advertisement
दिल्ली के गाजीपुर में मुझे मिले अधिकांश ज्यादा काम करने वाले और कम वेतन पाने वाले श्मशान कर्मचारियों के लिए ये अब एक दैनिक दिनचर्या है. अप्रैल से चौबीसों घंटे लगातार काम करते हुए, इन कर्मचारियो को लगता है कि सरकार उनपर ध्यान नहीं देती है.
कोविड-19 मौतों और सामूहिक दाह संस्कार में बढ़ोतरी के साथ, मैंने गाजीपुर के श्मशान घाट का दौरा करने और इन फ्रंटलाइन वर्कर्स की दुर्दशा को सामने लाने का फैसला किया.
इस श्मशान घाट में करीब 22 मजदूर काम कर रहे हैं और उनके पास कोई अतिरिक्त मदद नहीं है और न ही वे शिफ्ट में काम करते हैं. वे वहां छोड़े गए लावारिस शवों के दाह संस्कार का भी ज़िम्मा संभालते हैं. उनके पास सोचने का भी समय नहीं है, वे सेवा कर रहे हैं.
मैं जब तक वहां खड़ा था, कोविड शवों से भरी एम्बुलेंस आती रही और कर्मचारी दाह-संस्कार के काम में लगे रहे लेकिन बीच में एक कर्मचारी ने कुछ मिनटों का समय निकाला और नागरिकों से अनुरोध किया कि जब वे अपने घरों से बाहर निकलें तो हमेशा डबल मास्क पहनें और सैनिटाइज करते रहें.
(सभी 'माई रिपोर्ट' ब्रांडेड स्टोरिज सिटिजन रिपोर्टर द्वारा की जाती है जिसे क्विंट प्रस्तुत करता है. हालांकि, क्विंट प्रकाशन से पहले सभी पक्षों के दावों / आरोपों की जांच करता है. रिपोर्ट और ऊपर व्यक्त विचार सिटिजन रिपोर्टर के निजी विचार हैं. इसमें क्विंट की सहमति होना जरूरी नहीं है.)
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)
Published: undefined