मेंबर्स के लिए
lock close icon
Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019My report  Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019बिहार में किसके चूल्हे पर पकेगी ‘सियासी खीर’

बिहार में किसके चूल्हे पर पकेगी ‘सियासी खीर’

कुशवाहा के खीर की रेसिपी बिहार के नेता विपक्ष तेजस्वी यादव को पसंद भी आ गई है

क्विंट हिंदी
My रिपोर्ट
Updated:
केंद्रीय मानव संसाधन विकास राज्य मंत्री और राष्ट्रीय लोक समता पार्टी के अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा
i
केंद्रीय मानव संसाधन विकास राज्य मंत्री और राष्ट्रीय लोक समता पार्टी के अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा
(फोटो: Twitter)

advertisement

केंद्रीय मानव संसाधन विकास राज्यमंत्री और राष्ट्रीय लोक समता पार्टी के अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा ने बिहार में राजनीतिक खीर बनाने की नई रेसिपी का खुलासा किया है. कुशवाहा के खीर की रेसिपी बिहार के नेता विपक्ष तेजस्वी यादव को पसंद भी आ गई है, जिसके बाद से बिहार की राजनीति में एक बार फिर से हलचल पैदा हो गई है.

उपेंद्र कुशवाहा के खीर बनाने वाले बयान के बाद उनके आरजेडी की अगुवाई में बन रहे महागठबंधन में जाने की अटकलें लगाई जा रही हैं. आरजेडी इससे पहले भी उन्हें गठबंधन में शामिल होने के लिए न्योता देती रही है.

दूध और चावल को मिलाने वाला कुशवाहा का बयान दरअसल बिहार की विशेष जाति यादवों को साधने की तरफ इशारा कर रहा है. जो परंपरागत रूप से आरजेडी के वोटर रहे हैं और आज भी उनका एक बड़ा तबका आरजेडी के साथ है, जो नीतीश कुमार के अलग होने के बाद और आक्रमक रूप से समर्थन कर रहा है.

जबकि कुशवाहा कोइरी जाती से आते हैं और वो अपने समाज के बड़े नेता भी माने जाते हैं. बिहार की पिछड़ी जातियों की आबादी में कोइरी जाती बेहद संगठित नजर आती हैं. वहीं, पिछड़ो में सबसे ज्यादा आबादी यादवों की है.

एक अनुमान के मुताबिक, अगर ये दोनों जातियां साथ आकर चुनाव में किसी गठबंधन का समर्थन करती हैं, तो वो गठबंधन जीत के बेहद करीब पहुंच सकता है. हालांकि जीत के लिए उसे और कई पिछड़ी जातियों के समर्थन की जरूरत है, जो कुशवाहा खीर में पंचमेवा का काम कर सके ताकि खीर स्वादिष्ट बने.

उपेन्द्र कुशवाहा की नीतीश कुमार से नाराजगी उस वक्त से शुरू हुई, जब नीतीश ने महागठबंधन को छोड़ एनडीए का हाथ थाम लिया था. लेकिन यह नाराजगी पिछले महीने चल रहे सीटों के बंटवारे की चर्चा के वक्त सामने आ गई. कुशवाहा एक तरह से खुद को मुख्यमंत्री के रूप में देखने लगे हैं, जिसके बाद उनकी पार्टी के सदस्य भी इस चिंगारी को हवा देने की कोशिश में जुटे हुए हैं.

अगर कुशवाहा एनडीए से अलग होते हैं, तो जाहिर है पिछड़ी जातियों की एक आबादी एनडीए से कट जाएगी, जिसका खामियाजा नीतीश कुमार को भी भुगतना पड़ सकता है, क्योंकि उपेंद्र कुशवाहा और नीतीश कुमार दोनों पिछड़ी जातियों के नेता हैं. दोनों ही अपनी मांगों को लेकर अति महत्वाकांक्षी हैं.

(फोटो: Twitter)
कुशवाहा बिहार की राजनीति में उस वक्त चमके, जब नीतीश कुमार 2005 में सत्ता में आये और कुशवाहा सदन में विपक्ष की कुर्सी पर जा बैठे और विपक्ष में रहते हुए उन्होंने अपनी जाति के वोटरों को साधने की प्रक्रिया शुरू की.

बिहार की राजनीति को समझने वाले बताते हैं कि बिहार में कोइरी जाति 2-3 फीसदी और कुर्मी जाती 5-6 फीसदी है. ये दोनों जातियां तब तक जेडीयू की वोटबैंक थीं, पर जैसे ही कुशवाहा ने नेशनलिस्ट कांग्रेस का हाथ थामा, नीतीश के धुर विरोधी हुए उनकी जाति का वोटर नीतीश से छिटकने लगा.

ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT

हालांकि 2010 में कुशवाहा जेडीयू में फिर से शामिल हुए और सार्वजनिक तौर पर पिछड़ों के समर्थन की घोषणा की और उसी साल नीतीश कुमार ने उन्हें राज्यसभा भेज दिया. राज्यसभा पहुंचने के बाद कुशवाहा ने जेडीयू के अंदर अपनी ताकत दिखानी शुरू की, जिसके कारण 2010 के विधानसभा चुनाव में उन्हें कोई बड़ी जिम्मेदारी सौंपी नहीं गई. अपनी पार्टी के खिलाफ प्रचार करने का आरोप भी लगे. उसके बाद से उपेंद्र कुशवाहा उबलते पानी के बुलबुले की तरह बनते फूटते रहे और आखिरकार 2013 में जेडीयू के साथ छोड़ अपनी नई पार्टी आरएलएसपी बन ली.

(फोटो: Twitter)

2014 के लोकसभा चुनाव में जेडीयू ने बीजेपी का साथ छोड़ दिया, तब आरएलएसपी ने बीजेपी की इस कमी को पूरा किया और अपने तीनो सीटों पर जीत दर्ज की. वहीं जेडीयू दो सीट ही जीत पाई.

उपेंद्र कुशवाहा को अब लगने लगा है कि नीतीश के प्रतिबिम्ब ने उनके कद को छोटा कर दिया है, जिसकी वजह से अब वो नये समीकरण की तलाश में जगह तलाश रहे हैं. हालांकि राजनीतिक पंडितों का मनना है कि चुनावी दौर में ऐसा अक्सर होता है. जब तक कोई पूर्ण रूप से स्वीकार नहीं करे, तब तक भरोसा नहीं किया जा सकता है.

कुशवाहा की खीर की रेसिपी किसके मुंह लगती है, ये तो वक्त तय करेगा, पर लजीज कितनी होगी ये तो उन्हें ही तय है, क्योंकि खीर में चीनी की भी जरूरत पड़ती है, जिस पर बीजेपी कुंडली मारे बैठी है.

(ये आर्टिकल रोहित कुमार ओझा ने लिखा है. इस आर्टिकल में लिखे विचार उनके हैं. क्विंट का उनके विचार से सहमत होना जरूरी नहीं है)

यह भी पढ़ें: कुशवाहा की ‘खीर’ से बिहार में नई सियासी ‘खिचड़ी’

(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)

अनलॉक करने के लिए मेंबर बनें
  • साइट पर सभी पेड कंटेंट का एक्सेस
  • क्विंट पर बिना ऐड के सबकुछ पढ़ें
  • स्पेशल प्रोजेक्ट का सबसे पहला प्रीव्यू
आगे बढ़ें

Published: 30 Aug 2018,08:33 PM IST

Read More
ADVERTISEMENT
SCROLL FOR NEXT