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''रोके तैनू केहदा है, आधा अंबर तेरा है.''
(तुम्हें कौन रोकेगा, आधा आकाश तुम्हारा है)
पिछले कुछ दिनों से 'गेड़ी रूट'-पंजाब यूनिवर्सिटी के गर्ल्स हॉस्टल के पास की सड़क का नजारा बिल्कुल बदला-बदला सा दिख रहा है. इस रोड पर आमतौर पर लक्जरी गाड़ियों में तेज आवाज में पंजाबी गाने बजाते हुए लड़के दिखते थे. लेकिन इन दिनों रात के समय सैकड़ों की तादाद में यूनिवर्सिटी की छात्राएं आजादी और पुरुष प्रधान समाज के अंत करने वाले नारे लगा रही है.
राजनीति में महिलाओं के प्रतिनिधित्व के जरिए पुरुष प्रधान समाज को तोड़ने के मामले में, पंजाब यूनिवर्सिटी (पीयू) में इस साल कई बार इतिहास लिखा गया है. हाल ही में, पंजाब यूनिवर्सिटी के इतिहास में पहली बार कोई लड़की पंजाब यूनिवर्सिटी कैंपस स्टूडेंट काउंसिल (पीयूसीएससी) यानी छात्र संघ की अध्यक्ष बनी. उनकी जीत ने देश को और विशेष रूप से यूनिवर्सिटी प्रशासन को एक कड़ा संदेश देने का काम किया.
पंजाब यूनिवर्सिटी की छात्राएं गर्ल्स हॉस्टल के कड़े नियमों और बंदिशों का विरोध कर रही हैं और इसके खिलाफ आंदोलन पर उतरने को मजबूर हुई. यूनिवर्सिटी में एक ही तरह के हॉस्टल हैंडबुक होने के बावजूद लड़कों पर कोई रोक-टोक नहीं है, लेकिन लड़कियों के लिए कई तरह की पाबंदियां है. रात 11:30 बजे के बाद हॉस्टल में आने पर और रात 9 बजे अटेंडेंस लगाने से भूल जाने पर यूनिवर्सिटी डीन ऑफिस छात्राओं से जुर्माना वसूलता है. लेकिन हॉस्टल में रहने वालों लड़कों के साथ ऐसा बिल्कुल भी नहीं होता.
यह बिल्कुल गलत है कि गर्ल्स हॉस्टलों में ऐसे कड़े नियम हैं, वहीं ब्यॉज हॉस्टल के गेट 24x7 खुले रहते हैं. छात्र-छात्राओं के बीच का ये भेदभाव पूरी तरह से हमारे पुरुष प्रधान समाज और उनकी दकियानूसी सोच को दिखाता है.
आंदोलन के पहले हफ्ते में यूनिवर्सिटी अधिकारियों ने इसे हरसंभव नजरअंदाज करने की कोशिश की. उन्हें इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ा की हॉस्टल की लड़कियां रात में कैंपस से बाहर सोई हुई है.
सोशल मीडिया पर भी काफी लोग लड़कियों के इस आंदोलन का विरोध कर रहे हैं और हॉस्टल की पाबंदियों को सही ठहरा रहे हैं. कुछ लोग महिला सुरक्षा के नाम पर हॉस्टल की बंदिशों को सही ठहरा रहे हैं, तो कुछ को लगता है कि पूरी तरह से आजादी मिलने पर लड़कियां इसका दुरुपयोग करेंगी.
भगवा सपोर्टर हमारे आंदोलन को रोकने का काम कर रहे हैं, और चिल्ला रहे हैं कि 'भारतीय संस्कृति का क्या होगा?' लेकिन हमारे आंदोलन का विरोध करने वाले लोगों को ये बात समझ में क्यों नहीं आती कि हॉस्टल में समय की पाबंदी हटा लेने का यह बिल्कुल भी मतलब नहीं है कि लड़किया पूरी रात हॉस्टल से बाहर ही रहेंगी. हम केवल अपने हक के लिए लड़ाई लड़ रहे हैं.
हमारे आंदोलन का विरोध करने वाले काफी लोगों का तर्क है कि लड़कियों के पेरेंट्स इस बात के लिए बिल्कुल भी नहीं राजी होंगे. लेकिन मेरा मानना है कि यूनिवर्सिटी को हमारे पेरेंट्स को इस बात का भरोसा दिलाना चाहिए कि कैंपस उनकी बेटियों के लिए पूरी तरह सेफ है. हमारे देश के पेरेंट्स अपनी बेटियों को आईआईएसईआर, आईआईटी और आईआईएम जैसे संस्थानों में खुशी-खुशी भेजते हैं, जहां 24X7 गर्ल्स हॉस्टल खुले रहते हैं. वहीं कुछ यूनिवर्सिटी महज महिला सुरक्षा के नाम पर गर्ल्स हॉस्टल में लड़कियों के लिए कई तरह की बंदिशें लगाने का काम कर रही है.
हमारे पुरुष प्रधान समाज को बदलने की जरूरत है. जब लड़का-लड़की एक समान की बात की जाती है तो फिर लड़कियों के लिए आज तक पाबंदी क्यों? इन पाबंदियों को खत्म कर समाज को एक पॉजिटिव मैसेज दिया जा सकता है. पीयू प्रशासन की ओर से छात्राओं पर बंदिश ठीक नहीं है. गर्ल्स हॉस्टल में एंट्री को लेकर तय नियमों को बदला जाए. छात्राओं को 24 घंटे हॉस्टल में एंट्री की अनुमति दी जानी चाहिए.
जैसा कि कहा जाता है कि जब आजादी नहीं दी जाती है तो उसे हासिल किया जाता है. हमें पूरा भरोसा है कि पंजाब यूनिवर्सिटी की छात्राएं अपनी आजादी हासिल करके ही दम लेगी.
(लेखिका कनुप्रिया पंजाब यूनिवर्सिटी, चंडीगढ़ की स्टूडेंट यूनियन की पहली महिला प्रेसिडेंट हैं. वह लेफ्ट पार्टी की स्टूडेंट विंग स्टूडेंट्स फॉर सोसाइटी पार्टी (एसएफएस) की पार्टी पर हाल ही में चुनाव जीती हैं. एफएसएस ने भी पहली बार इस यूनिवर्सिटी में जीत दर्ज की है. )
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