भी साफ हो गया. बिहार की 40 लोकसभा सीटों में से आगामी लोकसभा चुनाव में जेडीयू और बीजेपी 17-17 सीटों पर चुनाव लड़ेंगी, जबकि 6 सीटों पर रामविलास पासवान की पार्टी एलजेपी चुनावी ताल ठोकेगी. साथ ही रामविलास पासवान को राज्यसभा भी भेजा जाएगा.
दरअसल यही एक मुद्दा था जिसको लेकर बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह और पासवान में बात नहीं बन रही थी. जिसको लेकर चिराग पासवान बगावती सुर छेड़ने लगे थे. जैसे ही मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में बीजेपी खेत हुई, चिराग और भी आक्रमक हो गए और ट्वीट कर बीजेपी को 31 दिसंबर तक सीटों के बंटवारे की तस्वीर को साफ करने का अल्टिमेटम तक दे दिया. जिसके बाद से बीजेपी के संगठन में हलचल शुरू हो गई कि कहीं रामविलास पासवान एन वक्त पर पाला ना बदल ले. जिसके लिए वो प्रसिद्ध है. पासवान को राजनीति का मौसम वैज्ञानिक कहा जाता है. उनका राजनीतिक सफर ये बयां करता है कि वो किसी भी तरह घूमकर मजबूत पक्ष की पंगत में बैठ ही जाते हैं.
इस बार बीजेपी का वो तेवर नहीं दिखा जो शिवसेना और चंद्रबाबू के अलग होने के वक्त पर दिखाए थे और उन्हें रोकने की मजबूत कोशिश तक नहीं की थी. जाहिर है बीजेपी का अब मकसद साफ है कि वो किसी भी तरह अधिक से अधिक लोकसभा सीटें जितना चाहती है. हालांकि उपेंद्र कुशवाहा के बाहर निकलने से बीजेपी को सीट बंटवारे में मुश्किलें नहीं आई. क्योंकि जब अक्टूबर में बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने सीट बंटवारे को लेकर बिहार के सहयोगी दलों के साथ बैठक की थी. जिसमें ये बात सामने आई थी कि बीजेपी और जेडीयू 17- 17 सीटों पर चुनाव लड़ेंगे, रामविलास पासवान की पार्टी 4 सीटों पर जबकि कुशवाहा की पार्टी 2 सीटों पर चुनाव लड़ेगी. लेकिन उपेंद्र कुशवाहा सीट बढ़ाने की मांग को लेकर अलग हो गए. जिससे बीजेपी के लिए पासवान को 6 सीटें देना आसान हो गया.
बिहार की राजनीति में रामविलास पासवान की खासियत ये है कि वो एक ही वक्त पर दो पक्षों में भी बेहद संजीदगी से अपनी जगह बना लेते हैं. वीपी सिंह से लेकर नरेंद्र मोदी तक छह प्रधानमंत्रियों के सहयोगी मंत्री रहे हैं. यूपीए फर्स्ट में रासायनिक उर्वरक मंत्री रहे थे. लेकिन 2014 में वो बीजेपी में दोबारा शामिल हो गए. इससे पहले 2002 में वो गुजरात दंगों का हवाला देते हुए एनडीए से अलग हो गए थे.
एनडीए में पासवान का महत्व इस वजह से भी बढ़ जाता है. क्योंकि बिहार में पासवान जाती की कुल वोट प्रतिशत छह फीसदी है. लोकसभा की कुल 40 सीटों में से 15 सीटों पर पासवान जातियों का प्रभाव देखने को मिलता है. जिसे गेम चेंजर भी माना जाता है और इन वोटों पर पूरी तरह से रामविलास पासवान कुंडली मारकर हर चुनाव में बैठे रहते हैं. जो उन्हें पर बार सत्ता के नजदीक तक पहुंचा देता है. ये छह फीसदी वोट कंप्लीट हस्तांतरित माना जाता रहा है. जिसकी बदौलत पासवान का जलवा राष्ट्रीय राजनीति में बरकरार रहा है.
इस सीट बंटवारे के विवाद में रामविलास पासवान के पक्ष में एक बात ये भी गई कि उनके बेटे चिराग पासवान ने सीटों इस घमासान में खूब सुर्खियां बटोरी हैं. बहरहाल 2019 का परिणाम जो भी पर रामविलास पासवान ने अपने लिए राज्यसभा से संसद में जगह पक्की कर ली है. चिराग के बढ़ते कद से मुमकिन है कि अगली बार एनडीए सरकार में लौटे तो उन्हें मंत्री पद भी मिल जाए.
अगर सामान्य रूप से देखे तो इस बंटवारे में बीजेपी को नुकसान होता दिख रहा है. लेकिन बीजेपी का एजेंडा अब क्लियर है कि वो किसी भी तरह संसद में अपनी सीटें बरकरार रखना चाहती है. दूसरी तरफ रामविलास पासवान के लिए कभी भी विकल्प खुला है. इस बार देखना ये होगा कि क्या मौसम वैज्ञानिक के नाम से मशहूर रामविलास पासवान सही मौसम भांप पातें हैं की नहीं? और कौन सा मौसम उनके लिए मुफीद बैठता है.
(ये आर्टिकल हमें ने रोहित कुमार ओझा ने भेजा है, और इसे MY Report कैंपेन के तहत पब्लिश किया गया है. क्विंट का इससे सहमत होना जरूरी नहीं है)
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Published: 24 Dec 2018,02:40 PM IST