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मैं असम की एक शोध छात्रा हूं और मुझे अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालय के तहत दी जाने वाली मौलाना आजाद राष्ट्रीय फेलोशिप (Maulana Azad National Fellowship) का लाभ मिलता है. मेरे जैसे पीएचडी स्कॉलर, जो एक ही फेलोशिप के तहत काम कर रहे हैं, उन्हें पिछले कुछ महीनों से स्टाइपेंड नहीं मिला है.
पीएचडी छात्र आमतौर पर 25-35 आयु वर्ग के होते हैं. हम पीएचडी करने की हिम्मत करते हैं क्योंकि हमारे शोध को फण्ड देने के लिए इस तरह की कई योजनाएं हैं. हम इस उम्र में अपने माता-पिता से पैसे नहीं मांग सकते. जब फेलोशिप में अचानक रुकावट आती है, तो यह बहुत मुश्किल हो जाता है.
सिर्फ मैं ही नहीं देश भर में करीब 4,000 रिसर्च स्कॉलर हैं, जो इसी स्थिति से गुजर रहे हैं.
उत्तर प्रदेश की एक रिसर्च स्कॉलर मारिया खान को दिसंबर 2021 से फेलोशिप नहीं मिली है. उसी के बारे में बोलते हुए, उन्होंने यह भी बताया कि यह स्थिति उनके लिए आर्थिक रूप से कितनी कठिन हो गई है.
हमने यूजीसी और मंत्रालय से संपर्क करने की कोशिश की है लेकिन हमें बिना किसी सकारात्मक प्रतिक्रिया के दोनों पक्षों के बीच फंसाया जा रहा है.
फेलोशिप नहीं मिलने के कारण कुछ छात्र पीएचडी छोड़ने की कगार पर हैं. मैं अधिकारियों से अनुरोध करता हूं कि कृपया इस मामले को देखें और हमारी फेलोशिप राशि को जल्द से जल्द वितरित करें.
क्विंट ने विश्वविद्यालय अनुदान आयोग और अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय से संपर्क किया है और उनके जवाब का इंतजार है.
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