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पिछले महीने 10 अक्टूबर को चंडीगढ़ में मेरे साथ एक ऐसी घटना हुई, जिसने मुझे हिलाकर रख दिया. सेक्सुअल हैरासमेंट, या छेड़खानी जैसी ये घटना तो नहीं थी, लेकिन इस घटना ने हमारे समाज में मौजूद लोगों की सोच का आईना दिखाने का जरूर काम किया है.
चंडीगढ़ के एलांते मॉल के पीवीआर में मैं अपने पिता के साथ अंधाधुंध फिल्म की 3:10 का शो देख रख रहा था. इंटरवल से करीब 20 मिनट पहले मेरे सामने की लाइन में किसी ने अपना मोबाइल फोन निकाला, जिसकी रोशनी बिल्कुल मेरी आंखों पर पड़ रही थी. इंटरवल होने तक और हॉल में लाइट आने तक वह इंसान मोबाइल पर इमेल लिखने में व्यस्त रहा, मुझे लगातार परेशानी हो रही थी, क्योंकि मोबाइल की रोशनी मेरी आंखों को लगातार चुभ रही थी और मैं सही से फिल्म नहीं देख पा रहा था.
इंटरवल के दौरान जब मैं उस सीट पर गया तो देखा कि एक युवा महिला अपने फोन के साथ व्यस्त थी. मैंने उनसे पूछा कि हॉल में मूवी देखने के दौरान बेसिक नियमों का पालन क्यों नहीं कर रही. सिनेमा शुरू होने से पहले ही मोबाइल स्वीच ऑफ करने का बकायदा इंस्ट्रक्शन भी दिया जाता है. मेरे सवाल करने पर वह गुस्से में बोली कि उसे एक जरूरी मेल करना था. मैंने उससे कहा कि अगर जरूरी मेल था तो आप बाहर जाकर भी भेज सकती थी. इसका कोई जवाब उसके पास नहीं था.
इतने में उसके साथ बैठा हट्टा कट्ठा पुरुष साथी ने गुस्से में मेरे से कहा कि तुम इस तरह का व्यवहार क्यों कर रहे हो. तुम महिला के साथ विनम्रता के साथ क्यों नहीं पेश आए. मैंने सिर्फ इतना कहा कि जो लोग रूल फॉलो नहीं करते, उन्हें विनम्रता की उम्मीद नहीं करनी चाहिए. मैं अपना आपा खोता, इससे पहले ही मैं वहां से अपनी सीट पर आकर बैठ गया.
कुछ मिनट बाद वह हट्टा-कट्टा इंसान मेरी सीट पर आया और जबरदस्ती मुझे सीट से उठाकर बाहर जाने को कहने लगा. मैं अपनी सीट पर डटा रहा और मैंने कहा कि मैं फिल्म देखने आया हूं, बेवजह के झगड़े-फसाद में फंसने के लिए मेरे पास समय नहीं है. वह आदमी मेरे साथ जबरदस्ती करने से बाज नहीं आ रहा था. उसने मेरी शर्ट की जेब में हाथ डालकर मेरा आईडी ढूंढ़ने लगा और उसने कहा कि मैं जानना चाहता हूं कि तुम कौन हो.
अचानक से उसने जोर से चिल्लाना शुरू कर दिया और बोला कि मैं तुम्हारी आंखें निकाल लूंगा. मेरे पिता ने उससे कहा कि यहां से चले जाओ, लेकिन उसने हमारी एक बात नहीं सुनी और हम लोगों के साथ बदतमीजी करता रहा. इतने में ही अचानक से वह महिला भी मेरी सीट के पास आ गई और उसने भी चिल्लाना शुरू कर दिया, "तुमने एक महिला के साथ ऐसा बिहेव करने की हिम्मत कैसी की.''
उस हट्टे-कट्टे इंसान के शोर-शराबे की वजह से थियेटर में मौजूद लोगों को भी परेशानी होने लगी. ऐसे में थियेटर स्टाफ ने आकर उसे बाहर निकाला. लेकिन इस दौरान वह स्टाफ पर चिल्लाने लगा और बोला- ''तू जानता नहीं है, मैं कौन हूं! तेरी नौकरी खा जाऊंगा मैं!''
उन दोनों के बाहर जाने के बाद मैंने और थियेटर के बाकी दर्शकों से चैन की सांस ली. साथ ही सोचा कि अब इंटरवल के बाद की बची हुई मूवी आराम से देख सकेंगे. अभी इंटरवल के बाद फिल्म दोबारा शुरू हुए 20 मिनट ही हुए थे कि अचानक से एक पुलिसवाला मेरे पास आया और बोला, मेरे साथ चलना होगा, आपके खिलाफ एफआईआर दर्ज हुई है. एफआईआर के नाम पर अचानक मेरी हंसी छूट गई, मुझे लगा कि यह किसी तरह का मजाक है.
इस घटना के महज 15 मिनट बाद ही एक तीसरा सीनियर पुलिस ऑफिसर आया और उसने मेरे पिता के बारे में जानना चाहा. फिर पिताजी ने बताया कि वह हरियाणा के पूर्व गृह सचिव हैं. पुलिसवाले ने बड़ी विनम्रता से कहा कि फिल्म खत्म होने के बाद हम उनसे मिल सकते हैं. इसमें कोई परेशानी नहीं है.
फिल्म खत्म होने के बाद जब मैं बाहर निकला तो वह पुलिसवाला मेरा इंतजार कर रहा था. उसके सपोर्ट वाले रवैया को देखकर मैं अचंभित था. पुलिसवाले वहां थियेटर में मौजूद प्रत्यक्षदर्शियों से पूछ रहे थे कि क्या सही में यौन उत्पीड़न (सेक्सुअल हैरासमेंट) जैसी कोई घटना हॉल में हुई भी थी.
वहां मौजूद लोगों ने उस घटना की सही-सही जानकारी दी. इसके बाद पुलिसवाले ने सम्मान के साथ कहा कि ऐसा कुछ नहीं हुआ है, फिर उन्होंने मुझे और मेरे पिता को पीवीआर ऑफिस में आराम से मिलने को बोला. जब मैं वहां गया तो उन्होंने हाथ से लिखा एक लेटर दिखाया. ईशा कंबोज नाम की महिला जो हरियाणा सिविल सर्विस ऑफिसर थी.
उसने लेटर में आरोप लगाया था कि मैंने उसके साथ गलत व्यवहार किया. और उसे मानसिक रूप से परेशान किया. साथ ही उसने ये भी आरोप लगाया था कि मुझे महिलाओं से बात करने का सलीका नहीं है. वह इस मामले को कोर्ट में ले जाना चाहती थी. मैं ये सब देखकर आश्यचर्यचकित था. मेरी समझ में नहीं आ रहा था कि इतनी छोटी सी बात को कोई इतनी बड़ी बात कैसे बना सकता है.
मैंने उस पुलिसवाले से पूछा कि पिछले दो घंटे में आपका जो कीमती समय इस फालतू के काम में बर्बाद हुआ, उसे कैसे देखते हैं. इस पर उसने कहा कि सरकारी अधिकारी की शिकायत पर कार्रवाई करने के अलावा हमारे पास कोई और ऑप्शन ही नहीं था. पुलिसवाले ने कहा कि उन्होंने महिला अधिकारी को उसके साथी को बहुत समझाने की कोशिश की थी, लेकिन वह नहीं माने और शिकायत दर्ज कराकर ही माने. पुलिसवाले ने मुझे भरोसा दिलाया कि यह मामला कोर्ट में नहीं जाएगा, लेकिन मैंने उससे कहा कि मैं चाहता हूं कि मामला कोर्ट तक पहुंचे और लोगों को वास्तविकता का पता चले.
मुझे ये सोचकर अजीब लग रहा है कि आज के समय में सिविल सर्विस में आने वाले युवा अधिकारियों को किस तरह का घमंड हो गया है. थियेटर में जाकर वे नियमों को तोड़ते हैं, जब उन्हें उनकी गलतियों के बारे में बताया गया तो गुस्से में आ गए. बदतमीजी की और धमकियां देने लगे. इतना ही नहीं थियेटर के स्टाफ को नौकरी से हटवाने की धमकी दी. और पुलिसवालों के बेशकीमती समय और एनर्जी को बेवजह के कामों में उलझा कर बर्बाद किया. और अब कोर्ट का समय भी इस फालतू के काम में बर्बाद करना चाहते हैं. अपने ईगो के लिए इस तरह की हरकते कहीं से भी वाजिब नहीं है. क्या इसी तरह की उन्हें ट्रेनिंग दी जाती है.
सरकारी मशीनरी का गलत इस्तेमाल करने के साथ-साथ वह अधिकारी महिला कार्ड खेलने से भी नहीं चूकी. उसे बहुत अच्छे तरीके से पता था कि वह गलत है और वह जो कर रही है वह भी गलत है, बावजूद इसके उसने गलत आरोप लगाकर मुझे फंसाने की कोशिश की. क्या इस तरह के लोग हमारे मिलेनियल्स का सिविल सर्विस में प्रतिनिधित्व कर रहे हैं. सिविल सर्विस के अधिकारियों का पब्लिक प्लेस पर इस तरह के बिहेवियर को कही से भी सही नहीं ठहराया जा सकता है.
मेरे पिता ने राज्य के चीफ सेक्रेटरी को इस घटना के बारे में लेटर लिखा, लेकिन अब तक उसका कोई जवाब नहीं मिला. मुख्यमंत्री कार्यालय में काम करने वाले एक सीनियर सरकारी अधिकारी को मैंने भी इस घटना के बारे में बताया, लेकिन अब तक वे भी मौन हैं.
मैं इस घटना को यूं ही नजरअंदाज नहीं कर सकता कि ये छोटी सी बात है. क्योंकि हम जैसे लोग समाज को बेहतर बनाने की कोशिशों में जुटे रहते हैं और वे सरकारी अधिकारी जिनके कंधों पर चीजों को बेहतर बनाने की जिम्मेदारी है वे अपने अहंकार की वजह से समाज में गलत संदेश देने का काम कर रहे हैं.
(जयदीप वर्मा एक लेखक, स्क्रीनराइटर और फिल्ममेकर हैं. ''लिविंग होम-द लाइफ एंड म्यूजिक ऑफ इंडियन ओसियन'' और ''हुल्ला'' के लिए उन्होंने काम किया है.)
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