advertisement
आजादी (Azaadi) शब्द को लेकर कई तरह की धारणाएं हैं और इसके बारे में सोचें तो लगता है कि सबसे पहले तो इन धारणाओं से ही आजाद होने की ही जरूरत है.
इन धारणाओं के जंगल में फंसे रह कर आजादी का सही अर्थ समझा नहीं जा सकता. समय समय पर आजादी का मतलब बदलता रहता है. दिलचस्प बात है कि जब इंसान को गुलाम बनाने का प्रचलन था तब अपने गुलाम को खाना देने वाले ‘आका’ को महा उदार और करुणावान माना जाता था.
बदलते समय के साथ सदाचार, गुण, दुर्गुण, आजादी, गुलामी, सभी कुछ फिर से परिभाषित होते रहते हैं. जैसे समाज विकसित होता है, आजादी के लिए भी उसकी मांगें बढ़ती हैं, परिष्कृत, संशोधित होती जाती हैं.
सियासी आजादी की मांगों में सबसे पहले आती है मतदान के अधिकार की मांग; फिर आती है नागरिक अधिकारों की, शिक्षा की, अच्छी जन स्वास्थ्य प्रणाली की मांग. इस तरह सभी भौतिक अभावों से मुक्ति की मांगें भी अलग-अलग रूप में सामने चली आती हैं.
यदि किसी कुशल सरकार की वजह से ये मांगें पूरी हो भी गई तो लोगों को यह महसूस होने लगता है कि अब तो वे अपने सपनों के हिसाब से जी सकते हैं, पर ऐसा होता नहीं. सरकार बदलने के साथ लोगों की मांगें और आजादी की धारणाएं भी बदलती हैं.
अभिव्यक्ति की आजादी के हिमायती अपने शासनकाल में ‘आपत्तिजनक’ किताबों, फिल्मों और रिपोर्ट्स पर रोक लगाने में संकोच नहीं करते, और तात्कालिक हितों के सामने वैचारिक निष्ठा की बलि देने में उन्हें कोई संकोच नहीं होता.
स्वतंत्रता के नितांत आवश्यक पहलुओं का उल्लंघन वही लोग करते दिखते हैं जो कभी उनकी रक्षा के लिए जान देने की बातें किया करते थे. इस तरह स्वतंत्रता की कोई एक सर्वमान्य, विश्वव्यापी धारणा निर्मित नहीं हो पाती.
बस एक सीमित और जहां तक हो सके, दिखने में एक प्रगतिशील आम राय बनती है, पर उसे लेकर भी बहसें, तर्क-कुतर्क चलता रहता है.
आजादी को लेकर निर्मित एक आम राय के आधार पर देखें तो हर व्यक्ति या समाज कुछ खास तरह की स्वतंत्रता की मांग करता है जो कि इन बातों के साथ जुड़ी होती हैं, बोलने और खुद को व्यक्त करने की आजादी जरूरी है, यह हर सभ्य और प्रगतिशील समाज ने जरूरी माना है.
अभावमुक्त जीवन दुनिया के हर व्यक्ति को, हर जीवधारी को उपलब्ध होना चाहिए. यह ठोस भौतिक अभाव की बात है न कि मनोवैज्ञानिक अभाव की, जो हर एक को अलग-अलग तरह से महसूस होता है.
चौथी महत्वपूर्ण आजादी है भय से मुक्ति:
पड़ोसी के हमले का भय,
रास्ते चलती स्त्रियों के अपमान का भय,
बच्चों के मन में उनके शिक्षकों का भय,
नौकरी चले जाने का भय,
दुर्घटनाओं का भय,
बुजुर्गों में रुग्णता,
असुरक्षा का भय, वगैरह.
हालांकि भय एक मनोवैज्ञानिक अवस्था है पर जिन ठोस भौतिक भयों को संगठनिक और सम्मिलित उपायों के द्वारा दूर किया जा सकता है, उन्हें दूर करना व्यवस्था की जिम्मेदारी है.
देश में एक होनहार बच्ची जिसने अपने बूते पर बड़ी बड़ी छात्रवृति पाई हो, उसका पीछा करते हुए यदि कुछ छिछोरे उसकी मौत का कारण बन जाते हों, तो ऐसे देश में आम इंसान की आजादी पर फिर से एक बड़ा सवालिया निशान लग जाता है.
कमोबेश यही हाल अविवाहित लोगों का होता है जो विवाह के सपने देखते हैं. विवाह के साथ परिवार और बच्चों की जिम्मेदारी आती है तो वे विवाह को बंधन मानने लगते हैं. क्या समाज में स्वतंत्रता, जिम्मेदारी और अनुशासन का संतुलन बना कर चला जा सकता है, या यह एक असंभव स्थिति है?
आजादी का अर्थ पिंजरे बदलना, या किसी गंदे पिंजरे से निकल कर साफ पिंजरे में जाना नहीं है. गांधी ने 16 जनवरी, 1930 को यंग इंडिया में लिखा था:
यह हम कैसी आजादी चाहते हैं और महात्मा गांधी ने किस तरह की आजादी का सपना संजोया होगा?
आजादी का एक बहुत ही अहम पहलू है जिसे हमें भूलना नहीं चाहिए, और वह है धरती की आजादी, खुलकर जीने की धरा की आजादी. जिस तरह पिछले दशकों में धरती का शोषण हुआ है, वह बहुत ही पीड़ादायी रहा है.
यदि धरती को नुकसान होने से हमारा जीवन प्रभावित ना होता तो हमें धरती या पर्यावरण की जरा भी फिक्र नहीं होती. इन दिनों पूरी दुनिया एक महामारी से त्रस्त है, और अब शायद कई लोगों को यह समझ आ रहा है कि प्रकृति के प्रति हमारा दुर्व्यवहार अंततः हमारे पास ही लौट कर आता है. यह धरती और हमारे मूक सहचर ही जब हमारी अदम्य कामनाओं के पिंजरे में कैद हो गए, तो हम कैसे स्वतंत्र हो सकते हैं?
विवेकानंद ने स्वतंत्रता को उसके गहरे और व्यापक अर्थ में परिभाषित किया है और उनकी बात पर ध्यान देना आवश्यक लग रहा है. उनका कहना है, “सभी मुक्ति के लिए संघर्ष कर रहे हैं, एक क्षुद्र अणु से लेकर एक सितारे तक”. हम सब अपनी आजादी के साथ-साथ उनकी आजादी की भी फिक्र करें जिन्हें हम ‘अन्य’ या ‘पराया’ कहते हैं, हम स्वतंत्र तभी हैं जब हम अपनी पारस्परिक परतंत्रता को समझ कर उसका सम्मान करेंगे.
स्वतंत्रता का वास्तविक अर्थ भी तभी समझा जा सकता है, जब यह साफ दिख जाए कि गहरे अर्थ में हमारा अस्तित्व आपस में जुड़ा हुआ है. एक दूसरे के साथ रहते हुए, एक दूसरे पर निर्भर रहते हुए और सभी के प्रति स्नेह और सम्मान रखकर जीने में ही सभी की स्वतंत्रता है, तभी मुक्ति का वृहतर लक्ष्य हमारी पहुंच में रहेगा, वर्ना हर दिन यह दूर खिसकता चला जाएगा.
(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)