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कोलकाता के रहने वाले 22 साल के शिबोजीत डे उन लाखों लोगों में से एक हैं, जिनकी जिंदगी कोरोना ने प्रभावित की. कोरोना के बाद देशव्यापी लॉकडाउन ने शिबोजीत को पढ़ाई छोड़कर काम करने पर मजबूर कर दिया. शिबोजीत की आर्थिक स्थिति ज्यादा बेहतर न होने के कारण वो पढ़ाई के साथ अपना खर्च निकालने के लिए पहले भी काम करते थे मगर अब पढ़ाई छोड़ उन्हें काम करना पड़ रहा है.
कोरोना के समय देश ने बेरोजगारी की मार झेली. जो लोग नौकरी कर रहे थे उन्हें भी नौकरी से निकाला जा रहा था. शिबोजीत के पिता भी उन लाखों लोगों में से एक थे जिन्हें नौकरी से हाथ धोना पड़ा. इस घटना के बाद शिबोजीत को मजबूरन पढ़ाई छोड़नी पड़ी.
शिबोजीत को ऐसे माहौल में रोजगार भी नहीं मिल रहा था, मगर पारिवारिक हालात देखते हुए शिबोजीत ने मजबूरन पत्थर तोड़ने का काम करना शुरू किया. मगर इस काम में कमाई न के बराबर थी. फिर शिबोजीत ने मिनरल पानी घर-घर पहुंचाने का काम शुरू किया मगर आर्थिक हालात में इस काम से भी कुछ खास सुधार नहीं हुआ.
शिबोजीत बताते हैं कि एडमिशन फीस नहीं जुटा पाया जिसके कारण मेरे सपने अधूरे रह गए, शिबोजीत चाहते थे कि वो काम के साथ पढ़ाई जारी रख पाते, मगर ऐसा हो न सका.
इस महामारी के दौरान ही शिबोजीत कि बहन की शादी तय हो गई और शिबोजीत को शादी के सिलसिले में अपने दोस्त से उधार लेना पड़ा. अब शिबोजीत के ऊपर आर्थिक तंगी के साथ-साथ उधार का बोझ भी आ गया और इसने शिबोजीत की हालत और बदतर कर दी.
शिबोजीत अब समय के साथ अपने काम को पटरी पर ले आए हैं और अपनी मेहनत के दम से कर्ज को भी धीरे-धीरे चुका रहे हैं मगर अभी भी उनका मन पढ़ाई में लगा हुआ है. वो अपनी पढ़ाई को छोड़ना नहीं चाहते हैं.
शिबोजीत बताते हैं कि
शिबोजीत के ये शब्द सिर्फ शिबोजीत के नहीं हैं बल्कि शिबोजीत जैसे हजारों लाखों युवाओं के हैं जिनके सपने समय की राख के साथ जमीन में कहीं नीचे दब गए. जो अभी भी अपनी जमीन तलाश रहे हैं.
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